रविवार, 18 सितंबर 2011

तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

कमजोर सुत्रो पर टिके है, रिश्तो के धागे
अनगिनत कठिनाईया ,इन्सान के अागे
है खोखले विश्वासो पर ,कटती यहाँ पर जिन्दगी
तेरी यादो मे न सोये,रात भर जागे

कच्चे है घर के घरौंदे ,सुख-चैन को त्यागे
दर्द दुख परेशानियो को ,छोडो बढो अागे
जब हौसले हो इस दिल मे अौर सामने हो मंजिले
तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज