भीतर ही देदीप्य हुआ , भीतर हुआ विहान
सूरज में वो आग नही , नही हिमालय हिम
बे मौसम है बरस रही , बारिश की रिम झिम
उगता डूबता रोज रवि, सागर के उस पार
सागर पर है साँझ मिली, किरणों का दरबार
भीतर से तू भाग रहा, भीतर है निर्वाण
भीतर भीतर हुआ करे, हर जीव का कल्याण
वाह
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