रविवार, 22 जुलाई 2012

हो स्वप्न अटल निखरा हुआ पल

नवल धवल, पुरुषार्थ प्रबल
खिले लक्ष्य कमल मिलता रहे हल

हर डगर-डगर बढ चले हो चरण
खुशिया करती जीवन का वरण
हो स्वप्न अटल निखरा हुआ पल

जीवन हो मरण,कारण हो करण
शब्दो छन्दो का ,कभी नही हो मरण
हो धरा निर्मल,धरातल समतल

आंधी, अंधड़ नही हो पतझड़
हो घुमड़ घुमड़ बारिश की झड़
खलबली हलचल जीवन हो सफल



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