आतंक बढता जा रहा है
चारो तरफ जन रोष है
रिक्त होता जा रहा
भारत का धन कोष है
महंगाई बढती जा रही है
घट रहा मानव का मुल्य
वे मुस्करा कर कह रहे है
मेरा नही कुछ दोष है
भडके नही कही भी दंगे
इस बात का संतोष है
चलते रहे गोरख धंधे
मारा गया निर्दोष है
बेंच दी जिन्हे आत्माये
मतदान कर उन्हे क्यो जिताये ?
सुधरे व्यवस्था अवस्था
यह आखिरी अनुतोष है
दीन भूख से निढाल हुआ
दिखती उन्हे प्रदोष है
वे जीत कर चले आ रहे है
होता रहा जय घोष है
हुई व्यर्थ सारी योजनाये
स्वराज्य की संकल्पनाये
चहु और फैला है हलाहल
और ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृक्रुध्द आशुतोष है
चारो तरफ जन रोष है
रिक्त होता जा रहा
भारत का धन कोष है
महंगाई बढती जा रही है
घट रहा मानव का मुल्य
वे मुस्करा कर कह रहे है
मेरा नही कुछ दोष है
भडके नही कही भी दंगे
इस बात का संतोष है
चलते रहे गोरख धंधे
मारा गया निर्दोष है
बेंच दी जिन्हे आत्माये
मतदान कर उन्हे क्यो जिताये ?
सुधरे व्यवस्था अवस्था
यह आखिरी अनुतोष है
दीन भूख से निढाल हुआ
दिखती उन्हे प्रदोष है
वे जीत कर चले आ रहे है
होता रहा जय घोष है
हुई व्यर्थ सारी योजनाये
स्वराज्य की संकल्पनाये
चहु और फैला है हलाहल
और ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृक्रुध्द आशुतोष है