मंगलवार, 4 नवंबर 2014
सोमवार, 3 नवंबर 2014
भाव के नहीं ईख है
जिंदगी है धार नदिया है
दर्द है तकलीफ है
हार तो मिलती रही है
जीत में कहा सीख है
चाहतो के मिल रहे शव
,राहते मिलती नहीं है
प्यार की तुलसी है झुलसी
नहीं वक्त की मिली भीख है
हर तरफ चिंगारियाँ है
किलकारियाँ है चीख है
प्यास ठहरी अधबुझी है
फिर मिली कालिख है
विष घोले है सपोले
होले होले मन टटोले
नीम करेले है कसैले
भाव के नहीं ईख है
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