जिन्दगी
बिन उमंगो के बीती चली जाती
है
मौत
तो दबे पाँव चुप-चाप
चली आती है
हम
तो हालात की मुंडेर पर रखे
हुये दिये है
हवाये
सच्चाई की लौ को ही क्यो बुझाती
है ?
ढेरो
थी मुश्किले ,मुश्किलो
से घिरा इन्सान था
सीधा
सच्चा था आदमी नही कोई शैतान
था
दिल
मे थी चिंगारीया ,चिंगारिया
थी पल रही
सपनो
मे लगी आग थी,घर
भी उसका वीरान था
पसरा
हुआ पाखंड है
खोंखले ढकोसले
है
लोग
बाहर से कुछ ओर भीतर से दोगले
है
आदर्शो
की बाते करना अब हो गई फैशन
बड़ी-बड़ी
बाते बड़े -बड़े
लोगो के चोंचले है
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