दे रहे शुभकामनाये
शुभकामनाओं से डरे है
षडयंत्र है दुर्भावनाये
जख्म होते अब हरे है
झुठी है सम्वेदनाये
वेदना लगती सही है
वर्जनाओं की दिवारे
वंचनाओं की बही है
प्रीती को लुटते लुटेरे
झुठ से किस्से भरे है
मैला मन है मैला आँचल
मैले मे मन तू चला चल
भोले मन अब तक छला है
छोड जग तू चल हिमाचल
मंजिले पुकारती है
मुक्ति के ही फूल झरे है
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