शनिवार, 31 दिसंबर 2011

मूल्यों को दे चुके बिदाई

नये साल की तुम्हे बधाई
बुरा वक्त है सम्हालना भाई
गया अन्धेरा विगत वर्ष का
नवीन वर्ष की भौर सुहाई 


बीता बरस था बड़ा ही क्रूर 

चक्रवात नदिया भरपूर 
क्रूर काल से कोई नहीं दूर 
समय के आगे सब मजबूर 
दुस्वप्नो ने नींद उड़ाई 
आंसू अरमानो की कमाई 
 सुख- संचय की दौड़ भाग में 
सुध-बुध खुद की बिसराई
 

करे प्रियंका नृत्य निराला 
प्रतिभा को दे देश निकाला 
टू-जी -स्पेक्ट्रम का घौटाला
बेईमान धन का रखवाला
सच्चाई के होठ सिल चुके 

तंत्र बना मकड़ी का जाला
मूल्यों को दे चुके बिदाई
गुंडों की हो चुकी रिहाई

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

मन कुन्दन बन जाये |


तेरा ईश तुझमे रहे,भीतर दीप जलाये
उर के तम को दीप्त करे,परमात्मा दिख जाये||1||
आग बबुला क्यो हुआ,पावक देह लगाये
मन मे शीतलता धरे,शिव सहज मिल जाये||2||
निर्मल कर निज आत्मा ,निर्विकार मिल जाये
दुर्जन दल दुष्टात्मा,पापी जन पछताय ||3||
कर्मयोग का मार्ग चले,जीवन ज्योत जलाय
आत्म बोध का तत्व मिले ,मन कुन्दन बन जाये ||4||
अमर्यादित आचरण ,तेरे मन क्यो भाय
समय बडा अनमोल है,स्वर्ण समय बीत जाय ||5||
सहन कर आलोचना ,भय क्यो तुझे सताय
छैनी पत्थर पर पडे,देवात्मा बस जाय ||6||
छप्पन के इस भोग का,लगा है ऐसा रोग
तिर्थों मे पण्डे पडे,बने तीर्थ उद्योग ||7||

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

रहे नयन विश्वास सदा


नयन बिन सौन्दर्य नही ,भरा नयन मे नीर
नयन बिन दिखते नही ,मनोभाव और पीर ||1||
रहे नयन विश्वास सदा ,नयन चलाते तीर
नयनो से आकृष्ट हुई,नयन चंचला हीर ||2||
नयन बिन सूरदास रहे ,बसे नयन रघुवीर
नयनो से दिखती नही ,आत्मा की तस्वीर ||3||
नयनो मे काजल बसे ,बसे लाज का नीर
नयनों के कटाक्ष यहा ,देते उर को पीर||4||
यह शरीर एक दुर्ग हैऔर नयन प्राचीर
जो नैनो से समझ सके,बने वही महावीर ||5||
दो नयनो से दिखे नही,बाते कुछ गम्भीर
अनुभव,प्रज्ञा नैत्र से,दिखे क्षीर और नीर ||6||

ह्रदय मे उल्लास भर कर,राह करना पार

जिन्दगी के पथ पर मत मान लेना हार
ह्रदय मे उल्लास भर कर,राह करना पार

दूर कर दिल कि टूटन को छोड दे मन की घुटन को
सामने मंजिल खडी है कर रही सत्कार

आदते  जो भी बुरी है छल कपट की वे धुरी है
आचरण अपना बदल दे है सत्य निर्विकार

सोच का विस्तार ही तो हर स्वप्न का आधार
श्रम देता है सदा ही हर सोच को आकार

हो रहा मानस दूषित ,भावनाये है  कलुषित
सच्चाई कि ताकत बनी है आज की तलवार

हर चूभन और घाव पर ही पड रहे है वार
भेद क्यो तू खोले मन का हर तरफ गद्दार





गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

सपनों का संसार


सपना अपना रह नहीं पाया
व्यथा ह्रदय की कह नहीं पाया

कुछ यादे सपनों में बसती
आशाओं की बहती कश्ती
मन की आशाओं का पंछी
केवल सपनों में उड़ पाया

सपनो का अपना आकर्षण
निज इच्छा का होता दर्पण
दर्पण के भीतर रह -रह कर
सपनो का साया मुस्काया

निर्धन का सुख सपनों में है
ह्रदय का सुख अपनों में है
अपनों से अपनापन पाकर
जीवन का सारा सुख पाया

सपनो का श्रृंगार करे हम
हर सपना घावो मलहम
सपनों का संसार सजाकर ,
यह मन पीड़ा को हर पाया

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

मतदाता जागरुक का कितना कठिन सवाल
नेताजी कर पायेगे पारित जन- लोक पाल
पारित जन लोक पाल नही,फिर क्यो करत धमाल
सी,बी,आई ,लेट करे,जांच और पड़ताल 
अन्ना जी भी छोड रहे अब दिल्ली का छोर
जड़ो  से जुड़ता जनमत है,चले जड़ो  की और 

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

बना समन्दर जल था थोडा


काल का घोडा सरपट दौडा
सुख का दामन हमने छोडा

हर मुश्किल आसान हो गई
जब कर्मो से नाता जोडा
नियति ने की यूँ मनमानी
बना समन्दर जल था थोडा

तिनका तिनका जोड-जोड कर
सुख सपनों का घर है जोडा
नही फलीभूत हुई बेईमानी
दुष्कर्मो पर पडा हथौडा

व्यथा ह्रदय की कैसे बोले  ,
सुनी है जिसने हाथ मरौडा
दुर्जन दल के गठबन्धन थे
सत के पथ पर बन गये रोडा

थी कैसी उनकी नादानी
हुए शर्म से पानी पानी
जान निकल गई दिल है तोडा
दे गये गम थे तन्हा छोडा

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

वह गीत गजल गीतिका बन महफिल सजाती है



मन के भीतर के पटल पर कल्पना उभर आती है
 
भिन्न रूपों में हो बिम्बित कलाये मुस्कराती है
 
 
लिए ह्रदय आनंद कंद मस्ती लुटाती है
 
वह शब्द शिल्प से अलंकृत श्रृंगार पाती है 

 संवेदना का भाव लिए हर पल सताती है
 
वह गीत गजल गीतिका बन महफिल सजाती है

 लेकर गुलाबी सी लहर चहु और छाती है
 
वह स्वयं सिद्दा बन गजल हल चल मचाती है



बुधवार, 7 दिसंबर 2011

तुम्हारे उजले कर्मों से ,खुश भगवान होता है




सजा दे गीत मे क्रन्दन दुखी होकर क्यो रोता है
मिला उसको वही फल है जो जैसा बीज बोता है ||ध्रुव पद ||

पतन की राह पर चलकर ,पतित इन्सान होता है
सही हमराही मिल जाये ,सफर आसान होता है
केवल सपने सजाने से ,नही मंजिल मिला करती
सतत यत्नों के बल पर तो ,तेरा हर काम होता है ||1||
सजा दे गीत मे क्रन्दन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे ईमान डिगने का ,पता सभी को होता है
तुझे मालुम नही बंदे ,तू हर विश्वास खोता है
कभी सच्चाई की आवाजको ,अपना स्वर दे देना
हमारे सारे कर्मो का ,खूब हिसाब होता है || 2||
सजा दे गीत मे क्रन्दन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
यदि है राह पर कांटे,तो आँखे क्यो भिंगोता है
बना दे जिन्दगी सरगम ,जग खुशियों का ढोता है
पराई पीर मे अपनी पीर की तलाश कर लेना
पराई पीर के भीतर अजीब अहसास होता है || 3||
सजा दे गीत मे क्रन्दन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शिथिल कर माया के बंधन ,समय प्यारा क्यो खोता है
लगा ले चिन्तन का मधुबन ,मधु मय छन्द होता है
किसी गमगीन चेहरे को ,मधुर मुस्कान दे देना
मधुर मुस्कान है वरदान ,खुश भगवान होता है || 4||
सजा दे गीत मे क्रन्दन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,









गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

शब्दकोष के बल पर केवल काव्य नही रच पाता है




व्याभिचार मे जीने वाले को अंधियारा भाता है
सदाचार से रहने वाला गीत रवि के गाता है

प्रियतम का उत्कट अभिलाषी प्रभु प्रीति तक जााता है
साॅसों के स्पंदन जैसा प्रिय का प्रिय से नाता है

शब्दकोष के बल पर केवल काव्य नही रच पाता है
संवेदना से रिक्त ह्दय मे रहा सदा ही सन्नाटा है

पुण्य ,ज्ञान ,पुरुषार्थ यहाँ पर व्यर्थ कभी नही जाता है
दुष्कर्मों के दम पर कोई व्यक्ति नही सुख पाता है

स्वाभिमान पर रहने वाला कठिन राह चल पाता है
तिनका -तिनका जोड़कर -जोड़कर ,स्वर्ग धरा पर लाता है

दुष्ट ,दम्भी ,मिथ्याभिमानी ,जो छल छद्म रचवाता है
नीच कर्म से लज्जित होकर ,आँख मिला नहीं पाता है

कला विहीन जीवन क्यो? जिए काव्य ह्रदय से अाता है
कलाकार संगीत कला का गीत गजल से नाता है 
 















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मंगलवार, 29 नवंबर 2011


जीवन की नदी में
उम्र की है नाव
कड़ी दोपहर में
कही नहीं छाँव

रहा नहीं साथी
किस्मत का हाथी
छीन ली गई
जैसे अंधे की लाठी
शूलो की चुभन से
घायल है पांव
सफर की थकन में
मिली नहीं ठांव

सबल बाजुओ ने
सागर है तैरे
थके सूर्य से भी
सुबह मुंह फेरे
क्षितिज के है उस पार
सपने सुनहरे
बसायेगे यहाँ
सतयुगी गाँव

शनिवार, 26 नवंबर 2011

anubhootiyaa

(1)
शिशिर के सर्दिले झोके, तिमिर में गहराते जाए
सोई हुई संवेदना ने ,चेतना के गीत गाये
कोसना बंद किया जाए , अब यहाँ शीतल पवन को
शीत की सदवृत्ति से ही गंगा हिमालय से है आये
(2)
कुछ देर भले ही लग जाए स्वप्निल उषा की प्रथम किरण में
घनघोर अंधेरो की बस्ती में रजनी उज्ज्वलता पायेगी
रही परम्परा प्रतिकूल चले हम डटे रहे प्रतिमान बचाने
मधु- भंवरो की आक्रांत -क्रीडा पीड़ित न प्रण को कर पाएगी
(4)
स्मृतियों की गुहा में छाया हुआ घनघोर तम है
व्यथित मन में उठती आहे तृप्ति के क्षण बहुत कम है
शब्द जाल में उलझकर गम हो गई संभावनाए
अनगिनत प्रतिबिम्बों में ही सृजनाओ के भरम है

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

वेदनाओं का गरल पी ,संवेदनाओं को बचाया

उम्मीदों का सघन वन ,जीवन में चहु और छाया
झाड़ियो के झुण्ड ने ही ,हरे वृक्ष को सुखाया

कष्ट प्रद पथ से गुजर कर ,वक्त को हमने बीताया
कंटको और कंकडो ने ,पैरो से रक्त बहाया
नियति की निर्ममता में ,निज शैशव जब पला था
था नहीं ममता का साया ,बालपन हुआ था पराया

लक्ष्य की लम्बी डगर पर ,मेरा यौवन जब चला था
उखड़ती सांसो के दम में ,संकल्प का दीपक जला था
दूर तक फैले क्षितिज में ,दिखती नहीं थी छाया
ताडनाओ की तपन थी ,था सूरज भी तम-तमाया

कामना पर प्रश्न -अंकित ,मंजिले थी चिर प्रतीक्षित
थी प्रतिभाये उपेक्षित ,रही उमंगें फिर भी संचित
छद्म चल की देख माया ,अंतर्मन अति अकुलाया
काँटों सी कुटिलता ने ,राह को मुश्किल बनाया

गूंजता नव-गान मेरा ,आव्हान है जाए अन्धेरा
विहान छा जाए सुनहरा ,सृजन का लग जाए डेरा
बस इसी आशा किरण से ,जीवन में अनुराग आया
वेदनाओं का गरल पी ,संवेदनाओं को बचाया

रविवार, 13 नवंबर 2011

गीत और संगीत करे ईश का गुणगान है

सुर भरी सुबह है सुर मयी शाम है,
पंछीयों के गान से मिट गई थकान है

बारीश की छम-छम से बजती नुपूर है,
महफिले है कुदरत कि नाचते मयुर है
नैसर्गिक जीवन मे संगीत विज्ञान है

झरनों के कल-छल मे राग है बसे हुये
भॅवरो की गुंजन भी रागीनि लिये हुये
कोकिल के कंठ से निसर्ग करती गान है

परमात्मा से रही आत्मा को प्रीत है
भावों से परिपूर्ण गीत और संगीत है
गीत और संगीत करे ईश का गुणगान है

बुधवार, 9 नवंबर 2011

माटी पर वह मर मिटा,लोहा था पिघल गया

कैसे देखे कोई सपने अाकाश के
हुई निर्लज्ज थी उनके अाॅख की हया
रक्त -रंजित रहे हाथ कर्मयोग के
पत्थरों को मिल रही हर तरफ से दया
चौराहे पर मिली थी हमे निष्ठुरता
मूर्तियों से शहर पूरा सजता गया
          सज्जनो के भाग मे अाऐ थे घोर तम
था समय बहुत विषम जीत फिर भी वह गया

सत्य की राह पर राही बढता गया
सूर्य सत्कर्म का नित्य उगता गया
थे नहीं खोंखले वादे इरादे ,
फौलादी मंसूबो ने फासला तय किया
,ढेरो थी मुसीबते वे हसते रहे
षड़यंत्र के चक्र व्यूह वे रचते रहे
दीप निर्विकल्प का ज्योति पुंज ले नया
शुभ संकल्प का दीप्त पथ कर गया


लेखनी क्रान्ति की दे रही है चेतना ,
ध्येय की अाग थी ,शोला बनता गया
खून अौर अाॅसू ने ,थी लिखी व्यथा कथा ,
मत सताना उसे ज्वाला वह बन गया
थी शहीद की चीता ,सीमा पर था डटा ,
माटी पर वह मर मिटा ,लोहा था पिघल गया
शत्रु दल दहल गया ,दे हौसलों को बल गया
इस वतन के राग को दे नई गजल गया

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

देने वाला खूब देता है , कर लेना तू !मौज
क्यों ?ढूँढता है उसको बाहर ,तुझ में उसकी ओज


अंधियारे में भरपूर सोया उजियारे में भगता रोज़
मिट जाए मन का अंधियारा हट जाएगा दिल से बोझ
कण कण के भीतर वह रहता तू !उसकी है फौज
तीरथ मूरत में न मिलेगा ,क्यों करता है उसकी खौज ?

कर दे अर्पण सारा जीवन ,ज्यादा तू !न सोच
बन जाएगा जब तू !उसका ,ढोयेगा वह तेरा बोझ
पूरा होगा ख़्वाब सुनहरा ,कौशिशे करना तू !रोज
होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

नन्हे- नन्हे दीप

सज- धज कर आई है गौरी,घर आँगन को लीप
टिम-टिम करते अंधकार मे ,नन्हे- नन्हे दीप

चमक उठा घर का हर कौना,रिश्तो मे आई है प्रीत
आंसू पोछो रोना छोडो,खुशियो का बिखरा संगीत
तेरा -मेरा पर जग ठहरा , आ -जाओ समीप

अपनी -अपनी आशाये है ,सपनो का अपना गणित
आसमान मे बिखरे तारे ,सीखलाते आपस की प्रीत
मन मन्दिर मे जग-मग होते ,आस्थाओ के दीप

गहन अमावस की रतिया मे, महका हर निमीष
बरस रहा है आसमानसे ,देवों का आशीष
गहरे सिन्धु मे उगते है मोती ,मूंगा ,सीप

प्राणो मे होता स्पंदन , झरता है नवनीत
लक्ष्मी माता का हो वन्दन खर्चे हो सीमीत
परम्पराओं से पाये है, नूतन पथ के दीप

मरुथल मे जैसे हो नीर

सज-धज कर आई  है गौरी, घर-आँगन को  लीप
टिम- टिम करते अंधकार मे, नन्हे -नन्हे  दीप !!1!!

दर-दर दिखती है रंगौली , दीपो का उत्सव
ज्योतिर्मय फैला उजियारा, गुजरा तम नीरव !!2!!

निराशा को तज ले प्यारे,गा खुशियो के गीत
गहन अमावश की निशा से,लक्ष्मी जी को प्रीत !!3!!

कोटि तारे आसमान मे का प्रकाश होता निर्जीव
अंधियारे कि कैसी सत्ता ,रहते है उसमे भी जीव!!4!!

घर-आँगन मे दीप जले तो ,ज्योतिर्मय त्यौहार
मन के भीतर अहं गले तो ,सुधरे व्यक्ति का व्यवहार !!5!!

तम मे दीपक का उजियारा,मरुथल मे जैसे हो नीर
टिम-टिम करता अंधियारे मे ,जुगनू की जाने कोई पीर !!6!!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

अर्चना की भावना को ,जन जन में उतारना है

अर्चना की कामना है ,अर्चना ही साधना है
अर्चना दीप्ती ह्रदय की ईश्वरीय मनोकामना है

प्यार का सागर गहरा ,चाहतो पर सख्त पहरा
अर्चना के रूप में ही ,प्यार की संभावना है
भावनाओं की सरिता, प्रेमिका प्यारी कविता
अर्चना वनवासी सीता, श्रीराम को पहचाना है

अर्चना शक्ति स्वरूपा ,शिव की आराधना है
अर्चना आत्मा की ज्योति, भक्त की उपासना है
अर्चना भावो का अर्पण, प्राणों का होती समर्पण
अर्चना भावानुभूति , निज इष्ट की स्थापना है

अर्चना दुखियो की सेवा ,कष्ट उनके काटना है
वनवासियों की वेदना से ,भावना को बांधना है
अर्चना सेवा समर्पण ,प्यार मिलकर बांटना है
अर्चना की भावना को ,जन जन में उतारना है

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

तेरी यादो की बस्ती में हम अपनी हस्ती डुबोये है

तुम्ही बसती हो ख्वाबो में ,
भरपूर नीद न सोये है
तुम्हे क्या मालूम ?
तुम्हारी याद में हम दिन रात रोये है
तुम्ही से है मेरी खुशिया
तुम्ही मेरे हो मन बसिया
तुम्हे पहली नजर देखा
हम तभी से तुम में खोये है

तुम्हारे रूप की चाहत में
हम सपने संजोये है
तेरी बिंदिया मेरी निंदिया
मेरी निंदिया तेरी बिंदिया
तुम्हारे गम से हम आँखों को
अश्को से भींगोये है
तेरे तन मन की खुशबू तो
बसी है मेरी सांसो में
तेरी यादो की बस्ती में
हम अपनी हस्ती डुबोये है

समुन्दर बन गया शबनम
दीप खुशियों के बुझोये है
मधुर यादो के मोती को ,
चितवन में पिरोये है
वे मीठे मीत के रिश्ते
जो भाते है ,नहीं पाते
उन्हें पाने की ख्वाहिश में
मिलन के बीज बोये है

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

गहन खामोशीयो मे ,चिन्तन के दीप जले है



(1)
माना कि हम ,गलतियो के पुतले है
सीधी चढाई  से ,जीते किसने किले है
(2)
बाते जो करते है ,दर्शो ,ईमान की
अपने चरण से ,वे पूरी तरह से खोखले है
(3)
साध्य नही साधन भी पावन होने चाहिये
ये उत्तम सबक हमे ,अपने पूर्वजो से मिले है
(4)
ईना दमी कि असलियत बयान करता है
गहन खामोशीयो मे ,चिन्तन के दीप जले है
(5)
जिनके वादो कि कसमे ,खाया करते थे लोग
उनकी वादा खिलाफी से ,हम भीतर तक हिले है
(6)
कब तलक अभावो मे ,दम तोडेगी प्रतिभा
साधनो के दम पर ,बढे जुगनूओ  के हौसले है
(7)
सिफारिशो कि भेट चढी ,प्रशासनिक व्यवस्थाये
अव्यवस्थाओ  से कब ,मुरझाये चेहरे खिले है
(8)
जिनकी यादे है,आज  भी दिलो दिमाग मे
उन जैसे हमराही ,मुकद्दर सेही  तो मिले है
(९)
कौन खाता है खौफ, अब कौरी धमकियो से
सीने मे दफन ज्वालामुखी, देखे हमने जल जले है

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

दशहरा त्यौहार

दश दुर्गुण का दहन करो तो ,दशहरा त्यौहार
दशो दिशाओ में बिखराओ, सुन्दर और सच्चा व्यवहार

दश विद्या की करो साधना ,कष्टों का होगा उपचार
दश मस्तक सी जगे चेतना ,उन्नत पथ का यह आधार

दश इन्द्री पर हो अनुशासन, तो सपने होगे साकार
दश पर टिकता अंक गणित है, दर्शन का है मूल आधार

मानव मन की अहम् भावना ,कलयुग में रावण अवतार
दशानन सा जगा लो पौरुष ,फिर करना उसका संस्कार

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

ईश्वर प्राप्ती

भक्ति से विरक्ति पैदा होती है
अौर शक्ति जाग्रत होती है
भक्ति से अहंकार से मुक्ति मिलती है
अौेर ईश्वर शरणागती होती है
जो भक्ति व्यक्ति मे विरक्ति के स्थान पर
अासक्ति पैदा करे
अौर ईश्वर शरणागति के स्थान पर
अहंकार उत्पन्न करे
वह भक्ति व्यक्ति के अात्मोत्थान करने के स्थान पर
उसके पतन का कारण होती है
अहंकार शून्य एवम समर्पित भाव तथा कर्म से कि
गई ईश्वर साधना से ईश्वर प्राप्ती सुगमता व शीघ्रता से होती है

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

यह आखिरी अनुतोष है

आतंक बढता जा रहा है
 चारो तरफ जन रोष है
रिक्त होता जा रहा 
भारत का धन कोष है
महंगाई बढती जा रही है
 घट रहा मानव का मुल्य
वे मुस्करा कर कह रहे है 
मेरा नही कुछ दोष है


भडके नही कही भी दंगे 
इस बात का संतोष है
चलते रहे गोरख धंधे 
मारा गया निर्दोष है
बेंच दी जिन्हे आत्माये 
मतदान कर उन्हे क्यो जिताये ?
सुधरे व्यवस्था  अवस्था 
 यह  आखिरी  अनुतोष है

दीन भूख से निढाल हुआ 
दिखती उन्हे  प्रदोष है
वे जीत कर चले आ रहे है 
होता रहा जय घोष है
हुई व्यर्थ सारी योजनाये 
स्वराज्य की संकल्पनाये
चहु और फैला है हलाहल 
और ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृक्रुध्द आशुतोष है

रविवार, 18 सितंबर 2011

तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

कमजोर सुत्रो पर टिके है, रिश्तो के धागे
अनगिनत कठिनाईया ,इन्सान के अागे
है खोखले विश्वासो पर ,कटती यहाँ पर जिन्दगी
तेरी यादो मे न सोये,रात भर जागे

कच्चे है घर के घरौंदे ,सुख-चैन को त्यागे
दर्द दुख परेशानियो को ,छोडो बढो अागे
जब हौसले हो इस दिल मे अौर सामने हो मंजिले
तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हे नाथ मेरे साथ हो

ईमान की धरती रहे ,सत्कर्म का अाकाश हो
अाराधना हो देव कि, निज ईष्ट पर विश्वास हो

सूर्य से चैतन्य हो ,जीवन हमारा धन्य हो
व्यक्तित्व के सौन्दर्य का, प्रभु !रत्न मेरे पाास हो

माॅ शारदे का वरद हस्त ,इस दास के ही माथ हो
चलता रहे  नित कर्म पथ पर ,नैराश्य नही वास हो 




विवाद विषाद मे भी ,न मन मेरा उदास हो
अग्यान का दूर हो अंधेरा  ग्यान का पकाश हो

न्याय का पथ हो पशस्त ,हो जाये दुर्भाग्य अस्त
आत्मा का उजला दर्पण ,रिश्तो मे मिठास हो

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

स्नेह

अब छुपी सच्चाईयो ,कौन जाने
प्यार कि गहराईयो ,कौन माने
हर तरफ मक्कारिया ,फैली हुई हो
निष्कपट स्नेह को ,मिलते है ताने

वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
रिश्तो की हकीकत होती ही कुछ ऐसी
मिलने के पल अाते है ,पर मिल नही पााते है

रविवार, 4 सितंबर 2011

भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

रही सही जनता कि ,टूट गयी आस
राजनैतिक सामाजिक,मूळयो का हास

संसद के भीतर अब ,छिड गयी जंग
लोहिया के चेलो ने ,बदले है रंग
लोकनायक जे-पी का ,उडता उपहास

गांधी के सपनो का ,कहा गया देश
विदेशी चिंतन है ,खादी का वेश
भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

महंगाई आई है तो ,रूठ गये प्राण
छिन गयी रोटी है,निर्धनता निष्प्राण
अन्ना जी करते है ,अनशन उपवास

फैली है चहु और बंद और हडताल
शनैः शनैः चलती है जाँच और पडताल
भृष्टो का बंगलो मे होता है वास

दीन हीन को मिलते न ,मौलिक अधिकार
गठबंधन से चलती ,केन्द्रीय सरकार
कालेधन कि होती ,व्यवस्था दास





मंडप




हरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
तटो पर ठिठुरते टर्राते है मेंढक !! ध्रुव पद!!

सर्दीले दिन होते ,सर्दीली राते
शीतल पवन करती शर्मीली बाते
हिमगिरि से आते  हिमगिरि से आते 
खुश्बू भरे पल तो हिमगिरि से आते 
लगती है ठंडक चिपकती है ठंडक
घरो से निकलते ही लगती है ठंडक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
अंधेरो को चीरती हुई आती  बयारे
शीतल निर्मल जल तो फसले सॅवारे
बिछाये है मौसम ने कोहरे के मोहरे
हुई यादो सी धुंधली ठिठुरती दोपहरे
सभी हुए बन्धक सभी हुए बन्धक
विस्मित है प्रबन्धक,सभी हुए बन्धक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
हरी होती जाती है गेहू की बाली
सॅवरती है सजती है मिटटी की थाली
मौसम के य़ौवन ,ने फसले सम्हाली
लोगो के चेहरो पर दिखती दिवाली
धरा से गगन तक चतुर्दिक क्षितिज तक
तने हुये मंडप ,तने हुये मंडप, तने हुये मंडप!!!!
..................ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक




न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज