दुर्भाग्य की ही कौख में जो
पुरुषार्थ का ही बीज बोता
कौन कहता है वह यहाँ पर
कौन कहता है वह यहाँ पर
सुविधाओं में सपने पिरोता
संघर्ष की जलती है ज्वाला
संघर्ष में सुध बुध न खोता
मौन रहता वह नहीं है
मौन रहता वह नहीं है
नव चेतना तन -मन में बोता
अभाव में भावो के बल है
मुश्किलों को देता न्यौता
वह खिलाड़ी देश का है
वह खिलाड़ी देश का है
निज देश हित आशा संजोता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें