शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

यहाँ शब्द नहीं अनुभूति है

यहाँ शब्द नहीं अनुभूति है 

अनुभव से सब कुछ पाया है

अनुभूति जितनी गहरी हो 

ठहरी उतनी ही काया है

 

जब घना अँधेरा छाता है

 चिंतन गहरा हो जाता है

मन यादो की कस्तूरी से

 खुशबू लेकर कुछ गाता है

खुशबू से नज्मे भरी हुई 

यहाँ दर्द हुआ हम साया है 

 

जहाँ ह्रदय मिला कोई घाव नहीं 

वहा शब्द रहे पर भाव नहीं

  जो मस्त रहा है हर पल पल 

जीवन रहते अभाव नहीं  

मस्ती में झूम झूम कर हरदम

नव गीत अनोखा पाया है 

 

जहा रही वेदना मर्म रहा

रचना का अपना धर्म रहा

कोई धन्य हुआ अनुभूति से

तिल तिल देकर आहुति से

वह मानवता का वंदन कर

जीवन को समझा पाया है 

 

रविवार, 5 अगस्त 2018

पथिक रहा अजेय है

लहर लहर संवारता हिलोर पे है वारता

चैतन्यता सदैव है चैतन्यता सदैव है

 

 दया निधि पयोनिधि रत्नभरा अतुल निधि

दिखा समुद्र देव है दिखा समुद्र देव है

 

 रहा समुद्र देवता वारि बादल से भेजता

नैया को माँझी खेवता पथिक रहा अजेय है

 

 बने नवीन द्वीप है मोती बने है सीप है

अमरता का संचरण विविध बनाता जैव है

होते भगवान

जीवन में  खुश  रहना  रखना  मुस्कान  सच मुच  में  कर्मों  से  होतीं की  पहचान  हृदय में रख लेना   करुणा  और  पीर  करुणा  में  मानवता होते  भग...