फलते-फूलते यहां रहे
काले कारोबार
सब रिश्तो भूल गये
केवल है व्यापार
घूमते फिरते जहा चले
लगा नहीं कही मन
बिगड़े उनको बोल रहे
कलुषित है चिन्तन
उनको कितनी बार मिला
स्वागत और सत्कार
न कोई है आज यहां
जो लेता पुचकार
निष्ठा को तो चोट मिली
आस्था को वनवास
भावों को जो व्यक्त करे
उसका हो उपहास
जिसके हाथो कर्म रहा
उसका है आधार
दूजे का न दोष दिखा
सपने कर साकार
जो करता हैं कर्म यहां
समझा उसने मर्म
कर्मठता उद्योग वहा
कर्मठता हैं धर्म
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