मंगलवार, 13 सितंबर 2011

स्नेह

अब छुपी सच्चाईयो ,कौन जाने
प्यार कि गहराईयो ,कौन माने
हर तरफ मक्कारिया ,फैली हुई हो
निष्कपट स्नेह को ,मिलते है ताने

वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
रिश्तो की हकीकत होती ही कुछ ऐसी
मिलने के पल अाते है ,पर मिल नही पााते है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज