सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

रिश्ते से ही घर बनते है

रिश्तो के पनघट रहे है रिश्तो से विश्वास 
रिश्ते से ही घर बनते है रिश्तो में एक आस 

रिश्तो की पूंजी रही है प्रीती का अहसास
रिश्ते से मिलती खुशिया है रिश्तो से उल्लास

रिश्ता माटी से रहा तो देश भक्ति पास
माटी का कण कण बचा लो सीमाएं उदास

रिश्ता अपनों से रहा है स्वप्न का मधुमास
रिश्तो में होती प्रतीती और परिधि व्यास

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज