शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

सब कुछ है उपलब्ध

नीति से  है  न्याय  रहा  
प्रीति  से  सामर्थ्य 
हम सबके  जो  पूज्य  रहे 
उन  सबको  दे  अर्घ्य 

प्रीति  की  कोई  उम्र  नहीं  
प्रीति  की  न  थाह 
प्रीति  की  रीति  से  रहता 
जीवन मे  उत्साह

नियति से  है  भाग्य रहा 
पौरूष से  प्रारब्ध 
जीवन मे  सत्कर्म  करो  
सब  कुछ है  उपलब्ध 


निद्रा  में  जो  शुन्य  रहा 
उस  पर  तू  कर  शोध 
हर  कण मे  वहीं तत्व  रहा 
आत्मा का  हैं  बोध 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...