मंगलवार, 15 जनवरी 2019

खुशियो की शहनाईयां

गहरी गहरी खाईया 
 झीलों की गहराइयां 
  नभ से निकली उतर रही
  कैसी है परछाईया

सुंदरता आनंद
  उड़ती हुई पतंग 
  सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही  उमंग  
बच्चो  की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां

कब तक होगी भ्रान्ति  
जीवन हो संक्रांति  
मिल मिल कर के बिछुड़ रही  
जीवन से सुख शांति
  अपनापन था गुजर गया 
  न होगी भरपाईया

कहा गए वो छंद 
जीवन का  मकरन्द 
महकी महकी गंध 
सुरभित से सम्बन्ध 
थर थर काया काँप रही 
खोई कही रजाईयां

4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/01/2019 की बुलेटिन, " ७१ वें सेना दिवस पर भारतीय सेना को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सच है कितना कुछ खोता जा रहा है ...
    त्योहारों पे इसका एहसास कुछ ज्यादा ही होता है ... अच्छी रचना है ...

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आँगन का दीपक

जहा दिव्य हैं ज्ञान  नहीं  रहा  वहा  अभिमान  दीपक गुणगान  करो  करो  दिव्यता  पान  उजियारे  का  दान  करो  दीपक  बन  अभियान  दीपो ...