शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

मन से मन की डोर

शारदीय नवरात गई ,शीत बढ़ी प्रतिदिन 
दिखा चन्द्रमा प्रीत भरा, रात हुई कमसीन

जाग उठे जज्बात नए, पर अलसाई भौर 
प्रीत रीत ये बाँध रही ,मन से मन की डोर 

जीवन सारा बीत गया,मिला नहीं सुख चैन 
चाहत की छवि दिखी नहीं ,प्यासे रह गए नैन 

आज यामिनी महक रही, चमक रहा है चंद्र 
शरद पूर्णिमा में पाए है ,अमर तत्व के छंद

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज