गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

जगे भाग्य की रेख

नित अभिनव की प्यास रहे, नूतन नित उल्लास
नवीन वर्ष में सोच नई हो , हो मन मे विश्वास

जग में होते पंथ कई, ईश्वर फिर भी एक
नये वर्ष में नई उमंगे, जगे भाग्य की रेख

जब तक न संतोष रहा, जीवन होता शाप
नवीन वर्ष में हटे अंधेरा , कट जायेगे पाप

मन्दिर बजते शंख रहे, घंटी सजते थाल
होता सच्चा कोष वहाँ , जो मन से खुशहाल

चित में तो सन्यास नही , चिन्तन में न राम
फिर भी भगवा वेश धरा, इच्छा रही तमाम




गीता ज्ञान प्रचुर

गीता में श्री कृष्ण रहे
गीता ज्ञान प्रचुर
गीता ने कल्याण किया
 गीता गोरखपुर

गीता ने है शोक हरा
गीता सूर और तान
गीता से नत मुख हुआ
आधुनिक विज्ञान

गीता में सब श्लोक कहे 
धरती पर सब लोक
शुध्द कर्म परमार्थ करो
  पाप कर्म पर रोक

गीता में है गीत रहे 
रहे अनुष्टुप छन्द
गीता का हर सूक्त रहा
जीवन का मकरन्द

शनिवार, 26 दिसंबर 2020

ऐसा जो भी शख्स रहा


खुल करके सबसे बात करे 
खुल कर के सत्कार
ऐसा जो भी शख्स रहा 
 उसका सद व्यवहार

न ही उसके दोस्त बने
 जाने न हम तुम
जितना वह मासूम रहा 
उतना ही गुमसुम

उखड़ी उनकी साँस रही 
 उखड़ा उनका दम
फिर भी वह सिगरेट पिये,
खांसी और बलगम

कोरोना का ग्रास बना 
 ऐसा एक इंसान
सुबह न तो सैर करे
 व्यसन करे तमाम


गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

पिता हरदम मौन खड़े वे पर्वत उपमा

जिसका निश्छल प्रेम रहा, वह प्यारी है माँ
पिता हरदम मौन खड़े, वे पर्वत उपमा

कितने कितने घाव सहे , फिर भी रहते चुप
पिता का सामर्थ्य रहा, सूरज की ज्यो धूप

पिता होते शुध्द हवा, प्राणों का आधार
पिता जी है पूज्य रहे, कर इनका सत्कार

कानो में है गूँज रही , पिता की आवाज
पिता जी गुमसुम रहे, पिता जी नाराज

पिता जी है गुजर गये , गुजरा मन का बल
पिता के बिन विश्व लगा, जंगल और दलदल

चेहरा तेरा बाँच रहे, पिता जी है आज
उनसे गम भी छुपे नही , छुपे नही है राज

पिता हिमवत जमे नही, वे बरसे बादल
पिता होते पूर्ण सहज , वे गिरी विंध्याचल

माता कुछ है सोच रही , गाती मीठे गीत
भृकुटी पिता तान रहे , दृष्टि में कुछ हित

माता तो एक राग रही पितृवत है छन्द
मुठ्ठी जिनकी खुली नही , होती वह सौगंध

पिता से संसार मिला , पिता से घर बार 
पिता जी के चरणों मे , वंदन बारम्बार

पितृवत है ज्ञान रहा, पितृवत अनुभव
पिता जी से सीख मिली , जीवन है सम्भव

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

अदरक और लहसुन

बहरे होकर मौन हुए, रहे स्वार्थ के भाव
गहराई की और चले , गहरा हो स्वभाव

ठण्डी होती छाँव रही , देती धूप सकून
मीठी अच्छी चाय लगी, अदरक औ लहसुन

मक्का रोटी साग रही, मैथी पालक ज्वार
इनसे तू क्यो भाग रहा, ये पौष्टिक आहार

धनिया चटनी भूल गये,  खरड़ रही नही याद
भरमा बैगन की सब्जी का , कितना प्यारा स्वाद

चूल्हे चौके कहाँ गये, बुझते गये चिराग
बाती में न तेल रहा, कहा कंडे की आग


सोमवार, 21 दिसंबर 2020

लिफ्ट हुये अरमान

ऊँचे शॉपिंग माल रहे, ऊँची रही दुकान
ऊंचाई में शिफ्ट हुये ,लिफ्ट हुए अरमान

रिश्ते थे जो बिके नही, हे मेरे सरकार
दिल से दिल तक जुड़े रहे, अंतर्मन के तार

बहरे होकर मौन हुए, रहे स्वार्थ के भाव
गहराई की और चलो, गहरा हो स्वभाव


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

रोता एक किसान

घायल दोनों पैर हुये, घायल होते भाव
फसलों को वो सींच रहा, सर्दी में एक गांव

बारिश में है भींग रहा, थक के चकनाचूर
किस्मत उनको ले गई, सुख से कितना दूर

पलको में न नीर रहा , ऐसा भी एक मर्द
हल्का होता भार नही , कर्जा है सिरदर्द

चलते उनके पैर रहे,फिर भी नही थकान
आँखों मे भी नींद नही, रोता एक किसान

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

निन्दक नरक पधारिये

नीति से न प्रीत रही ,लेता है हरि नाम
होता नही ईश सगा , उसका काम तमाम

निंदा होती व्यर्थ रही ,निन्दक है डरपोक
निन्दक नरक पधारिये, बिगड़ा है इहलोक

करता वह कुतर्क रहा ,  होता टस न मस
मिथ्या ही अभिमान किया , ले निन्दा का रस

निन्दक मन समझाईये , निन्दा है एक दोष 
निन्दा से क्यो व्यक्त करे , तू अपना यह रोष




रविवार, 13 दिसंबर 2020

खुली हृदय की आँख

धू धू करके देह जली, बनती जाती  राख
चिंतन से है सोच ढली, खुली हृदय की आंख

चिंतन जीवन वैद्य रहा , चिंतन है देवेश 
चिंतन चिन्ता मुक्त करे, करते रहो निवेश

चिंतन में भगवान रहे , चिंतन में है ज्ञान
चिन्तन चित के दर्द हरे, अमृत का रसपान

जो हर पल को साध रहे,  चिन्तन है महादेव
चिन्तन बंधन काट रहा, चिन्तन कर सदैव

चिन्तन से है सत्य मिला, हुई तत्व की खोज
भीतर भीतर प्यास जगी , तृप्ति मिली हर रोज

शनिवार, 12 दिसंबर 2020

ईश्वर होता व्यक्त नही

सच्ची प्रीति कहा गई , भोले जो थे लोग
भोलेपन को भूल गये , कैसा है दुर्योग

सीधा सच्चा धर्म कहा, सीधा सच्चा पथ
इतने बढ़ते स्वार्थ गये,करता क्या समरथ

ईश्वर होता व्यक्त नही , वह तो है अहसास
व्यक्ति से क्यो टूट रहा, व्यक्ति का विश्वास

सुख दुख में सामान्य रहा, पल पल है स्वीकार
उस पर होती ईश कृपा, उसकी जय जयकार


शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सीधे सच्चे गाँव

सौंधी खुशबू मिटटी की , ईश्वर का वरदान
ईश के ही समतुल्य रही , मासूम की मुस्कान

नन्हे पंछी कहा गये, उनका कहा मुकाम
मासूम बच्चा देख रहा, कितना नभ सुनसान

पसरा हर पल मौन यहा,चमके तम झींगुर
कर्मो का न मूल्य रहा, समय रहा निष्ठुर

करते रहते सैर रहे , मिली नही है ठाँव
झूठो की है रही नगरिया, सीधे सच्चे गाँव

हर जीव का कल्याण

अब तीर्थो में देव नही , भीतर है भगवान
भीतर ही देदीप्य हुआ , भीतर हुआ विहान

सूरज में वो आग नही , नही हिमालय हिम 
बे मौसम है बरस रही , बारिश की रिम झिम

उगता डूबता रोज रवि, सागर के उस पार
सागर पर है साँझ मिली, किरणों का दरबार

भीतर से तू भाग रहा, भीतर है निर्वाण
भीतर भीतर हुआ करे, हर जीव का कल्याण

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

तू उससे क्यो माँग रहा

निर्मल पावन गति रही , नदिया को तू पूज
चिंतन लेखन पूज्य रहा, पूज्य रही सूझ बूझ

जिसका दरिया दिल रहा, जिसका चित उदार
पुरुषों में वह राम रहा, अपना कर्ज उतार

सबका दाता ॐ हरि, भूत भावी वाचक
तू उससे क्यो मांग रहा, जो खुद है याचक

सबसे सुन्दर नाम रहे, राम कृष्ण हरि ओम
हरि से पुलकित रोम रहा, शिव से पावत सोम

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

स्वर्ग की राह निकाल

नयनो में अरविन्द रहे, हृदय में गोविन्द
जीवन मे न क्लेश रहे,शेष रहे जयहिन्द

जितने चंचल कृष्ण रहे, जितने सीधे राम
युक्ति देते कृष्ण रहे, मुक्ति दे श्रीराम

कर्मो का फल यही मिला, जीवन मे तत्काल
होता ऊपर स्वर्ग नही ,स्वर्ग की राह निकाल

सुख दुख दोनों साथ रहे,सुख दुख का संसार
दुख से अनुभव ज्ञान मिला,सुख जीवन श्रृंगार


लेखन भी इक आग

गहरे है जज़्बात रहे, गहरा है अफ़सोस
मौसम सर्दी गर्मी के, कुदरत को मत कोस

चौराहे पर भीड़ जमी, जमी पर बर्फ सी बात
सर्दी में कुछ आग जली, फिर भी ठिठुरी रात

खिड़की से है चाँद दिखा, दिखा चाँद पर दाग
लिखती दिखती वसुंधरा, लेखन भी इक आग

सुन्दरता निर्दोष रही,सुन्दरता में दोष
सृष्टि का सौन्दर्य रहा, हृदय का संतोष

रविवार, 6 दिसंबर 2020

इस युग मे महाराज

तू जिससे है खेल रहा 
वह जलती हुई आग
होता क्यो है भग्न हृदय
सच से रख अनुराग

हर पल सारे मूल्य गिरे
सम्मुख दिखता काल
महामारी से देश घिरा 
फिर भी है हड़ताल

सत के पथ पर कौन रहा 
इस युग मे महाराज
जिसने जितने मंत्र जपे 
उसमे उतने  राज

जब संकट मे देश रहा
चले गये परदेश
कोरोना में लौट रहे 
वापस अपने देश

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

बन जा संत हृदय

तेरे तुझको बांध रहे, सुदृढ़ कर निश्चय
जीवन कोई मंच नही, बन जा संत हृदय

जिसको तूने याद किया , उसकी याद सम्हाल
जो तुझको पाल रहा , वह गिरधर गोपाल

मिथ्या के है वस्त्र कुलीन, नग्न रहा है सत्य
कितने ऊँचे बोल रहे, अब उदघाटित तथ्य

वक्त सख्त और क्रूर रहा, कैसा है यह दौर
तन मन से जो जीत रहा, रहता वह सिरमौर

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

खाली है सन्दूक

घर घर बारूद बाँट रहे, घर घर है बंदूक
कैसे दुर्दिन काट रहे, खाली है सन्दूक

बिगड़ी जाती सोच रही ,बिगड़ा है आहार
बिगड़े होते चाल चलन , बिगड़े है परिवार

बिगड़े उनके बोल रहे, बढ़ती रही दरार
रिश्ते रस रिक्त हुए , ऊंची उठी दीवार

जलते घर परिवार रहे,जलती रहती रेल
दुकानों में है आग लगी, दंगो का है खेल

अब महलो का मोल नही ,बोल रहे अनमोल
शब्दो के कुछ अर्थ रहे , अर्थो को टटोल

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

बोझिल है आकाश


ऊँचे पर्वत मौन खड़े, जग में सीना तान 
इनसे नदिया नीर बहे, उदगम के स्थान

गहरी झील सी आँख भरी, बोझिल है आकाश
पर्वत टूट कर रोज गिरे, जंगल की है लाश

जितने ऊंचे आप रहे,उतने बड़े सवाल
थोड़ी सी है भूल रही, कितना रहा बवाल

बदली उनकी सोच रही , बदली उनकी चाल
ऊँचाई पर पंख लगे , हो गये वे वाचाल

जितना उनमे जोश रहा, उतने भूले होश
उतना ही आतंक करे, ऐसा जोश खरोश

दिखती दूर से एक नदी, दिखता है पाताल
मण्डवगढ़ की रूपमती , हरियाता एक ताल

महामारी में कौन लड़ा,कर लो तुम पड़ताल
सड़को पर है जाम लगा, वो करते हड़ताल

रविवार, 29 नवंबर 2020

सूरज के है पुत्र रहे


जो मूल से है भाग रहा
वो कैसे मौलिक
तू मूक जन की पीड़ा को 
अपने दम पर लिख

उनको मिलते लक्ष्य नये 
जो आलस से दूर
सूरज के है पुत्र रहे
उर्जा से भरपूर

गुमनामी के साथ जिये
होते न मशहूर
जिनके कर्मठ हाथ रहे
मेहनतकश मजदूर

जिनका अपना कोई नही
उनके गिरधर राम
गोवर्धन को लिए खड़े
लेकर वे ब्रजधाम

ऊँची ऊँची हाँक रहे
कुछ बौने से लोग 
नैतिकता का दम्भ भरे
जिन पर है अभियोग




शनिवार, 28 नवंबर 2020

यह दैविक संयोग

अब सर्दी में आग लगी , जलने लगे अलाव
अपने मन को आंच मिली, होने लगा लगाव

अपनापन था कहा गया, कहा गये वो लोग
होकर वत्सल बात करे,  करते छप्पन भोग

होठो पर मुस्कान नही , निष्ठुर सा स्वभाव
पल पल मन से लुप्त हुआ, अपनेपन का भाव

पैदल चल कर हांफ रहे , काँप रहे है पैर
हृदय को जब रोग मिला, होता पल में ढेर

अपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
अपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग

जो  चलते है नित्य नये , उल्टे सीधे दाँव
उनको मिलते रोज नये , जीवन मे भटकाव

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

गुरु ऊर्जा प्रचण्ड

गुरु चरणों मे धूल नही, गुरु चरणों मे रज
गुरु पिता और मात रहे, गुरु होते अग्रज

गुरु हाथो में फूल नही, होता हर पल दण्ड
गुरु के मानस पुत्र रहे, गुरु ऊर्जा प्रचण्ड

गुरु आस्था में ओज रहा, गुरु दे आशीष रोज
 गुरु शिक्षा और ज्ञान रहे, गुरु होते है खोज

गुरु अंतर्मन ध्यान रहे, गुरु पावन है ज्ञान 
गुरु जी करुणा सींच रहे, हम सिंचित उद्यान

सोमवार, 23 नवंबर 2020

झूठ के है स्कूल

जिनके मन विश्वास नही , वह कैसा आस्तिक
संशय से जो शून्य रहा, ऐसा एक नास्तिक

जगमग जगमग दीप्त रहे ,सच्चाई की आस
अच्छाई में खोट नही , सचमुच का संन्यास

सत के पथ पर शूल मिले ,मिले नही है फूल
झूठ के होते  नाट्य नवीन ,झूठ के है स्कूल

उनका अपना मूल्य रहा, उनके है विश्वास
दृष्टि उनकी बोल रही, वे उनके है खास

उनके अपने तौर तरीके ,अपना है व्यवहार
सुधरा अब न चाल चलन , कैसे करे सुधार

रविवार, 22 नवंबर 2020

मूर्ख बने विद्वान

खट्टे मीठे स्वाद रहे ,खट्टे मीठे बैर 
खतरे में सम्वाद रहे ,अपने होते गैर

बस्ता और स्कूल रहा, बच्चा है गणवेश 
शिक्षा रोटी भूख हुई, शिक्षक है उपदेश

हर घर मे दुकान हुई , शिक्षा कारोबार
जितने स्कूल रोज खुले, उतना बंटाधार

शिक्षा भी बदनाम हुई , शिक्षित बेरोजगार
अपने हक को मांग रहे, खेती न व्यापार

पुस्तक कूड़ेदान मिली, ज्ञान हुआ गुमनाम
ज्ञानी जन तो मूर्ख हूए, मूर्ख बने विद्वान

शनिवार, 21 नवंबर 2020

रहा झूठ पर जोर

कथनी करनी भिन्न रही , रहा झूठ पर जोर
बाहर से कुछ और रहे, भीतर से कुछ और

बदले उनके भाव रहे , बदले है तेवर
घर पर जब है रेड डली , कितने है जेवर

जितना उठता भाव रहा, उतना ऊँचा मूल्य
सस्ती केवल जान रही , मानव पशु समतुल्य

सीता में है सत्य रहा, सत्य पथिक है राम
सच्चाई का कोई नही , केवल है हनुमान

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

यादे रोशनदान

यादे घर का द्वार रही ,यादे रोशनदान
यादो में से झांक रहे खेत गाँव खलिहान

यादे छुक छुक रेल रही , यादे नैरोगेज
यादो में है कैद रही , बाबू जी की मेज

यादो में चल चित्र रहे , याद रहे कुछ मित्र
यादो में है महक रहे, खुशबू चन्दन इत्र

यादो में गुलजार रहा , अपनापन और प्यार
यादो में है दाद मिली , कविता का संसार

बुधवार, 18 नवंबर 2020

करना विषपान

मन्दिर में मूर्ति है
 मूर्ति में प्राण
प्राणों के भीतर तुम
 भर लो मुस्कान

मीरा और सूर ने भी 
छेड़ी थी तान
कान्हा की भक्ति है
 राधा गुमनाम

मन कितना मैला है
 मैला इन्सान
मैले में खेला है
 पप्पू शैतान

धन कितना तुम पा लो
पर गम को सम्हालो
 प्याले में हाला है 
करना विषपान

तुमने जो पाया है 
सब कुछ वह गाया है
काया ही माया है 
जीवन वरदान

शनिवार, 14 नवंबर 2020

क्या करता एक दीप

जग में तम घन घोर रहा, क्या करता एक दीप
जो मर कर भी अमर हुआ , उसका आँगन लीप

महके दीप उजियार यहाँ, चहके खग कलरव
बारूद में मत आग लगा, दीप उत्सव अभिनव

महका हर घर द्वार रहा , चहके खग दल व्योम
दीपोत्सव का सार यही, हो पुलकित हर रोम

जगमग जगमग दीप्त हुआ , दीपो का त्यौहार
दीपो की बारात चली , डोली लिये कहार

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

धन से है तेरस

दीपक  से अनिष्ट टले ,कर लो दीप विधान
प्राणों को चैतन्य करो, दीपक का आव्हान

भीतर से जो दीप्त रहे ,उजले रहे विचार
अंधकार चहु और हटे, मन से हटे विकार

भीतर भीतर शोर रहा , भीतर से है शान्त
भीतर से उद्विग्न हुआ, भीतर से आक्रान्त

भीतर ही अंधियार रहा, भीतर रहा विहान 
भीतर से क्यो भाग रहा, भीतर है भगवान 

धन से धन ही बढ़ा यहाँ, धन बिन जस का तस
धन बिन होती नही दीवाली, धन से है तेरस

रविवार, 8 नवंबर 2020

साहस की दरकार

जैसे जीवन अश्व रहा, धीरज उसकी लगाम
साहस से है धैर्य बड़ा, धैर्यवान बलवान

निष्ठुर सा व्यवहार रहा ,पत्थर से है भाव 
पत्थर सा इन्सान मिला , घावों पर फिर घाव

दिखता था माधुर्य यहाँ , कोमल सा व्यवहार
ऐसे भी थे लोग भले, जो चले गये भव पार

लेखन में वो धार नही , लेखन नही कटार
सिहासन न डोल रहा, साहस की दरकार

शनिवार, 7 नवंबर 2020

ओछे ओछे खेल

बिगड़े उनके बोल रहे , भड़के है जज्बात
जब भी उनसे बात हुई , बिगड़े है हालात

जितने उनके साथ रहे , हम उतने परिचित
उतना ही अलगाव रहा,  उतने ही विचलित

जितने अन्तर्बन्ध रहे ,उतने रहे प्रबंध
दोहरेपन ने छीन लिये, सामाजिक संबंध

रिश्तो पर है गाज गिरी, स्वारथ की विष बैल
हम सबने है खेल लिये , ओछे ओछे खेल


बुधवार, 4 नवंबर 2020

ऐसा क्या सन्यास भला

कैसा यह अभिसार रहा,कैसा रहा प्रणय
हृदय से अनुराग गये, दृष्टिगत अभिनय

मन की तृष्णा वही रही ,रहा हृदय में मोह
ऐसा क्या सन्यास भला, जिसमे विरह बिछोह

मन के भीतर भाव रहे, सीता के लव कुश
खुशिया जिसको नही मिली ,वह फिर भी है खुश

दिल से दिल के नही मिले जितने भी तार
कितने भी वे साथ रहे ,फिर भी है तकरार

ऐसी करवा चौथ रही

स्नेह शून्य हर भाव रहा, नही प्रणय अनुरोध
घूमता फिरता चांद रहा ,ऐसी करवा चौथ

नित होता संग्राम रहा, नित नित रहे विवाद
ऐसे भी कुछ लोग यहाँ, जो इनके अपवाद

सजना को वो याद करे, भरे याद में मांग
सजनी करवा चौथ रही , अदभुत रचती स्वांग

जब तक तेरा प्यार रहा, तब तक यह संसार
मुख में मीठे बोल रहे , मत उगलो अंगार

सोमवार, 2 नवंबर 2020

महके प्राण बसन्त

सूरज बिन प्रभात नही , चंदा बिन न रात
नभ से तारे ताक रहे , उनसे कर लो बात

भीतर भीतर श्वास भरो, छोड़ो श्वास महन्त
पूजा कर फिर ध्यान धरो ,महके प्राण बसन्त

प्राणों का संधान रहा, यौगिक प्राणायाम
सब रोगों से मुक्त करे , प्रतिदिन का व्यायाम

साँसों का आरोह रहा , साँसों का अवरोह
सांसो से क्यो हार रहा, साँसों को तू दोह


रविवार, 1 नवंबर 2020

उतना ही आकाश

उर के भीतर राम रहे , उर के भीतर कृष्ण 
फिर भी किंकर्तव्यविमूढ़ , कितने तेरे प्रश्न

लाली नभ पर फैल रही , सूरज पर रख आस
जितना है विश्वास भरा, उतना ही आकाश 

तुझमे तेरे देव रहे , रख धीरज सदैव
भव में नैय्या तैर रही , नैय्या को तू खैव

जलधि भीतर द्वीप रहे , जलधि में है सीप
जलधि लांघे तीर नही , तू जलधि से सीख

जलधि जल का राज रहा, जलधि रहे जहाज
जलधि से जल खींच रहा , सूरज कल और आज

जलधि का सम्मान करो, पूजो जल को मित्र
जल से निर्मल भाव रहा, तन मन हुए पवित्र

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

परिभाषा अभिनव


उलझा उनका आज रहा 
उलझा उनका कल
मिले जुले जब साथ चले
मिल जाते सब हल

सबके अपने भाव रहे 
 सबका अपना भव
सबके अपने अर्थ रहे 
 परिभाषा अभिनव

अपनो से वे दूर रहे
 गैरो से वे पास 
गैरो से भी नही मिला 
किंचित भी विश्वास

मंजिल उसको नहीं मिली ,
जो चलता अनुकूल
चलता नाविक जीत रहा 
धारा के प्रतिकूल

रावण में न धैर्य रहा 
धीरज धरते राम
धीरज जिसने पाया है 
बन जाते सब काम




रविवार, 25 अक्तूबर 2020

रावण क्रुध्द विचार

रावण कोई देह नही , रावण क्रुध्द विचार
रावण से जब युद्ध हुआ, गया राम से हार

रावण से संघर्ष हुआ, जीत गये है राम 
रावण घृणित कृत्य करे , लोभ क्रोध औ काम

रामायण इतिहास रहा, राम कथा को सुन 
होता कोई शूद्र नही , शबरी में सब गुण

भक्ति के नव रूप रहे,नव दुर्गा के धाम 
नवमी पर है राम मिले, दर्शन है अभिराम

खुद से ही संघर्ष करो,खुद में रावण राम
खुद से ही अब शुरू हुए , जीवन के संग्राम

राम सतो गुण भाव रहा, राम रहे अवतार
रामायण है चाल चलन , अपनी चाल सुधार

देहरी में हो दीप


घर मे खुशिया बसी रहे, देहरी में हो दीप
दोहरे होते चाल चलन , उन सबको तू लीप

मौलिकता तो मिली नही , मिले मिलावट लाल
मिले जुले ही रूप मिले , मौलिकता कंगाल

मौलिक कितने प्रश्न खड़े, कितने भी गम्भीर
फिर भी मूल से जुड़े रहे, निर्धन संत फकीर

मिले जुले कुछ भाव रहे, मिलती जुलती गंध
हिल मिल कर कुछ बात करो, सुधरेंगे सम्बंध

मिलना जुलना बन्द हुआ , केवल है व्यापार
रिश्तो पर अब जंग लगी , दे दो कुछ उपचार

पानी बन कर बह गए, कितने ही संबन्ध
बांध सको तो बांध लो , रिश्तो पर तटबंध

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

मिले नही जगदीश


अंतर्मन से दीप्त रहे , रखे न मन संशय 
माँ दुर्गा का भक्त वही , जो रहे सदा निर्भय

सबसे ही सम्वाद करे , करे न वाद विवाद
सबका ही वह प्रिय रहा, लेता सुख का स्वाद

माँ बहनों का मान रखे करे नही अपमान
सपने उनके सजे रहे , बचे रहे अरमान

जीवित मां का मान रहे , माता को मत तज
माता को जो छोड़ रहा ,होता जो निर्लज्ज

जीवन भर खूब कान किया , भज लेना अब ईश
जो भव में ही रमा रहा , मिले नही जगदीश

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

दिखे न खुद के छेद

जीवन अपना धन्य करो ,कर लेना कुछ काम
जीवन मे विश्राम नही , जप लेना प्रभु राम

जब तब मिथ्या बोल रहा, झूठ न कर प्रतिवाद
बक बक से है नही मिला, माँ का आशीर्वाद

ये आंखे जो बोल रही , खोल रही है भेद 
दूजे के ही दोष दिखे, ,दिखे न खुद के छेद

दुर्जन से वह दूर रहे , सज्जन के नजदीक 
माँ दुर्गा की नीति यही , सत का पथ ही ठीक

सबके हित का ध्यान रखे , सज्जन को प्रश्रय
माता का तो भक्त रहा, सच्चा संत हृदय

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

माँ से हो सम्वाद

माता सच के साथ रहे 
सचमुच दे सम्बल
सच से मिलता जोश रहा 
सच का पथ उज्ज्वल

सत के रथ पर कृष्ण रहे 
सत के पथ पर राम
जो सच के है साथ रहा 
सुधरे उसके काम

झूठ के होते पैर नही 
झूठ से ईर्ष्या बैर 
झूठ तो पकड़ा जायेगा 
अब तब देर सवेर

सत्कर्मो से पुण्य मिला 
मिला हैं आशीर्वाद
माँ को तुम प्रसन्न रखो 
 माँ से हो सम्वाद

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

नभ उड़ने की चाह

माता का वरदान रहा, माता का है शाप
माता वो ही पायेगा , जो होगा निष्पाप

माता जी चैतन्य रही , भक्ति कर अन्यन्य
भक्ति से कर पायेगा , जीवन अपना धन्य

मन चिंतन अविराम रहा, नभ उड़ने की चाह
माता सच की लाज रखो ,सच होता है स्वाह

सच्चाई की राह कठिन ,झूठ के पर अनगिन
सच न अब उड़ पायेगा, डसती है नागिन

झूठ की होती बात कई ,सच की करनी एक
सच ही पूजा जायेगा, सत का पथ ही नेक 


मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

माँ के आशीष शाप बहे



आँसू से है पीर बही  आंसू की इक धार
माता की कुछ मांग रही ,माँ के है अधिकार

माता सब कुछ जान रही ,तू भी ले कुछ जान
सत के पथ से डिगा वही , जो होता बेईमान

माँ को अर्पित भाव रहे ,अर्पित है सब श्लोक
माँ के आशीष शाप बहे , पाप रहे न शोक

माता जी की ज्योत जली ,महकी मस्त पवन
चहकी चहकी खग की टोली, कर लो मंत्र हवन


सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

गहरे काले केश

माँ से सच्ची बात करो अच्छा सा व्यवहार 
माँ से सुधरे शुक्र शनि ग्रहों का परिवार

माता जी सब कष्ट हरो ,हम तो है परदेश
तुम इतनी क्यो श्याम रही, गहरे काले केश

माता जी से शौर्य मिला , पाये दिव्य विचार 
माता बुध्दि देत रही , दे बुध्दि को धार

मुश्किल से है जुड़ पाती , मन से मन की डोर
माँ से मन प्रसन्न हुआ,  माँ से मन विभोर

माता मीठी बात करे  माँ निर्मल स्वभाव
माँ पिघली और मोम हुई समझी है हर भाव

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

तेरे है गोविंद

माता निर्मल चित्त रही ,माता शुध्द विचार
माता जी नवरात रही ,माता जी दिन वार

माँ के सुख का ध्यान रखो ,माँ हर सुख की खान
माँ से शुभ आशीष मिला , जीवन का वरदान 

सब ग्रंथो से सार मिला, मोह माया निस्सार
माता से है मोक्ष मिला ,स्वर्ग न बारम्बार

माँ प्यारा एक बोल रही ,गाँठे मन की खोल
माँ से ही सीख पायेगा ,मीठे प्यारे बोल

माता का गुणगान करो, माता गुण की खान
हीरे मोती रत्न मिले , रत्नों की खदान

माताजी भूख प्यास रही , गहरी मीठी नींद
भूखा सो नहीं पायेगा ,तेरे है गोविंद

माँ रेती सी बिखर रही

माँ नदिया का रूप रही, माँ धरती है खेत 
माँ रेती सी बिखर रही, माँ निर्मित निकेत

माँ घर का एक द्वार रही चूल्हे की है शान
झाड़ू से अब साफ करो , माँ का रोशनदान

माँ धड़कन में सांस रही ,प्राणों का आव्हान
माँ रोगों को दूर करे, करती रोग निदान

माँ सुबह की भोर रही , सूरज की है शाम
माता से धन धान्य मिला,पाया पद सम्मान

बच्चों को माँ पाल रही , माँ है पालनहार
माता से परिवार रहा, माता से सरकार


माँ भक्ति निष्काम रही , सूक्ति का है पाठ
सेवा से सब सूत्र मिले , मिल जाते हर ठाट 



शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

माँ शिक्षक स्कूल

माँ मोहक मुस्कान रही माँ अमृत का घूँट
माँ वत्सलता बाँट रही लूट सके तो लूट

माँ उर्जा में ज्योत रही ,माँ शिक्षक स्कूल
माँ का संग हर बार मिला माता पल अनुकूल

माँ शेरो पर सैर करे, होकर के निर्भीक
माँ सज्जन की पीर करे हर पल स्वाभाविक

माता जड़ और मूल रही माँ अंकुरित बीज
माता का सत्कार करो ,दुख न दो हरगिज

जब भी माता साथ रही मिलती है हर चीज
माता तिथि दूज रही , माँ होती है  तीज 

शक्ति देती साथ रहे , भक्ति दे सम्बल 
माता का कर माथ रहे ,ममता दे हर पल





गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

होते है संकेत

दिखता किसको ध्येय यहा ,ध्येय रहा अज्ञेय
योगी के ही साथ रहे ,जीवन के सब श्रेय

नयनो से है बात हुई ,नयनो से जज्बात 
जो नयनो से शून्य रहा, दिन भी उसके रात

दिल से दिल तक बात बढ़ी ,होते है संकेत
प्रियतम रास्ता देख रही , है नयनो में भेद

रोगों का आतंक रहा ,कोरोना एक रोग 
कोरोना के साथ गया , लोगो का भय शोक

नयनो में विश्वास रहा ,नयनो में एक आस
नयनो से है लुका छिपी  ,कुछ नयनो के दास

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

दिखा नही कही यक्ष


घर घर मे है युुध्द हुुयेे , लड़ते लोग तमाम
लड़ते लड़ते पस्त हुए , बन्द हुआ संग्राम

घर मे ही संतुष्ट रहो ,गृह भोजन से पुष्ट 
घर मे न रह पायेगे , दुर्जुन दुर्गुण दुष्ट

कितने सारे प्रश्न खड़े , दिखा नही कही यक्ष
सबके अपने स्वार्थ रहे ,सबके अपने पक्ष

पत्तो से ही तुष्ट हुए ,  घी दीपक न धूप
शिव का सुंदर रूप रहा ,होता दिव्य स्वरूप 

घर मे सारे देव रहे , पूर्वज रहे महान
घर गंगा का तीर रहा ,घर है चारो धाम 




कर्मठ करते शोर नही

उल्टी सीधी बात करे ,ले लेता अनुतोष
झूठ तो तेरे कंठ रहा, फिर कैसे निर्दोष

शक्ति से साम्राज्य रहा, भक्ति से वैराग्य
माँ का आशीष साथ रहा ,जीवन है सौभाग्य

कर्मठ करते शोर नही ,होते बिल्कुल शांत
कर्मशील का विश्व सगा , कर्महीन आक्रांत

जो कुछ भी अज्ञात रहा , तू कर लेना ज्ञात
ज्ञाता से ही ज्ञान मिला ,कर ज्ञानी से बात

जितने भी प्रयत्न हुए ,उतना ही विश्वास 
मंजिल कोई दूर नही ,बिल्कुल तेरे पास

मरुथल में नीर मिला, रांझा को न हीर
मृग तृष्णा सी प्यास रही , धर लेना तू धीर

सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

रिश्ते दिल के दर्द हरे

उनको न संतोष रहा, उनके भीतर रोष 
खुद को ही वे धन्य कहे, दूजे को दे दोष

रामायण में राम रहे ,गीता में भगवान 
ग्रंथो में कुछ मर्म रहा, उसको ले पहचान

दूब पर अब है ओंस ,पड़ी ठंडी हुई बयार
पंछी चहके खुले नयन, पैदल चलो सवार

सुबह से स्पर्श मिला, सूरज दे रफ्तार
अंधियारे को दूर करे उग उग के हर बार

जिससे सबको प्यार मिला ,पाया धन संसार
सिंह वाहिनी मां अम्बे , सुन ले मेरी पुकार

रिश्ते होते प्यार भरे ,रिश्ते है अनमोल 
रिश्ते दिल के दर्द हरे, मीठे मीठे बोल

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

भय के कितने भूत

 गैरो से है प्यार मिला , अपनो से दुत्कार
जीवन का श्रृंगार किया , बिन स्वागत सत्कार

भीतर से ही पस्त हुआ ,भीतर से मजबूत
भीतर भीतर रहा करे , भय के कितने भूत

अपनो से सामर्थ्य मिला अपनो से सम्बल
अपनेपन से पायेगा, जितने भी है  हल 

कितने ही तो मंत्र जपे ,किया पूण्य और दान
सच्चा जीवन छूट गया ,छूट गया ईमान

अपने जो आराध्य रहे वे सबके भगवान 
उनके जितने रूप रहे , सबको ले पहचान

जिससे जितना प्यार किया उतना ही अधिकार
प्यार बिना ही तोल मिला , अब नफरत स्वीकार

कविता अमृत बाँट रही

नारो का ही शोर रहा ,मुद्दे हो गये मौन 
कविता अमृत बाँट रही, समझायेगा कौन

जिसका प्रतिपल साथ रहा जो भीतर बाहर
वो है मेरे कृष्ण कन्हैया , वे कान्हा गिरधर

पल पल बरसा नेह रहा स्नेहिल है हर पल 
बारिश जल को बांट रही नदिया हुई चंचल

नियति के संजोग रहे लगे गुणा और योग 
भागित होते चले गये, प्यारे प्यारे लोग 

नैया तो मझधार खड़ी जीवन है सुनसान
कितने तूने युध्द लड़े , फिर भी है संग्राम

 भीतर जब अवरोध रहा , बिखरा बाहर क्रोध
तिल तिल कर जल जायेगा ,मृत्यु का है बोध

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

वन अच्छे लगते है

वृक्ष की छांव और घने वन अच्छे लगते है 
अंकुरित बीज जड़ तने सीधे सच्चे लगते है 
बना लो राहे और पगडंडिया कितनी भी 
घनी छाया के बिन सारे रास्ते कच्चे लगते है 

ईश देता आशिष

जब न किसका साथ मिला, ईश है तेरे साथ
ईश करता है पथ को रोशन ,दिन हो चाहे रात

तू अपना एक दीप जला, पथ होगा जग मग 
पथ पर पग बढ़ जायेगे ,मत होना डग मग

उठता उसका ही जीवन है, जो करता कोशिश
ईश देता है साथ रहा ,ईश देता आशीष

रिश्तो से है भाग्य जगा ,रिश्तो से है जोश 
रिश्तो में हो नई ताज़गी ,रिश्ते हो निर्दोष

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

वह कोरा है झूठ

दिखता नही सत्य सनातन ,दिखते केवल ठूठ
तू जिसको है जान रहा ,वह कोरा है झूठ

सत्कर्मो से स्वर्ग मिलेगा ,कर ले अच्छे काम
मृत्यु तो है सत्य सनातन, जीवन है संग्राम

नैतिकता तो चली गई, अब नैतिक है पाठ
उपदेशो में रही सादगी ,महाराजा से ठाट

विचलित होता चित्त रहा, चिंतित है महाराज
छुप कर बैठे पाप कर्म है ,गहरे गहरे राज

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

प्राचीनता का बोध

प्रगति उसके साथ रही ,जहाँ चिंतन और शोध
खंडहर में अवशेष मिले ,प्राचीनता का बोध

निर्मल दृष्टि  कहा मिली, कहा है निश्छल प्रेम
अपनापन है जहाँ मिला ,वही मिला सुख चैन

जिनके हिय संतोष रहा , वह सच्चा है संत 
वस्त्रो से सन्यास नही , हो इच्छा का  अंत

कथनी करनी एक रहे ,धन का न संचय 
भोगो से जो दूर रहा , रहता संत हृदय

जिनके मन उल्लास नही ,अकिंचन है दीन
संतुष्टि का भाव रखे ,सज्जन तो प्रतिदिन
 

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

महंगे है जज़्बात

कितना सारा खून बहा, आँसू बहती पीर 
मेहनत पसीना बो रही ,सूखी है तकदीर 

सोचो समझो जान लो ,फिर करना तुम बात
शब्दो का कुछ मूल्य रहा, महंगे है जज़्बात

पूरे न अरमान हुए ,फिर भी है जज़्बात
हर दिन के है साथ रही ,घनी अमावस रात

सबके अपने स्वार्थ रहे ,अपने अपने हित 
परहित जीवन नही मिला ,मिली नही है प्रीत

छन्दों का यह देश रहा ऋषियों के उपदेश 
अंतर्मन आनंद रहा सुरभित है परिवेश

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

आधा है वह सत्य

आँखों से जो देख रहा ,आधा है वह सत्य 
सुनने पर भी यही मिले ,सच्चे झूठे तथ्य

कितना सारा प्यार मिला ,कितना सारा सुख 
मन फिर भी न तृप्त हुआ ,माता हैं सम्मुख

तन माटी का हमे मिला, मन अविनाशी शिव
चिंतित तू क्यो हो रहा ,विचलित क्यो है जीव

जिनके कारण सदा हुए ,भावो से अभिभूत
इतने क्यो है  रुष्ट हुए ,भारत माँ के पूत

मन हर्षित है हो रहा ,धर कर जिनका ध्यान
राम रूप भगवान मेरे, शिव शंकर हनुमान

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

कहा गई मुस्कान

जीवन मे कही मान मिला ,मिला कही अपमान 
मन की खुशियां कहा गई ,कहा गई मुस्कान

अपने थे जो चले गये ,कहा है अपनापन
रस जीवन मे नही बचा, खोया है बचपन

जिसके मन मे स्नेह नही ,वहा नहीं भगवान
जो होता है तरल हृदय ,वह सबसे धनवान

एक प्यारी सी याद रही यादो के बीज
प्यारा था जो नही रहा रह गया है नाचीज़

कहा पे सच्चा प्यार रहा, निश्छल सी मुस्कान
मासूम बचपन सिसक रहा ,जीवन है श्मसान

सोमवार, 28 सितंबर 2020

सज्जन है संतुष्ट

सबके अवगुण देख रहा 
दिखा न खुद का दोष
दुर्जन को न कभी रहा 
थोड़े में संतोष 

बौने है प्रतिमान नये 
धीमी है रफ्तार
धीमे धीमे लुप्त हुए 
प्रतिभा अविष्कार

प्रतिबिम्बो में देख रहे 
जीवन का वो सत्य
दिखते अब तो उन्हें नही
 अपने अनुचित कृत्य

थोड़ा भी है जिन्हें मिला
वे सज्जन संतुष्ट
सब कुछ पाकर दुखी रहे
लोभी जन और दुष्ट


रविवार, 27 सितंबर 2020

ऐसा संत कबीर

जो दुख में भी दुखी नही होता नही अधीर
सुख में भी जो डिगा नही ऐसा संत कबीर

जो संतो के संग रहा रखता मन समभाव
मानव नही  देव रहा झेल गया हर घाव

खुद के बल पर टिका हुआ खुद पर है विश्वास
जो मूल से है जुड़ा यहा छू लेता आकाश

मिल कर के भी घुला नही इक ऐसा भी रंग
सुख सुमिरन भुला नही रहता सत के संग

मन मे तो संतोष नही दिखती नही उमंग 
वह कैसा संन्यास भला कैसे हो सत्संग

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मानव वह बेडौल

मन को तू क्यों मार रहा मन का कर उपचार
मन ही मन जो दुखी रहा उसका न संसार

चिंता तन को राख करे तू चिंतित क्यो होय
चिंतन जीवन सुखी रहे चिंता को क्यो ढोय

चिंतन पथ परमार्थ भरा चिंतित क्यो है जीव
चिंतन ने नव स्वर्ग रचा स्वर्गिक सुख की नींव

मौलिकता का मूल्य नही वह तो है अनमोल
मूल से जो है भाग रहा मानव वह  बेडौल

भीतर भी है नाद रहा उससे कर संवाद 
भीतर न रह पायेगा चिंता और अवसाद

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

जीत जाती खुद्दारी है

अंधियारे के भीतर सुलगती रही चिंगारी है 
चिंगारी के बिना उजाले ने यह दुनिया हारी है
बदल जाते है भाग जब होती सीने में आग है
हारी सदा ही खुदगर्जी जीत जाती खुद्दारी है

रविवार, 20 सितंबर 2020

हे!कान्हा नटखट

इतने दिन तुम कहा रहे, हे!कान्हा नटखट
सूनी सूनी रही डगरिया, सूने है पनघट

जंगल मे सुख चैन बसा ,नियति का सौंदर्य
झर झर निर्झर शोर करे, सिंह का अद्भुत शौर्य

सन्नाटो में शोर नही ,उपवन बिखरे राग
कोकिल बोले मीठी बोली ,करे ठिठौली काग

जीवन मे जहां राम नही वहां न निश्छल स्नेह
छल की कैकयी रोप रही है मन मे कुछ संदेह

बुधवार, 16 सितंबर 2020

पितरो का परलोक रहा

दादी का जिन्हें प्यार मिला दादा की दुत्कार 
सचमुच जीवन पाया है पाये है अधिकार

पूर्वजो का साथ मिला पाई सूझ बूझ सीख
नन्ही गुड़िया नाच रही किलकारी और चीख

कितने सारे फूल गिरे पग पग बरसा नभ
माँ के पग आशीष रहा जीवन है जगमग 

कितनी पावन रीत रही कितना प्यारा भव
पितरो का यह श्राध्द रहा श्रध्दा का उत्सव

अपने थे जो चले गए इस भव के उस पार 
पितरो का परलोक रहा सपनो का संसार

रविवार, 13 सितंबर 2020

कहा गए है वृध्द

सुख के साधन कहा गए कहा गए है वृध्द
अनुभव के जो पाठ रहे जीवन था समृध्द

अपनो का सामीप्य मिले रिश्तो का हो मान
सीख मिले बुजुर्गो से अनुभव के वरदान

धन वैभव तो वही रहा जहां पितरो का साथ
पूर्वज जब तक साथ रहे कर लो उनसे बात

जब तक उनका साथ रहा पूरे थे अरमान 
हम बच्चे ही बने रहे रखते थे वे ध्यान

हरि के हाथों फूल खिले दे कंचन मुस्कान
मात पिता से पाया तन जीवन के सामान

सोमवार, 7 सितंबर 2020

दुख का साथी कौन

टिम टिम जलता दीप रहा जुगनू के है दल
जुगनू करते शोर रहे दीप से तम उज्ज्वल

दुख के साथी कहा गये सुख के साथी साथ
पीडायें दिन रात जगी होते छल और घात

अपनो का न साथ रहा अपनो का न बल
अपनो से ही हार गया डूबता अस्ताचल

सपने सारे ध्वस्त हुए कविता हो गई मौन
छल पाकर हम पस्त हुए दुख का साथी कौन

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

साथी है बेईमान

मुश्किल जो है राह मिली सौ योजन या कोस
तुझसे तेरा छीन गया उसका क्या ?अफसोस

भोला सा इंसान रहा इक भोली सी बात
जिसके कोई साथ नही उसके भोलेनाथ

किस्मत से न लक्ष्य मिले बन तू क्षमतावान
अक्षम करता है सिकवा सक्षम का भगवान

सज्जन के साथ रहा ईश्वर का वरदान
तेरा कोई दोष नही  साथी है बेईमान

शनिवार, 22 अगस्त 2020

गिरधर और गोपाल

रिश्ते उतने साथ रहे जितने थे सम्बन्ध
मन से मन को बांध रहे स्नेहिल से अनुबंध

क्या होता है पुण्य यहाँ क्या होता है पाप
पापी था जो डूब गया मर गया अपने आप

गिर कर उठता चला गया रहा सदा सक्रिय
उसका ही है भाग्य जगा रहा सभी का प्रिय

चिड़िया भी है चहक रही चहकी हर चौपाल
बरगद पीपल छाँव पले गिरधर और गोपाल

बिखरी जाती रेत रही सूने सूने तट
उखड़े कितने वृक्ष यहां सजते है मरघट


गुरुवार, 20 अगस्त 2020

श्रम का अमृत

पौरुष से है भाग्य जगा नियति भी है बाध्य 
मंजिल कोई दूर नही सब कुछ है श्रम साध्य

जीवन कड़वा नीम नही मीठा है इक फल
मीठी मीठी बात करो मिल जायेंगे हल

श्रम से सारे काज हुए होता क्यो ?नाराज 
श्रम से सब कुछ पायेगा मत करना तू लाज

श्रम का ही तो मूल्य रहा ,बिन श्रम सब बेकार
आलस कर जो भाग रहा, कर्मो से मक्कार

उसका कोई मोल नही जो करता खट पट
झट पट जिसने काम किया होता वो कर्मठ

श्रम साधे है काज सभी जीवन का है मूल
श्रम का अमृत बाँट लिया देवो ने मिल जुल



रविवार, 2 अगस्त 2020

माँ

माँ कंचन सी रूप रही ,माता उजली धूप
माँ आंसू को पोंछ रही, दुख सहती चुप चुप

माता सुख की छांव रही ,हर लेती सब दुख
माँ करती उपवास रही ,ली बेटे की भूख

माँ तो हरदम साथ रहे ,माँ देती सम्बल 
माँ नदिया बन नीर बहे ,माँ यमुना चम्बल

माता होती रात रही ,होती गहरी नींद
दूब को देती ओंस नई ,जल को दे अरविंद
 
माँ बेटे को प्यार करे ,होकर के वत्सल 
गौमाता भी चाट रही, बछड़े को पल पल

 माँ पत्ते और पेड़ रही ,माँ होती फल फूल 
माँ टहनी पर नीड़ रही ,चिड़ियों का स्कूल 

माँ का सपना टूट गया ,उठ गया विश्वास 
जब बेटे के हाथ पीटी ,झेली है भूख प्यास

राम उसी के होय

राम राम तो सब कहे राम रहे न कोय
जो बन कर के राम रहे राम उसी के होय

राम नाम सत शब्द रहा राम रहे सत्कर्म 
राम रहे निज आचरण राम रहे है धर्म

बसे राम हनुमान हृदय राम बसे हर जीव 
निकट राम लक्ष्मण रहे राम सखा सुग्रीव

राम सत्य संकल्प रहे राम रहे हर आस
रामायण जी यह कहे राम रहे विश्वास

जहा राम वहां स्नेह रहा प्यारा सा है गेह
बारिश से है भींग रही राम कृपा से देह

राम प्रखर पुरुषार्थ रहे राम रहे आराध्य 
साधक जीवन सुखी रहा पाया जो भी साध्य 

जिनके भीतर अहम नही उनके भीतर राम 
सहज सरल और तरल नयन मर्यादा के धाम


गुरुवार, 23 जुलाई 2020

तेरी परछाई है

भींगे हुए सपनो ने 
ओढ़ी रजाई है
बीती हुई यादों की 
तस्वीर सजाई है
सोई हुई रातो ने 
निदिया लगाई है
गीतों की ये धुन है 
जुगनू की रुन झुन है
सीने में धड़कन है 
तेरी परछाई है

उगता हुआ सूरज है 
डूबता हुआ तारा है 
सींचा गया उपवन 
अब कांटो से हारा है
खुशियों की लालिमा 
किसने चुराई है 
लूटी हुई बस्ती है 
बिखरा अंधियारा है

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

शीश पर नील गगन

शिव से रति है काँप रही ,काँपे देव अनंग
जप तप और पुरुषार्थ कर, शिव का कर ले संग

शिव के चरणों भू मण्डल शीश पर नील गगन
बादल से है गरज रही शिव जी की गर्जन

शिव के शिखर गंग बही ,धरते हर दम ध्यान
शुध्द बने प्रबुध्द बने , योगी और हनुमान

शिव शम्भु को जपा करो बोलो हरदम ओम
पुलकित होती देह रही झंकृत है हर रोम

मन शिव का अनुरक्त हुआ शिव व्यापे इस देह 
शिव जी हर दम बांट रहे निर्मल निश्छल स्नेह


शिव सेवक भी पूज्य रहे , पूजित है परिवार
पल प्रतिपल है पूज्य रहा श्रध्दा का सोमवार




रविवार, 19 जुलाई 2020

काँपे दुष्ट अधम

शिव के हाथों नाद रहा डमरू की डम डम
भूत भावी कल नाच रहे काँपे दुष्ट अधम

शिव ओघड़ के रूप रहे ,लम्बोदर के अज
रूप तो क्षण भंगुर रहा रूप के मद को तज

उनके हाथों काल रहा होता तीक्ष्ण त्रिशूल
सब ग्रंथो का सार यही शिव ही सबके मूल

कालो में महाकाल रहे भोलो के है नाथ
दुष्टों को न क्षम्य करे कमजोरों के साथ

शिव जी पर है बिल्व चढ़े पाये धतुरा भांग
पा लेते  जल दूध दही सादा अनुष्ठान

शिव शम्भू की थाह नही ,वे मानस के हंस
उनसे ही तू प्रीत लगा कट जायेगे दंश

शिव अनुभव के नेत्र रहे अनहद के वे ज्ञान
सच्चाई की ताकत से होगी कब पहचान

जिनका होता कोई नही उनके तो भगवान
शिव निर्धन के मित्र रहे सज्जन के सम्मान


हृदय में न बैर रहे रख कर्मो में आग
शिव के मस्तक नीर बहा गर्दन में है नाग

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

कौड़ी की भी देह नही

ज्यो ज्यो जलती ज्योत रही महका है परिवेश
पावन सुरभित पवन बही अनुभूति होती विशेष

अनुभव से तू जान रहा कर अनुभव का मान 
अनुभवी से सूत्र मिले , बन जाते हर काम

हर दर्पण में झांक रहा ताक रहा है रूप
मद यौवन का गया नही पद कुर्सी की भूख

खुद ही पर है जोर रहा खुद को कर बलवान
खुद में ही जो दोष दिखे उनकी कर पहचान

तुझमे तेरे देव रहे खुद पर कर विश्वास
कौड़ी की भी देह नही बन जाती जब लाश

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

लिपटे देह भभूत

जैसा जिसका भाव रहा वैसे है भगवान
शिव ज्योतिर्मय रूप रहे ज्योति का आव्हान

 सोमवार हर वार रहे मन से हटे विकार 
शिव जी के इस मास में सत्य वचन स्वीकार

शिव जी तो अवधूत रहे उनके भैरव भूत
नागों के वे नाथ रहे लिपटे देह भभूत

जीने का आधार रहा शिव जी का परिवार
वे बंधु है मात पिता सबके तारण हार

शिव जी सबके पूज्य रहे क्या दानव क्या देव
भस्मासुर वर मांग गया रावण के महादेव

शिव जी से संतोष मिला पाया है प्रसाद
संकेतो से बात करे शब्द परे सम्वाद

शिव संजीवन बाँट रहे ,करते रोग निदान
मृत्युंजय महामंत्र रहा,जीवन का वरदान

शिव का सत्संकल्प रहा हो सबका कल्याण
सज्जनता के साथ रहे,बीज ,नींव से निर्माण

रविवार, 12 जुलाई 2020

जीवन का संजय

पूजा व्रत से नही मिला कोई भी वरदान
जिसके सच्चे भाव रहे उसका है भगवान

पल पल ढलती रात गई दिन ढलती धूप
प्रतिपल जीवन बीत रहा,धुंधला होता रूप

जीवन से क्यो हार गया विष का करके पान
कितने थे अरमान भरे कैसा था इंसान

जीवन है चल चित्र नही क्यो करता अभिनय
तुझको हर पल देख रहा  जीवन का संजय

तन मन को है बांच रहा जांच रहा कण कण
जैसा दिखता रूप यहां दिखलाता दर्पण

शनिवार, 11 जुलाई 2020

कितने सारे ठूठ

जिसके जितने रंग रहे वह उतना बदरंग
वह वैसा ही बना यहाँ जिसका जैसा संग

कितने थे अंदाज नये कितना फैला झूठ
मैला कुचला एक कमल कितने सारे ठूठ

धन पाकर न तृप्त हुआ ये कैसा अभिशाप 
जीवन का रस चला गया ढोता हर दम पाप

गुणहीन अब गुणवंत बने थे कोरे व्याख्यान
अब कौड़ी के भाव बिकी हीरे की एक खान

उनको तो वरदान मिला ,मिला हमे है शाप
तू अपनी परछाई को नाप सके तो नाप

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

माना तुझको न मिला आसमान है

निरंतर परिश्रम कर देह को तपाया है 
गर्म लू में झुलस कर पसीना बहाया है 
माना तुझको न मिला आसमान है 
पर चिरागों ने हौसला तुझसे पाया है

सिर्फ जीना ही नही पाने कई मुकाम है 
जिंदगी उगती सुबह ढलती हुई शाम है
हर किनारे ने कभी मझदार को पाया है
पला मझदार के बीच  बड़ा  इंसान है

तिमिर को चीर कर है रोशनी जहा आती
प्रतिभाए परिष्कृत हो वहा है चमचमाती
अंधेरे हौसलो को कभी हरा नही सकते
तमस में दीप टोली ही सदा है जगमगाती


तिमिर पीकर जो आया सफलता पाता

निरंतर चलने का नाम जीवन है 
ध्येय से मिलने का नाम जीवन है 
क्यो ? उदास बैठे हो मेरे भाई
परस्पर मिलने का नाम जीवन है

निरन्तर कर्मरत रह जो जी पाया है 
मीठी मुस्कान का पल उसने पाया है
थका है क्यो ? राही इस मुकाम पर 
पूरा आसमान पैरो तले आया है 

कठिन है राह पर चुप रहा नही जाता
 रहा भीतर है जो दर्द सहा नही जाता
झूठे सपनो को हम नही जिया करते है
तिमिर पीकर जो आया सफलता पाता

निरन्तर चीर जिसने बढ़ाया है 
कान्हा चित्त में मेरे आया है 
रही जहां भी कही करुणा है 
मैंने घनश्याम को वही पाया है


सोमवार, 6 जुलाई 2020

स्वदेशी से जीत गया मेरा वीर जवान

धोखे से हर युध्द लड़ा ,अब आये दुर्दिन
स्वदेशी से हार गया, चीनी ड्रैगन जिन्न

सीमाए अब रिक्त हुई लौट गया शैतान
स्वदेशी से जीत गया मेरा वीर जवान

स्वदेशी का मंत्र चला,दुश्मन की न खैर
सीमाए सुनसान हुई गरज रहा है शेर

सीमा से है भाग खड़ा उखड़ गये है टेंट
स्वदेशी से हांफ रही ,चीनी तोपे टैंक

स्वदेशी से शुध्द हुए ,पाये हमने बुध्द
हिंसक तेवर चला गया टला अभी है युध्द

एक देश परतंत्र  रहा एक देश गणतंत्र
एकमेव जब राष्ट्र रहा स्वदेशी का मन्त्र

रविवार, 21 जून 2020

श्रंध्दांजली जताई है


(1)
उन्होंने आज
 सैनिकों की शहादत पर 
अश्रुपूरित हो
श्रध्दांजलि जताई है
 और श्रद्धांजलि के नाम पर
 दो मिनट मौन रह कर
 चीन से आयातित मोमबत्तीया जलाई है
(2)
अब नही रह पाएगा
 बाज़ार में कोई चीनी समान है
 कही सस्ता सा मिल जाये मोबाईल 
बस यही अरमान है
(3)
स्वदेशी की बात करते हुए 
गला रुंधा है 
मानो सीमाओं ने पुकारा है
पर क्या करे?
 इस  दौर में
 सस्ता चीनी माल ही तो
 आजीविका का  सहारा है

रविवार, 7 जून 2020

भरी गर्मियों में पारा उसका चढ़ा है

सवेरा सूरज की किरण से लड़ा है 
तमस का शकुनि उधर चुप खड़ा है 

जिसे हर तरफ से है षड्यंत्र घेरे 
रही मुंडमाला है वही मन्त्र फेरे 
चला कर्म के पथ क्षत विक्षत पड़ा है

हुई पस्त काया  छाया की जय है 
रहा  छद्म शत्रु रहा दुराशय है
चला ऐसा युध्द जो निरंतर बढ़ा है 

कभी मस्त मौसम कभी उठते शोले 
रही जब नमी तो बहते है रेले
भरी गर्मियों में पारा उसका चढ़ा है

शनिवार, 6 जून 2020

ठिठकी हुई दुनिया

स्वीच मिले मोबाईल साइलेंट हुए फ़ोन है
अदृश्य हुआ शत्रु पक्ष मृत्यु हुई मौन है
 बीमार है लाचार हैं संहार का संसार है
कहर है कुदरत का ये कौनसा त्रिकोण है

मौत भी चली आई  कोरोना के मारे है
बहती हुई सदिया ,नदिया के किनारे है
कौनसा है संकट जो आज हमने पाया है
ठिठकी हुई दुनिया है खुद के सहारे है

संकट हुआ विकट काला सा साया है 
विजय का महामंत्र हम सबने गाया है 
सबका ही सपना है झुकना न रुकना है
बदलेंगे अब हम सब ,जीना अब आया है



गुरुवार, 4 जून 2020

मानवता की लाश

धन उसके ही पास रहा , जिसका उन्नत मन 
मन तो इक विश्वास रहा , मन तो है  दर्पण

रिश्तों से वह शून्य रहा , कटुता जिसके पास
मानव का मन टूट रहा , टूट रहा विश्वास

मानवता है ढूँढ रही ,कहा है अपनापन
शब्दो से है बात बनी, शब्दो से अन बन

धरती करुणा भूल रही , विचलित है आकाश
दिखती चारो और रही , मानवता की लाश




बुधवार, 3 जून 2020

जीवन पूर्ण विराम

जीवन देकर चली गई किसकी थी यह चूक
हथिनी बच्चे से से कहे कितनी महंगी भूख

मौसम की कोई बात नही बिन मौसम का खेल
कुदरत बदला मांग रही है झेल सके तो झेल

जो होता अभ्यस्त नही जीवन पूर्ण विराम
भीतर भीतर ध्यान लगा मन को दे विश्राम

पशुवत जीवन बीत रहा पशुवत विचरे मन 
मानवता तो बोध रही कहा है मानव मन

पशु के जीवन घात रही जीवन मृत्यु खेल
कुदरत ने है खेल रचा , कस दी नाक नकेल

शनिवार, 30 मई 2020

स्वजन ने स्व लूट लिया

 दुर्बल होकर देह गली,क्यो चिंतित है मन
चिंतन को अस्वस्थ करे दूषित संचित धन

मन तो दृढ़ संकल्प रहा,रहा न फिर भी मान
स्वजन ने स्व लूट लिया, निजता का अभिमान

 दुर्जुन हरदम स्वांग रचे ,धरते दृष्टि मलीन
सज्जन तो पाखंड बचे ,होते पूज्य कुलीन

गुरु चरणन आबध्द रहा, मिला उसे ही ज्ञान
 साधक संत महंत कुलीन करता है कल्याण

मंगलवार, 26 मई 2020

आधुनिक है चित्र

गहरी मन की प्रीत रही , मिलने को बैचेन
सूरज से है सांझ मिली, पल पल ढलती रैन

चलने को न साथ मिला,राहे बिल्कुल शांत
बिन मांगे ही मिला यहाँ, जीवन मे एकांत

आड़ी तिरछी रेख खींची, घुले रंग में इत्र
आधुनिकता साथ रही,  आधुनिक है चित्र

सडको पर न धूल मिली, निर्मल नील आकाश
निर्मल नदिया नीर हुआ, जीवन को अवकाश

शनिवार, 23 मई 2020

घर मे है जगदीश

भीड़ में न विवेक रहा भीड़ बढ़ने से रोक
भीड़ में से ही लाश मिली कोरोना का रोग

 उसका था जो चला गया,रहा नही कुछ अंश 
 नगरी नगरी  दाग लगा , कोरोना का दंश

महामारी से दूर रहो ,खुद का करो बचाव
घर मे ही बस मौज करो  मन में न भटकाव

जीवन का कोई मूल्य नही यह तो है अनमोल
बाहर तो है आग लगी, भीतर के पट खोल

तीर्थो में कब ईश मिला घर मे है जगदीश
मन को मंदिर मान लिया  नित होता नत शीश

शुक्रवार, 22 मई 2020

देख रहे है नैन

मजदूरी तो मिली नही कुचल गई है ट्रैन
कुछ रोटी संग साग रखा ताक रहे है नैन

गिरते उठते चोट लगी , घायल हो गए पाँव
है सबका संकल्प यही, मिल जाये बस गांव

 मुम्बई से वह गांव चला, होकर के मजबूर
भूख से तो है मौत भली , मरना भी मंजूर

तुम कितनी ही बात करो , सब कुछ है बेकार 
दुख निर्धन का बांट सको , है इसकी दरकार

दे दो चाहे लाख करोड़ , कुछ भी न हो पाय
चल कर जो बेहोश हुए   घर पहुचाया जाय








गुरुवार, 21 मई 2020

देखो न उन्मान

देखो सोचो जान लो गलती के परिणाम
कुदरत ने यह रोग दिया मुश्किल में है प्राण

उतरो गहरे जान लो न देखो उन्मान 
गहराई में खोज मिली , गहरी गुण की खान

जो कुछ है  पुरुषार्थ यहां , उसके आगे ईश
आलस में सामर्थ्य नही आलस व्यापत विष

निर्जन वन अब कहाँ गये, कहा गया एकांत
अब ऐसा एक रोग लगा ,गलिया भी है शांत


मंगलवार, 19 मई 2020

मेरा हिंदुस्तान

थोड़ी सी भी छांव नही ,घर मे नही सकून
लथ पथ लथ पथ देह हुई महीना है मई जून

चलते चलते उठा  गिरा , बेबस एक इंसान
अपने घर कब जाएगा मेरा हिंदुस्तान

बच्चे आँसू पोंछ रहे ,पूंछे एक सवाल
कोरोना क्या भूत रहा? जो खाली चौपाल

शव इतने कि गिने नही , कैसा है यह रोग
दूर से ही तुम नमन करो , दूर से पावाधोग

बुधवार, 13 मई 2020

कितने ही मजदूर

पथ पर न गंतव्य मिला चल चल कर बेहाल
सडको पर है भूख मिली कर लो तुम पड़ताल

अपने घर से दूर हुए मरने को मजबूर 
 सपनो से वे छले गये कितने ही मजदूर

पग पग छाले भरे हुए  चेहरे हुए मलीन
मजबुरी के साथ रहे , मजदुरो के दिन

कैसा चिर विश्वास रहा कैसा रहा जूनून
पैदल पैदल चले गए ,पटना देहरादून   

सडको पर है आग लगी चली न देहरादून 
कटने को मजबूर हुए , पटरी पर है खून

कोरोना के साथ रहा महीना मई और जून
दाढ़ी मूंछे कटी नही , सिली नही पतलून 

पग में छाले भरे हुए , हरे हुए है घाव 
दुखियारी और हारी माँ भावो पर पथराव



शनिवार, 25 अप्रैल 2020

परशुराम

धन वैभव की चाह नही ,था योगी का हठ
परशु को न बांध सका अत्याचारी शठ

अक्षय ऊर्जा साथ रहे , भगवन दो वरदान
सत का संग कर पाऊ मैं , जैसे परशु राम

दीन दुर्बल के रक्षक थे परशु धारी राम 
हे!भगवन सब कष्ट हरो , तुमको करु प्रणाम

सत्ता से वे दूर रहे , शोषित जन के साथ
शत्रु का साम्राज्य ढहा, परशु जी के हाथ

पद पैसे की चाह नही , घर जैसे हो नीड़
सत का बल ही चाहिए, नही चाहिए भीड़


सोमवार, 20 अप्रैल 2020

सूरज की पीड़ा

सूरज पूरब से उग कर यह बताता है 
रात भर सोया नही कर्तव्य याद आता है

सूरज हुआ अस्ताचल छटाएं  बिखरी है
हुई पर्वत श्रेणियां पुलकित घटाये निखरी है

शब्द भी साथ नही , भाव हुए भारी है 
अरमान के आसमा पे अब सूरज की बारी है 

घाव पाये कितने ही , दर्द बहुत झेला है
अग्नि के पथ रथ है सूरज अकेला है

हट जा रे अंधियारे पथ बहुत काला है
अग्नि में तप तप कर पाया उजाला है


न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज