मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

परिभाषा अभिनव


उलझा उनका आज रहा 
उलझा उनका कल
मिले जुले जब साथ चले
मिल जाते सब हल

सबके अपने भाव रहे 
 सबका अपना भव
सबके अपने अर्थ रहे 
 परिभाषा अभिनव

अपनो से वे दूर रहे
 गैरो से वे पास 
गैरो से भी नही मिला 
किंचित भी विश्वास

मंजिल उसको नहीं मिली ,
जो चलता अनुकूल
चलता नाविक जीत रहा 
धारा के प्रतिकूल

रावण में न धैर्य रहा 
धीरज धरते राम
धीरज जिसने पाया है 
बन जाते सब काम




रविवार, 25 अक्तूबर 2020

रावण क्रुध्द विचार

रावण कोई देह नही , रावण क्रुध्द विचार
रावण से जब युद्ध हुआ, गया राम से हार

रावण से संघर्ष हुआ, जीत गये है राम 
रावण घृणित कृत्य करे , लोभ क्रोध औ काम

रामायण इतिहास रहा, राम कथा को सुन 
होता कोई शूद्र नही , शबरी में सब गुण

भक्ति के नव रूप रहे,नव दुर्गा के धाम 
नवमी पर है राम मिले, दर्शन है अभिराम

खुद से ही संघर्ष करो,खुद में रावण राम
खुद से ही अब शुरू हुए , जीवन के संग्राम

राम सतो गुण भाव रहा, राम रहे अवतार
रामायण है चाल चलन , अपनी चाल सुधार

देहरी में हो दीप


घर मे खुशिया बसी रहे, देहरी में हो दीप
दोहरे होते चाल चलन , उन सबको तू लीप

मौलिकता तो मिली नही , मिले मिलावट लाल
मिले जुले ही रूप मिले , मौलिकता कंगाल

मौलिक कितने प्रश्न खड़े, कितने भी गम्भीर
फिर भी मूल से जुड़े रहे, निर्धन संत फकीर

मिले जुले कुछ भाव रहे, मिलती जुलती गंध
हिल मिल कर कुछ बात करो, सुधरेंगे सम्बंध

मिलना जुलना बन्द हुआ , केवल है व्यापार
रिश्तो पर अब जंग लगी , दे दो कुछ उपचार

पानी बन कर बह गए, कितने ही संबन्ध
बांध सको तो बांध लो , रिश्तो पर तटबंध

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

मिले नही जगदीश


अंतर्मन से दीप्त रहे , रखे न मन संशय 
माँ दुर्गा का भक्त वही , जो रहे सदा निर्भय

सबसे ही सम्वाद करे , करे न वाद विवाद
सबका ही वह प्रिय रहा, लेता सुख का स्वाद

माँ बहनों का मान रखे करे नही अपमान
सपने उनके सजे रहे , बचे रहे अरमान

जीवित मां का मान रहे , माता को मत तज
माता को जो छोड़ रहा ,होता जो निर्लज्ज

जीवन भर खूब कान किया , भज लेना अब ईश
जो भव में ही रमा रहा , मिले नही जगदीश

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

दिखे न खुद के छेद

जीवन अपना धन्य करो ,कर लेना कुछ काम
जीवन मे विश्राम नही , जप लेना प्रभु राम

जब तब मिथ्या बोल रहा, झूठ न कर प्रतिवाद
बक बक से है नही मिला, माँ का आशीर्वाद

ये आंखे जो बोल रही , खोल रही है भेद 
दूजे के ही दोष दिखे, ,दिखे न खुद के छेद

दुर्जन से वह दूर रहे , सज्जन के नजदीक 
माँ दुर्गा की नीति यही , सत का पथ ही ठीक

सबके हित का ध्यान रखे , सज्जन को प्रश्रय
माता का तो भक्त रहा, सच्चा संत हृदय

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

माँ से हो सम्वाद

माता सच के साथ रहे 
सचमुच दे सम्बल
सच से मिलता जोश रहा 
सच का पथ उज्ज्वल

सत के रथ पर कृष्ण रहे 
सत के पथ पर राम
जो सच के है साथ रहा 
सुधरे उसके काम

झूठ के होते पैर नही 
झूठ से ईर्ष्या बैर 
झूठ तो पकड़ा जायेगा 
अब तब देर सवेर

सत्कर्मो से पुण्य मिला 
मिला हैं आशीर्वाद
माँ को तुम प्रसन्न रखो 
 माँ से हो सम्वाद

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

नभ उड़ने की चाह

माता का वरदान रहा, माता का है शाप
माता वो ही पायेगा , जो होगा निष्पाप

माता जी चैतन्य रही , भक्ति कर अन्यन्य
भक्ति से कर पायेगा , जीवन अपना धन्य

मन चिंतन अविराम रहा, नभ उड़ने की चाह
माता सच की लाज रखो ,सच होता है स्वाह

सच्चाई की राह कठिन ,झूठ के पर अनगिन
सच न अब उड़ पायेगा, डसती है नागिन

झूठ की होती बात कई ,सच की करनी एक
सच ही पूजा जायेगा, सत का पथ ही नेक 


मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

माँ के आशीष शाप बहे



आँसू से है पीर बही  आंसू की इक धार
माता की कुछ मांग रही ,माँ के है अधिकार

माता सब कुछ जान रही ,तू भी ले कुछ जान
सत के पथ से डिगा वही , जो होता बेईमान

माँ को अर्पित भाव रहे ,अर्पित है सब श्लोक
माँ के आशीष शाप बहे , पाप रहे न शोक

माता जी की ज्योत जली ,महकी मस्त पवन
चहकी चहकी खग की टोली, कर लो मंत्र हवन


सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

गहरे काले केश

माँ से सच्ची बात करो अच्छा सा व्यवहार 
माँ से सुधरे शुक्र शनि ग्रहों का परिवार

माता जी सब कष्ट हरो ,हम तो है परदेश
तुम इतनी क्यो श्याम रही, गहरे काले केश

माता जी से शौर्य मिला , पाये दिव्य विचार 
माता बुध्दि देत रही , दे बुध्दि को धार

मुश्किल से है जुड़ पाती , मन से मन की डोर
माँ से मन प्रसन्न हुआ,  माँ से मन विभोर

माता मीठी बात करे  माँ निर्मल स्वभाव
माँ पिघली और मोम हुई समझी है हर भाव

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

तेरे है गोविंद

माता निर्मल चित्त रही ,माता शुध्द विचार
माता जी नवरात रही ,माता जी दिन वार

माँ के सुख का ध्यान रखो ,माँ हर सुख की खान
माँ से शुभ आशीष मिला , जीवन का वरदान 

सब ग्रंथो से सार मिला, मोह माया निस्सार
माता से है मोक्ष मिला ,स्वर्ग न बारम्बार

माँ प्यारा एक बोल रही ,गाँठे मन की खोल
माँ से ही सीख पायेगा ,मीठे प्यारे बोल

माता का गुणगान करो, माता गुण की खान
हीरे मोती रत्न मिले , रत्नों की खदान

माताजी भूख प्यास रही , गहरी मीठी नींद
भूखा सो नहीं पायेगा ,तेरे है गोविंद

माँ रेती सी बिखर रही

माँ नदिया का रूप रही, माँ धरती है खेत 
माँ रेती सी बिखर रही, माँ निर्मित निकेत

माँ घर का एक द्वार रही चूल्हे की है शान
झाड़ू से अब साफ करो , माँ का रोशनदान

माँ धड़कन में सांस रही ,प्राणों का आव्हान
माँ रोगों को दूर करे, करती रोग निदान

माँ सुबह की भोर रही , सूरज की है शाम
माता से धन धान्य मिला,पाया पद सम्मान

बच्चों को माँ पाल रही , माँ है पालनहार
माता से परिवार रहा, माता से सरकार


माँ भक्ति निष्काम रही , सूक्ति का है पाठ
सेवा से सब सूत्र मिले , मिल जाते हर ठाट 



शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

माँ शिक्षक स्कूल

माँ मोहक मुस्कान रही माँ अमृत का घूँट
माँ वत्सलता बाँट रही लूट सके तो लूट

माँ उर्जा में ज्योत रही ,माँ शिक्षक स्कूल
माँ का संग हर बार मिला माता पल अनुकूल

माँ शेरो पर सैर करे, होकर के निर्भीक
माँ सज्जन की पीर करे हर पल स्वाभाविक

माता जड़ और मूल रही माँ अंकुरित बीज
माता का सत्कार करो ,दुख न दो हरगिज

जब भी माता साथ रही मिलती है हर चीज
माता तिथि दूज रही , माँ होती है  तीज 

शक्ति देती साथ रहे , भक्ति दे सम्बल 
माता का कर माथ रहे ,ममता दे हर पल





गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

होते है संकेत

दिखता किसको ध्येय यहा ,ध्येय रहा अज्ञेय
योगी के ही साथ रहे ,जीवन के सब श्रेय

नयनो से है बात हुई ,नयनो से जज्बात 
जो नयनो से शून्य रहा, दिन भी उसके रात

दिल से दिल तक बात बढ़ी ,होते है संकेत
प्रियतम रास्ता देख रही , है नयनो में भेद

रोगों का आतंक रहा ,कोरोना एक रोग 
कोरोना के साथ गया , लोगो का भय शोक

नयनो में विश्वास रहा ,नयनो में एक आस
नयनो से है लुका छिपी  ,कुछ नयनो के दास

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

दिखा नही कही यक्ष


घर घर मे है युुध्द हुुयेे , लड़ते लोग तमाम
लड़ते लड़ते पस्त हुए , बन्द हुआ संग्राम

घर मे ही संतुष्ट रहो ,गृह भोजन से पुष्ट 
घर मे न रह पायेगे , दुर्जुन दुर्गुण दुष्ट

कितने सारे प्रश्न खड़े , दिखा नही कही यक्ष
सबके अपने स्वार्थ रहे ,सबके अपने पक्ष

पत्तो से ही तुष्ट हुए ,  घी दीपक न धूप
शिव का सुंदर रूप रहा ,होता दिव्य स्वरूप 

घर मे सारे देव रहे , पूर्वज रहे महान
घर गंगा का तीर रहा ,घर है चारो धाम 




कर्मठ करते शोर नही

उल्टी सीधी बात करे ,ले लेता अनुतोष
झूठ तो तेरे कंठ रहा, फिर कैसे निर्दोष

शक्ति से साम्राज्य रहा, भक्ति से वैराग्य
माँ का आशीष साथ रहा ,जीवन है सौभाग्य

कर्मठ करते शोर नही ,होते बिल्कुल शांत
कर्मशील का विश्व सगा , कर्महीन आक्रांत

जो कुछ भी अज्ञात रहा , तू कर लेना ज्ञात
ज्ञाता से ही ज्ञान मिला ,कर ज्ञानी से बात

जितने भी प्रयत्न हुए ,उतना ही विश्वास 
मंजिल कोई दूर नही ,बिल्कुल तेरे पास

मरुथल में नीर मिला, रांझा को न हीर
मृग तृष्णा सी प्यास रही , धर लेना तू धीर

सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

रिश्ते दिल के दर्द हरे

उनको न संतोष रहा, उनके भीतर रोष 
खुद को ही वे धन्य कहे, दूजे को दे दोष

रामायण में राम रहे ,गीता में भगवान 
ग्रंथो में कुछ मर्म रहा, उसको ले पहचान

दूब पर अब है ओंस ,पड़ी ठंडी हुई बयार
पंछी चहके खुले नयन, पैदल चलो सवार

सुबह से स्पर्श मिला, सूरज दे रफ्तार
अंधियारे को दूर करे उग उग के हर बार

जिससे सबको प्यार मिला ,पाया धन संसार
सिंह वाहिनी मां अम्बे , सुन ले मेरी पुकार

रिश्ते होते प्यार भरे ,रिश्ते है अनमोल 
रिश्ते दिल के दर्द हरे, मीठे मीठे बोल

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

भय के कितने भूत

 गैरो से है प्यार मिला , अपनो से दुत्कार
जीवन का श्रृंगार किया , बिन स्वागत सत्कार

भीतर से ही पस्त हुआ ,भीतर से मजबूत
भीतर भीतर रहा करे , भय के कितने भूत

अपनो से सामर्थ्य मिला अपनो से सम्बल
अपनेपन से पायेगा, जितने भी है  हल 

कितने ही तो मंत्र जपे ,किया पूण्य और दान
सच्चा जीवन छूट गया ,छूट गया ईमान

अपने जो आराध्य रहे वे सबके भगवान 
उनके जितने रूप रहे , सबको ले पहचान

जिससे जितना प्यार किया उतना ही अधिकार
प्यार बिना ही तोल मिला , अब नफरत स्वीकार

कविता अमृत बाँट रही

नारो का ही शोर रहा ,मुद्दे हो गये मौन 
कविता अमृत बाँट रही, समझायेगा कौन

जिसका प्रतिपल साथ रहा जो भीतर बाहर
वो है मेरे कृष्ण कन्हैया , वे कान्हा गिरधर

पल पल बरसा नेह रहा स्नेहिल है हर पल 
बारिश जल को बांट रही नदिया हुई चंचल

नियति के संजोग रहे लगे गुणा और योग 
भागित होते चले गये, प्यारे प्यारे लोग 

नैया तो मझधार खड़ी जीवन है सुनसान
कितने तूने युध्द लड़े , फिर भी है संग्राम

 भीतर जब अवरोध रहा , बिखरा बाहर क्रोध
तिल तिल कर जल जायेगा ,मृत्यु का है बोध

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

वन अच्छे लगते है

वृक्ष की छांव और घने वन अच्छे लगते है 
अंकुरित बीज जड़ तने सीधे सच्चे लगते है 
बना लो राहे और पगडंडिया कितनी भी 
घनी छाया के बिन सारे रास्ते कच्चे लगते है 

ईश देता आशिष

जब न किसका साथ मिला, ईश है तेरे साथ
ईश करता है पथ को रोशन ,दिन हो चाहे रात

तू अपना एक दीप जला, पथ होगा जग मग 
पथ पर पग बढ़ जायेगे ,मत होना डग मग

उठता उसका ही जीवन है, जो करता कोशिश
ईश देता है साथ रहा ,ईश देता आशीष

रिश्तो से है भाग्य जगा ,रिश्तो से है जोश 
रिश्तो में हो नई ताज़गी ,रिश्ते हो निर्दोष

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

वह कोरा है झूठ

दिखता नही सत्य सनातन ,दिखते केवल ठूठ
तू जिसको है जान रहा ,वह कोरा है झूठ

सत्कर्मो से स्वर्ग मिलेगा ,कर ले अच्छे काम
मृत्यु तो है सत्य सनातन, जीवन है संग्राम

नैतिकता तो चली गई, अब नैतिक है पाठ
उपदेशो में रही सादगी ,महाराजा से ठाट

विचलित होता चित्त रहा, चिंतित है महाराज
छुप कर बैठे पाप कर्म है ,गहरे गहरे राज

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

प्राचीनता का बोध

प्रगति उसके साथ रही ,जहाँ चिंतन और शोध
खंडहर में अवशेष मिले ,प्राचीनता का बोध

निर्मल दृष्टि  कहा मिली, कहा है निश्छल प्रेम
अपनापन है जहाँ मिला ,वही मिला सुख चैन

जिनके हिय संतोष रहा , वह सच्चा है संत 
वस्त्रो से सन्यास नही , हो इच्छा का  अंत

कथनी करनी एक रहे ,धन का न संचय 
भोगो से जो दूर रहा , रहता संत हृदय

जिनके मन उल्लास नही ,अकिंचन है दीन
संतुष्टि का भाव रखे ,सज्जन तो प्रतिदिन
 

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

महंगे है जज़्बात

कितना सारा खून बहा, आँसू बहती पीर 
मेहनत पसीना बो रही ,सूखी है तकदीर 

सोचो समझो जान लो ,फिर करना तुम बात
शब्दो का कुछ मूल्य रहा, महंगे है जज़्बात

पूरे न अरमान हुए ,फिर भी है जज़्बात
हर दिन के है साथ रही ,घनी अमावस रात

सबके अपने स्वार्थ रहे ,अपने अपने हित 
परहित जीवन नही मिला ,मिली नही है प्रीत

छन्दों का यह देश रहा ऋषियों के उपदेश 
अंतर्मन आनंद रहा सुरभित है परिवेश

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

आधा है वह सत्य

आँखों से जो देख रहा ,आधा है वह सत्य 
सुनने पर भी यही मिले ,सच्चे झूठे तथ्य

कितना सारा प्यार मिला ,कितना सारा सुख 
मन फिर भी न तृप्त हुआ ,माता हैं सम्मुख

तन माटी का हमे मिला, मन अविनाशी शिव
चिंतित तू क्यो हो रहा ,विचलित क्यो है जीव

जिनके कारण सदा हुए ,भावो से अभिभूत
इतने क्यो है  रुष्ट हुए ,भारत माँ के पूत

मन हर्षित है हो रहा ,धर कर जिनका ध्यान
राम रूप भगवान मेरे, शिव शंकर हनुमान

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...