गहरी गहरी खाईया
झीलों की गहराइयां
नभ से निकली उतर रही
कैसी है परछाईया
झीलों की गहराइयां
नभ से निकली उतर रही
कैसी है परछाईया
सुंदरता आनंद
उड़ती हुई पतंग
सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही उमंग
बच्चो की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां
उड़ती हुई पतंग
सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही उमंग
बच्चो की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां
कब तक होगी भ्रान्ति
जीवन हो संक्रांति
मिल मिल कर के बिछुड़ रही
जीवन से सुख शांति
अपनापन था गुजर गया
न होगी भरपाईया
जीवन हो संक्रांति
मिल मिल कर के बिछुड़ रही
जीवन से सुख शांति
अपनापन था गुजर गया
न होगी भरपाईया
कहा गए वो छंद
जीवन का मकरन्द
महकी महकी गंध
सुरभित से सम्बन्ध
थर थर काया काँप रही
खोई कही रजाईयां
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/01/2019 की बुलेटिन, " ७१ वें सेना दिवस पर भारतीय सेना को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसच है कितना कुछ खोता जा रहा है ...
जवाब देंहटाएंत्योहारों पे इसका एहसास कुछ ज्यादा ही होता है ... अच्छी रचना है ...
उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद
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