जिव्हा खोली कविता बोली
कानो में मिश्री है घोली
जीवन का सूनापन हरती
जीवन का सूनापन हरती
भाव भरी शब्दो की टोली
प्यार भरी भाषाए बोले
जो भी मन में सब कुछ खोले
लगता है इसमें अपनापन
लगता है इसमें अपनापन
तट पनघट मुखरित यह हो ले
मादकता छाई है इसमें
मादकता छाई है इसमें
दिवानो कि यह हमजोली
कविता से प्यारा से बंधन
कविता से प्यारा से बंधन
करुणा से पाया है क्रंदन
वंदन चन्दन नंदन है वन
वंदन चन्दन नंदन है वन
सुरभित होता जाता जीवन
हाथो मेहंदी आँगन रोली
हाथो मेहंदी आँगन रोली
सखिया करती हास ठिठौली
काव्य सुधा अब क्यों न बरसे
भाव धरातल नेह को तरसे
प्रीत गीत का पीकर प्याला
झुम झुम कर ये मन हरषे
प्रिय तम मेरी कितनी भोली
आँख मिचौली करे बड़ बोली
काव्य सुधा अब क्यों न बरसे
भाव धरातल नेह को तरसे
प्रीत गीत का पीकर प्याला
झुम झुम कर ये मन हरषे
प्रिय तम मेरी कितनी भोली
आँख मिचौली करे बड़ बोली
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :- 04/02/2014 को चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1513 पर.
Dhanyvaad
जवाब देंहटाएंआपकी कृति बुधवार 5 फरवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपसे अनुरोध है
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड व्हेरिफिकेशन
को हटा दें
सादर
भावपूर्ण सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंमोहक रचना ... प्रवाहमय ... कविता से प्रेम की बात ... लाजवाब ...
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