भूखी है और बिलख रही,निर्धनता चहू ओर
सरकारी गोदामो का ,खा गये गेहू ढोर
मूल्य नियंत्रण हुआ नही,मुद्रा होती क्षीण
अब शेयर बाजार मे ,खाता है सिंह त्रण
मन मौजी तो मौज करे,भरे रहे भण्डार
क्यो तू सुख की खोज करे,सुख है तेरे द्वार
खोजा जल पाताल मे ,गहरे है नल कूप
लालच तुझको नही मिली ,संतुष्टि की धूप
रिश्तो का व्यापार हुआ ,क्या व्यापारी प्यार?
लज्जा भी निर्लज्ज हुई,कैसा व्याभिचार
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