सस्ते
जमााने मे
सस्ते
थे दिन
गाॅवो
की पगडंडी
पगडंडी
रंगीन
सावन
न तरसा था
अासमान
बरसा था
हल
थे अौर बक्खर थे
हाथो
मे फरसा था
भक्तो
के कीर्तन थे,
सब
कीर्तन तल्लीन
घने
घने थे साये
स्नेहिल
पल थे पाये
लौरी
अौर किस्से थे,
किस्से
थे अपनाये
दादी
की अाॅखो मे
अाॅसू थे
गमगीन
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