शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

खाली है सन्दूक

घर घर बारूद बाँट रहे, घर घर है बंदूक
कैसे दुर्दिन काट रहे, खाली है सन्दूक

बिगड़ी जाती सोच रही ,बिगड़ा है आहार
बिगड़े होते चाल चलन , बिगड़े है परिवार

बिगड़े उनके बोल रहे, बढ़ती रही दरार
रिश्ते रस रिक्त हुए , ऊंची उठी दीवार

जलते घर परिवार रहे,जलती रहती रेल
दुकानों में है आग लगी, दंगो का है खेल

अब महलो का मोल नही ,बोल रहे अनमोल
शब्दो के कुछ अर्थ रहे , अर्थो को टटोल

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज