गैरो के गम मे अपना भी गम था
सन्नाटे थे पसरे ,पसरा मातम था
पाया न ज्यादा था ,थोड़ा सा वादा था
वादे मे यादे थी,यादो मे दम था
अपने ही गम मे तो रोता है कोई
गैरो गम मे नही आँखे भिंगोई
संवेदना मानव की ऐसी है सोई
झुठी थी हमदर्दी कश्ती डुबोई
बिवाईया पैरो मे दिल मे पडे छाले है
खूबसूरत चेहरे भी भीतर से काले है
कालिमा चेहरो की,भीतर तक गहराई
मिट्टी के माधो के सब कुछ हवाले है
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