तेरे आने की खुशी ने जगा दी है आस
और जाने के ही गम से हो गये उदास
रहते हो जब तुम मेरे आस-पास
दूर हो जाती है उलझने मिलता जीने का साहस
शनिवार, 22 जनवरी 2011
बुधवार, 19 जनवरी 2011
प्रेम का मूल है अनादि अंतहीन विस्तार है
प्यार व्यापार नहीं है नीतिगत व्यवहार है ,
मन के भीतर तक समाया स्नेह का संस्कार है
प्रीती कामासक्ति नहीं सत्य की आराधना है
कामनावश जो करे तो शुध्द व्याभिचार है ,
दृष्टी से दृष्टी मिले तो प्रेम अंगीकार है
सृष्टी ने मानव को दिया है प्यार का उपहार है
सुंदरी के आगमन की प्रेमी करता है प्रतीक्षा
मन से मन का हो मिलन तो प्रेम का उपचार है
रूपसी का रूप भी तो प्रेम पुरुस्कार है
मोरनी सी चाल में ही नृत्य का अवतार है
कामिनी काया को लेकर जब चली नवयौवना
होठो पर बिखरे हंसी तो प्यार का इजहार है
प्रेमवश जो भी मिला तो हार्दिक सत्कार है
मधुर वाणी से हुआ व्यक्तित्व का विस्तार है
है जरुरत आदमी से आदमी से प्यार की
अहंकारी आदमी तो जिंदगी पर भार है
प्रेम चिर पावन सनातन बंधुत्व का भण्डार है
श्रीकृषण सुदामा की भाति मित्रवत व्यवहार है
प्रीती कई बुझ गई ज्योति मित्रता परिभाषा खोती
स्नेह्शुन्य मित्रता में स्वार्थ की झंकार है
माता की ममता लुटाती बच्चो पर दुलार है
बहन भाई में परस्पर प्रेम का संचार है
प्रेम है यशोदा मैया गोपिया गोकुल कन्हैया
प्रेम की सर्वोच्च सत्ता पूर्ण निर्विकार है
प्रेम पथ प्राचीनतम अध्यात्म का आधार है
आत्मा का हो समर्पण परमात्म यह संसार है
प्रेम व्रत है प्रेम पूजा प्रेम व्यक्ति है ऊर्जा
प्रेम का मूल है अनादि अंतहीन विस्तार है
शनिवार, 15 जनवरी 2011
समाधान थोड़े
सवालों की भीड़ है समाधान थोड़े
ऊसर बालुकामय डिगा नहीं निश्चय
पथ पर धंसे पग त्रिस्नाये तोडे ,
मंजिल भी तो दूर मुश्किलों से भरपूर
निराशा के दम पर क्या सामर्थ्य को निचोड़े
,
बरसते है पीठ पर समस्यायों के कौड़े
गिरते सम्हलते सपने तो जोड़े
दायित्वों के गठ्ठर लदे हुए सर पर ,
सवालों की भीड़ है समाधान थोड़े
शनिवार, 1 जनवरी 2011
dard pardeshi nahi hai
धुल सी छाई हुई है हर तरफ फैली उदासी
प्रश्नों का चलता प्रशासन फिर मिली उत्तर को फांसी
छल कुटिलता से व्यथित मन स्वाद चखता है कसैला
सपनों की अर्थिया ढ़ोकर रह गया है जो अकेला
दर्द परदेशी नहीं है बन गया उर का निवासी
संवेदनाओ के खिलोने दिखते कितने सलौने
शब्दों के शिल्पी सौदागर आचरण के लोग बौने
असत्य का आधार बढ़ता सत्य फिर अज्ञातवासी
रिश्तो के किस्से अनूठे सेतु संवादों के टूटे
आस्थाए ढह गयी है रह गए स्वार्थो के खूटे
प्रीत पटरानी नहीं है बन गयी वैभव की दासी
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