रविवार, 4 सितंबर 2011

भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

रही सही जनता कि ,टूट गयी आस
राजनैतिक सामाजिक,मूळयो का हास

संसद के भीतर अब ,छिड गयी जंग
लोहिया के चेलो ने ,बदले है रंग
लोकनायक जे-पी का ,उडता उपहास

गांधी के सपनो का ,कहा गया देश
विदेशी चिंतन है ,खादी का वेश
भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

महंगाई आई है तो ,रूठ गये प्राण
छिन गयी रोटी है,निर्धनता निष्प्राण
अन्ना जी करते है ,अनशन उपवास

फैली है चहु और बंद और हडताल
शनैः शनैः चलती है जाँच और पडताल
भृष्टो का बंगलो मे होता है वास

दीन हीन को मिलते न ,मौलिक अधिकार
गठबंधन से चलती ,केन्द्रीय सरकार
कालेधन कि होती ,व्यवस्था दास





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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज