शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

विश्वास होते रहे क्यो सशंकित है ?


याद तुम्हारी अाई हम क्या करे ?
या तो मर मिटे या जमाने से डरे
जबान कुछ बोलने से है डर रही
चाहत सागर सी है इस दिल मे भरे

सीने मे है अाग अौर उफनता लहू
कठिनाईया अनगिनत है किससे कहू
या तो चुप रहू अौर चुप-चाप सब सहू
धोखे अौर विश्वासघात से बहता है लहू




अास्थाये होती रही क्यो कलंकित है ?
विश्वास होते रहे क्यो सशंकित है ?
चाह कर भी हम अापको भूल नही पाते
मेरे दिल रही छवि अापकी अंकित है

अाज प्यारा सा गीत गाया है
प्यार पुराना समीप अाया है
बन गई जिन्दगी पहेलीनुमा
प्यार पाकर इसे सुलझाया है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आँगन का दीपक

जहा दिव्य हैं ज्ञान  नहीं  रहा  वहा  अभिमान  दीपक गुणगान  करो  करो  दिव्यता  पान  उजियारे  का  दान  करो  दीपक  बन  अभियान  दीपो ...