बारिश बूंदे बरस रही ,बरस रहा है नेह
पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह
पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह
रूप सलौनी चंद्रमुखी ,अंधियारी है रात
अंधियारे में बहक रहे ,तन मन और जज्बात
मन में क्यों कलेश रहा ,क्यों कलुषित है चित
है नारायण साथ तेरे ,मत हो तू विचलित
नदिया निर्झर बह रहे ,निर्मल बारिश जल
आसमान भी स्वच्छ हुआ ,स्वच्छ हुए जल थल
नमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (22--09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
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