शासकीय यह पर्व नही ,जन -जन का त्यौहार
तीन रंगो मे भरा रहा,तीन धर्मो का प्यार
राष्ट्र धर्म मे रूची रहे ,राष्ट्र हित हो कर्म
खुशिया जन मन बसी रहे ,आजादी का मर्म
आजादी बिन मोल नही ,आजादी अनमोल
आजादी अक्षुण्ण रहे ,झट-पट आँखे खोल
स्व हित मे ही लिप्त रहा,पर हित मुंह तो खोल
स्व तंत्र शिथिल हुआ ,स्व का तंत्र टटोल
आजादी अभिशाप नही ,आजादी वरदान
निज का शासन है निज पर,जन मन गण का गान
अनुशासित ही सुखी रहे,शासित शोषीत दुखी सदा
जो शासन से सुखी रहे, मूढ़ जड़ अनपढ़ रहे गधा
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