जहां चाह वहा राह मिली ,चाहत कितनी दूर
चल चल कर थक पैर गए, हो गए थक कर चूर
चल चल कर थक पैर गए, हो गए थक कर चूर
चेहरो पर मुस्कान नहीं ,उजड़े हुए मकान
दंगे तेरी भेट चढ़ी, चलती हुई दूकान
महलो के मोहताज नहीं ,बचता एक ईमान
रहा सत्य ही शीर्ष पर ,सत्य करे विषपान
रिश्ते रस से हीन हुए, नहीं बचा कही रस
ममता मन से छूट गई ,प्रीत हुई बेबस
राज गए महाराज गए ,गए संत अब जेल
जेलों में अब खूब हुई ,रेलम -ठेलम -पेल
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