कैसे दुर्दिन काट रहे, खाली है सन्दूक
बिगड़ी जाती सोच रही ,बिगड़ा है आहार
बिगड़े होते चाल चलन , बिगड़े है परिवार
बिगड़े उनके बोल रहे, बढ़ती रही दरार
रिश्ते रस रिक्त हुए , ऊंची उठी दीवार
जलते घर परिवार रहे,जलती रहती रेल
दुकानों में है आग लगी, दंगो का है खेल
अब महलो का मोल नही ,बोल रहे अनमोल
शब्दो के कुछ अर्थ रहे , अर्थो को टटोल
सुन्दर
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