शुक्रवार, 11 मई 2012

माता मे ईश्वर, की सत्ता

माता से  है अनुपम रिश्ता,ममता मे रमता है ईश
ममता मे करूणा है रहती,करूणा मे रहती है टीस
माता की छाया मे जन्नत,बेटा तो है माँ की मन्नत
माता के चरणो मे रहकर ,भगवन का मिलता आशीष

माता के छलके जब आंसू  भावो की हो गई बारिश
माता मे ईश्वर, की सत्ता ,माता के है शक्ति-पीठ
माँ का प्यार न जिसने पाया,पाकर जीवन वह पछताया
माता का कर लो अभिनंदन,वंदन से हर्षित जगदीश

माता हो तो पोंछे आँसू, बिन माँ के रोई ख्वाईश
धरती होती सबकी माता,माताये होती दस-दिश
तन-मन जिस पर है इतराता ,सबसे प्यारी भारत माता
माता को है अर्पण जीवन,माता को अर्पित है शीश

सोमवार, 7 मई 2012

सुख शांति कहा मिल पाती है

  होठो ने  ओढ़ी ख़ामोशी ,दृष्टि प्रीती को पाती है 
प्रीती  की सूरत है भोली पर ,मंद मंद मुस्काती है
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राह थकन ही देती है ,मुश्किल से मंजिल आती है 
जीवन है कांटो में पलता चाहत कुचली ही जाती है
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 सपनो में खिलती है  उषा , निशा में जलती  बाती है 
है ध्येय बड़ा और तिमिर खड़ा  आशा पलती ही जाती है
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कही कृष्ण कन्हैया की बंशी गोपी के घर तक जाती है 
जीवन में आपा धापी है ,सुख शांति कहा मिल पाती है
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संध्या  में काली निशा है ,उषा निशा से आती है  
उषा में जीवन की आशा ,भाषा अब नव गीत गाती है
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ऋतुये आती है जाती है , खुशबू फूलो में लाती है
तरु बेलो  पे कपोल कपल,फल पत्तो को बिखराती है
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सत्ता के मद मे हो पागल मद मस्त हो रहा हाथी है
दुर्बल जनता की चींखे,तम चीर-चीर कर आती है
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निर्धन दुखियारे की चिंता,सिहासन को कब आती है
नेता मे घटती नैतिकता,बनी राज-नीती कुल घाती है
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बचपन के द्वार खडा यौवन,खोये बचपन सहपाठी है
यह गेह देह होकर दुर्बल ,आयु  घटती ही जाती है
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अश्को से प्यास बुझी जाती और  छन्दो से हर्षाती है
उर-अंतर मे गुंजित होकर,गीतो मे पीडा आती है
 



शनिवार, 5 मई 2012

गीत गजल में प्रीत रहे ,करे भजन प्रभु लीन

गीत गजल में प्रीत रहे ,करे भजन प्रभु लीन
गजल नयन को सजल करे ,गजल करे गमगीन 

भजन सृजन मनोभाव  है, भज ले ईश प्रतिदिन 
सूरदास रैदास  हुए  ,मीरा  पद प्राचीन 

जीवन संध्या रात है ,बाल्यकाल प्रभात 
प्रतिदिन  बीता जात  रहा ,समय दे रहा मात 

सभी बलो में है उत्तम , आत्म का ही बल 
आत्मा बल के बिना हुआ , धन बल भी  निर्बल 

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

हे मात! तेरे ही लिये


हे मात! तेरे ही लिये ,निज प्राण का उत्सर्ग है
निर्झर नदी हिमभूमी पर्वत,विकसित धरा है स्वर्ग है

ऋतुये विविध चहु  और है जन्मे यहा पर देव है
रही क्यारिया केसर भरी लटके यहा फल सेव है
तन-मन हुये पुलकित नयन बिखरा यहा निसर्ग है
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मधुपान करता है जीवन ,तपोभूमी पर है आचमन 
खेले यहा राधा-रमण,श्रीराम का वन मे गमन
सभी धातुये तुझमे रही ,रहता यहा हर वर्ग है
सेवा करे रेवा सदा ,निमाड है मालव भूमी
पर्वत खडे महादेव से,ऊँची चोटिया नभ ने चूमी
शिव शक्ति सा है आचरण ,उनका यहा संसर्ग है

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

क्षितिज के उस पार है

खिलखिलाई  सुबह होगी, झिलमिलाती शाम होगी
तज थकन तू बढ मुसाफिर ,जिन्दगी वरदान होगी

पत्थरों सा जो पड़ा है ,वह शिखर पर कब चढ़ा है 
जो चेतना रसपान करता ,तारे सा नभ में जड़ा है 
छोडकर मन की उदासी,मुस्कान न मेहमान होगी
 
उम्मीदो के आशियाने ,क्षितिज के उस पार है
घोर तम में कर परिश्रम तू जीत का हकदार है 
ठोकरे जो भी मिलेगी ,तेरी ही गुलाम होगी


प्रश्न कितने तेरे मन मे ,है चुनौतिया जीवन मे 
लोहे से कुन्दन बन जा, चिंगारिया है तन-मन  मे
चढ गिरी की घाटीयों पर,चिर विजय तेरे नाम होगी

रोने से फल क्या मिला है,चलने से मिलता किला है
दे हौसलो को तू बुलन्दी,मरुथल मे मृदुजल मिला है
काया को कर तू निरोगी,माया से पहचान होगी

रविवार, 15 अप्रैल 2012

समय

रवि रश्मि  सत रंग है,सप्त रहे है दिन
सप्त सूर की साधना,लाभान्वित अनगिन

सूर्य समय के साथ है,चला काल का चक्र
सूर्य देव को कोटि नमन,हटे द्रष्टिया वक्र

समय गान को गाईये,समय बडा रंगीन
श्रम के हाथो आज रहा ,परिश्रम बिन दीन

समय परे जगदीश है,सार समय है बीज
समय प्रमेय का खेल रही,तिथिया आँखातीज

समय गुरू और  शिक्षक है, सीख सके तो सीख
सीख रही दुनिया सारी ,तू क्यो मांगे भींख

समय काल महाकाल है,काल बना विकराल
प्रतिपल बीता जात रहा है,बनो काल के लाल

पल-पल नभ पर चढता सूरज,ढली शाम बनी रात
सूत्र समय का फिसल गया है,व्यर्थ रह गई बात

स्वर्ण समय है चांदी है,मोती माणिक रत्न
मूल्यवान को मिल जायेगा,कर ले सारे यत्न

समय शिव का भाल है,भावी की है नींव
जो पल पल को पूज रहा,सदा सुखी वह जीव

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बारिश का मौसम क्या ? गर्मी का बेटा है

मौसम ने तन-मन को लू से लपेटा है
बारिश का मौसम क्या ? गर्मी का बेटा है

जीव-जन्तु अकुलाये सहमे हुये है साये 
खग-दल है गुम सुम  ठहरे पल अलसाये
चल-चल कर मरूथल मे भाग्य गया लेटा है

पतझड़ ने झड़-झड़ कर पत्ते खूब बरसाये 
तकदीर से लड़ -लड़ कर मंजिल को हम पाये
दुःख दर्द हर  गम को आँचल मे समेटा है

जीवन का संगीत तो धीर वीर ने गाया है
यमुना के तीर से ही बांसुरी स्वर आया है
पर्वत है गोवर्धन  , ग्वाला -दल बैठा है

आई याद मां की