गुरुवार, 13 जून 2013

झलकी व्यथाए

थम जाती है आँधियाँ  और तूफानी काली घटाए 
सोच लेता निश्छल मन तो, सुगम बन जाती है राहे 
कंटको  से क्या डरे हम ? हो गया विदीर्ण ये मन 
ठोकरे लगती  गई है ,टूट गई  संवेदनाये 

वेदना किसको बताये ,विरह की लम्बी कथाये 
काल और कंकाल पर ,नृत्य करती कामनाये 
प्रीती ने विश्वास  तोड़ा ,नियति ने उदास छोड़ा 
सत्य की कश्ती डूबी तो, सृजन में झलकी व्यथाए 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आँगन का दीपक

जहा दिव्य हैं ज्ञान  नहीं  रहा  वहा  अभिमान  दीपक गुणगान  करो  करो  दिव्यता  पान  उजियारे  का  दान  करो  दीपक  बन  अभियान  दीपो ...