-->
सोंचता हूँ प्यार का इजहार कैसे मै करु
दर्द से चींखू यहा पर या फिर जमाने से डरु
दर्द मे लिपटी हुई ,दिलवर तुम्हारी याद है
रूप की हल्की झलक है थोड़ा सा संवाद है
याद मे देखू छवि और दैख कर आहे भरु
दूरिया मजबूरिया है राह पे न फूल है
चाहते रहती अधूरी बिखरी हुई चहु धूल है
पंथ पर मै पग धरु और चाह पर मिट कर मरू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें