मंगलवार, 11 जून 2013

कैक्टस और बबूल


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कैक्टस की तरह रूखे कांटो से भरे 
बिना उगाये ही उग आये व्यवहारिक धरातल पर विद्वेष के वृक्ष 
क्योकि मै  नहीं कर पाया
 शूल को फूल कहने की भूल 
मुझमे उस साहस का है अभाव जो कहला देता है 
अँधेरे को उजाला और सफ़ेद को काला 
मिटा देता है सत्य और असत्य के बीच का अंतर 
तब भ्रमित पथिक वैभव के अन्धकार में लिपट कर 
दिशाहीन ध्येय विहीन जीवन पथ की और हो जाता है अग्रसर 
मै  नहीं बनना चाहता दिशाहीन ध्येय विहीन भ्रमित पथिक 
इसलिए मुझे साँसे लेना ही होगी 
उस जहरीले वातावरण में जहाँ  उगते है 
कैक्टस और बबूल  

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