थम जाती है आँधियाँ और तूफानी काली घटाए
सोच लेता निश्छल मन तो, सुगम बन जाती है राहे
कंटको से क्या डरे हम ? हो गया विदीर्ण ये मन
ठोकरे लगती गई है ,टूट गई संवेदनाये
वेदना किसको बताये ,विरह की लम्बी कथाये
काल और कंकाल पर ,नृत्य करती कामनाये
प्रीती ने विश्वास तोड़ा ,नियति ने उदास छोड़ा
सत्य की कश्ती डूबी तो, सृजन में झलकी व्यथाए
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