दर्द के हालात है, या फिर यहाँ कुछ और है
आचरण छल से भरे है , हर आवरण में चोर है
विशिष्ट न अब शिष्ट रह गए , विशिष्ट अब निकृष्ट है
शुध्द न पर्यांवरण है, दिखती नहीं कही भोर है
अश्रु से आँचल भरा है ,आँख रोई है भींगोई
पीड़ा क्रीड़ा कर रही है, ,माँ तो बैठी है रसोई
भैया भाभी ले गए है ,राजू अम्मा रह गए है
राखी न आई कही से ,आये न बहना बहनोई
भैया भाभी ले गए है ,राजू अम्मा रह गए है
राखी न आई कही से ,आये न बहना बहनोई
बहना हो गई है पराई
बहना की राखी है आई
राखी में रहती सुरक्षा
राखी में आशा समाई
बहना की राखी है आई
राखी में रहती सुरक्षा
राखी में आशा समाई
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद राजगुरु जी की १०७ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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