मंगलवार, 18 सितंबर 2012

बिंदी कुंकुम से गौरी

भारतीय भाषाओं में ,सब कुछ है संभव
हिंदी मन का भाव है ,हिंदी है अनुभव 

हिंदी में आश्रय मिले ,कविता अश्रुमय
हिंदी में सब छंद मिले ,छंदों में चिन्मय 

हिंदी में ही देश रहा ,हिंदी में परिवेश
बिंदी कुंकुम से गौरी ,बदला चाहे वेश


ह्रदय में जय हिंद रहा ,रहा हिंद अरविन्द
हिंदी तुलसी जायसी ,हिंदी में गोविन्द 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज