सुन्दरता अभिशाप नहीं सुन्दरता वरदान
सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान
सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान
मानसिक सौन्दर्य बिना, खिला नहीं कोई रूप
सुन्दरता बिखरी हुई ,नैसर्गिक स्वरूप
विश्व मोहनी बुला रही , लूट रही है चैन
भस्मासुर भी भस्म हुआ ,भगवन की थी देन
यहाँ मुख्य सौन्दर्य नहीं मुख्य हुआ है ज्ञान
मुखरित होता मुख से ,वाणी से विद्वान
वाणी में सौन्दर्य नहीं जिव्हा कड़वी नीम
कोरे रूप को क्या करे ,जीवन हो गमगीन
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