Srijan
सोमवार, 29 जनवरी 2024
न बिकती हर चीज
लज्जा का आभूषण
करुणा के बीज
कौशल्या सी नारी
तिथियों मे तीज
ह्रदय मे वत्सलता
गुणीयों का रत्न
नियति भी लिखती है
न बिकती हर चीज
वनवासी साँसों मे
दिखते है पर्वत तो दिखती है खाई
पथ होते पथरीले होती कठिनाई
वनवासी साँसों मे रहते रघुराई
भरत मन हो तो लक्ष्मण सा भाई
चिडियो की बोली भी गाती है नाम
कंकड़ और पत्थर मे रहते है राम
पत्थर जो होता है निष्ठुर निश्प्राण
शिल्पी ने रच डाले उसमे भी श्याम
सीता जी तप होती
जीवन की पाती मे
पाती मे राम
कबीरा भी यह बोले
शुभ कर ले काम
तुलसी चौपाई
जो कुछ न कह पाई
कहता है वह जीवन
जीवित आख्यान
लक्षमण की उर्मिला
उर की है पीर
सीता जी तप होती
टिकता है धीर
खोता है जब संयम
मन का कोई तीर
खींची है तब रेखा
दिखता कोई वीर
रविवार, 28 जनवरी 2024
मन की हो अयोध्या
नदिया सा मीठा जल
महकी हुई शाम
खगदल से गुंजीत हो
कण कण मे राम
पल पल मे खुशियों हो
हर दम मुस्कान
मन की हो अयोध्या
जीवन निष्काम
चन्दन सा चिंतन हो
सुन्दर हर काम
कुंदन सा जीवन हो
जीवित हो धाम
तन मन हो हर्षाया
ऐसा निर्माण
मन मे ही मंदिर हो
मंदिर मे राम
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