बुधवार, 26 जून 2013

हे भगवन लौटा दे, वापस मुस्कान

भींगी हुई  दोपहर ,भींगी  हुई शाम 
भींगा  हुआ हर पल ,बह गये  धाम 

तीर्थो में  भर  गये  है , सारे  ही  कुंड 
क्षत -विक्षत  लाशें  है, बिखरे नर  मुंड 
बहुतेरे  मिल  गये है, ढेरो  गुमनाम 

बदला है बारिश  ने ,कितना  भूगोल 
पैरो  में छाले है, बम  हर हर तू बोल 
हे भगवन  लौटा  दे, वापस  मुस्कान 


गुरुवार, 20 जून 2013

बद्री और केदार

प्रकृति में शक्ति है शक्ति में समाहित शिव है 
शक्ति के बिना शरीर ही नहीं शिव भी निर्जीव है 
शिव  की पूजा में आस्था है अभिषेक है आचमन   है
शक्ति पूजा में भक्ति है प्रार्थना है शुध्द चित्त और मन है 
रहे प्रकृति सुरक्षित और रहे निर्मल पर्यावरण है 
शिव पूजा में हमारी होती आस्थाए कम है
 मनो मस्तिष्क में पले  कई भ्रम है 
शिव शक्ति की संयुक्त पूजा में प्रकृति का  संरक्षण है 
पुरुषार्थ है बल है और परिश्रम है 
फिर क्यों हुई विनाश लीला दिलो में गम और आँखे नम है 
येन केन प्रकारेण  हमने प्रकृति को सताया है 
प्रकृति को सता कर शिव शम्भू और केदार को किसने पाया है 
इसलिए शिव और शक्ति की पूजा के नवीन मानदंड अपनाओ 
प्राकृतिक संसाधनों को बचाओ 
शिव और शक्ति को तन मन में बसाओ 
प्रकृति में समाहित बद्री और केदार है 
ईश्वर  उञ्चाइयो में ही नहीं गहराईयों में भी है
 नैया की पतवार है 
परम सत्ता के बल पर टिका हुआ यह संसार है 

शनिवार, 15 जून 2013

मिथ्या ही विज्ञापन ,नहीं दीखता उल्लास

 रहती है जीवन में ,मरुथल की प्यास 
इच्छित न मिल पाता ,नित दिन उपवास 

उड़  गई निंदिया भी, अलसाए नैन 
तकते है तारो को, मिलता न चैन 
मिल जायेगी चितवन ,मन का विश्वास 

बारिश की बूंदों से ,होती रिम झिम 
रह गई दिल में ही ,चाहे अनगिन 
चाहत की राहो पर, मिलता उपहास 

गाँवों में अंधियारा ,दीपक टिम -टिम 
जर्जर छत स्कूल की ,मिलती  तालीम 
मिथ्या ही विज्ञापन ,नहीं दीखता उल्लास 

शुक्रवार, 14 जून 2013

सुबह जग -मगाई है

नीले नीले आसमा पर, लालिमा छाई है 
सूरज की मेहनत ने, अरुणिमा पाई है 
पौरुष से किस्मत है, बजती शहनाई है
 संध्या ने सूरज की, तृष्णा  बुझाई  है 

अस्त हुये दिनकर ने ,शीतलता पाई है 
निशा के आँचल में ,निंदिया गहराई है 
खग -दल भी गुम सुम है, पवन सुखदायी है 
उग आई उषा  है ,सुबह जग -मगाई है 

प्रियतम की आँखों में, दिखती सच्चाई है 
प्यारा सा जीवन जल, मृदुलता पाई है 
भावनाये बहकी है ,मेहंदी रंग लाई  है 
प्रीती से जीवन है ,हुई ईर्ष्या पराई है 

भर आई आँखे है, गम की गहराई है 
गागर में सागर है ,सरिता तट आई है 
भावो के आँगन में ,पाया है अपनापन 
सपनो में अपनों की ,झलकिया पाई है 


गुरुवार, 13 जून 2013

झलकी व्यथाए

थम जाती है आँधियाँ  और तूफानी काली घटाए 
सोच लेता निश्छल मन तो, सुगम बन जाती है राहे 
कंटको  से क्या डरे हम ? हो गया विदीर्ण ये मन 
ठोकरे लगती  गई है ,टूट गई  संवेदनाये 

वेदना किसको बताये ,विरह की लम्बी कथाये 
काल और कंकाल पर ,नृत्य करती कामनाये 
प्रीती ने विश्वास  तोड़ा ,नियति ने उदास छोड़ा 
सत्य की कश्ती डूबी तो, सृजन में झलकी व्यथाए 


मंगलवार, 11 जून 2013

कैक्टस और बबूल


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कैक्टस की तरह रूखे कांटो से भरे 
बिना उगाये ही उग आये व्यवहारिक धरातल पर विद्वेष के वृक्ष 
क्योकि मै  नहीं कर पाया
 शूल को फूल कहने की भूल 
मुझमे उस साहस का है अभाव जो कहला देता है 
अँधेरे को उजाला और सफ़ेद को काला 
मिटा देता है सत्य और असत्य के बीच का अंतर 
तब भ्रमित पथिक वैभव के अन्धकार में लिपट कर 
दिशाहीन ध्येय विहीन जीवन पथ की और हो जाता है अग्रसर 
मै  नहीं बनना चाहता दिशाहीन ध्येय विहीन भ्रमित पथिक 
इसलिए मुझे साँसे लेना ही होगी 
उस जहरीले वातावरण में जहाँ  उगते है 
कैक्टस और बबूल  

रविवार, 9 जून 2013

थोड़ी सी पीर

मौसम की गर्मी से ,मिली नहीं ऊष्मा है 
पसीने से लथ पथ है, टूटा हुआ चश्मा है 
हाथो में हंसिया है, महँगी हुई खुशिया है 
मिली नहीं हल धर को ,सपनों की सुषमा है 

तन मन में पीड़ा है ,नयनो में नीर 
फसलो के पकने पर जगती तकदीर
बो देना खेतो में ,थोड़ी सी पीर 
जल होगा मरुथल में, होगा तू वीर  

भींगी हुई आँखों में ,बहुत दर्द बाकी है 
प्यासी हुई नजरे है, नहीं कही साकी है 
सूरज की गर्मी है ,कर्मी ही धर्मी है 
किस्मत ने पौरुष की, कीमत कहा आंकी है 


  

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...