मंगलवार, 20 सितंबर 2011

यह आखिरी अनुतोष है

आतंक बढता जा रहा है
 चारो तरफ जन रोष है
रिक्त होता जा रहा 
भारत का धन कोष है
महंगाई बढती जा रही है
 घट रहा मानव का मुल्य
वे मुस्करा कर कह रहे है 
मेरा नही कुछ दोष है


भडके नही कही भी दंगे 
इस बात का संतोष है
चलते रहे गोरख धंधे 
मारा गया निर्दोष है
बेंच दी जिन्हे आत्माये 
मतदान कर उन्हे क्यो जिताये ?
सुधरे व्यवस्था  अवस्था 
 यह  आखिरी  अनुतोष है

दीन भूख से निढाल हुआ 
दिखती उन्हे  प्रदोष है
वे जीत कर चले आ रहे है 
होता रहा जय घोष है
हुई व्यर्थ सारी योजनाये 
स्वराज्य की संकल्पनाये
चहु और फैला है हलाहल 
और ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृक्रुध्द आशुतोष है

रविवार, 18 सितंबर 2011

तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

कमजोर सुत्रो पर टिके है, रिश्तो के धागे
अनगिनत कठिनाईया ,इन्सान के अागे
है खोखले विश्वासो पर ,कटती यहाँ पर जिन्दगी
तेरी यादो मे न सोये,रात भर जागे

कच्चे है घर के घरौंदे ,सुख-चैन को त्यागे
दर्द दुख परेशानियो को ,छोडो बढो अागे
जब हौसले हो इस दिल मे अौर सामने हो मंजिले
तिमिर सामाज्य चिरकर ,नव चेतना जागे

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हे नाथ मेरे साथ हो

ईमान की धरती रहे ,सत्कर्म का अाकाश हो
अाराधना हो देव कि, निज ईष्ट पर विश्वास हो

सूर्य से चैतन्य हो ,जीवन हमारा धन्य हो
व्यक्तित्व के सौन्दर्य का, प्रभु !रत्न मेरे पाास हो

माॅ शारदे का वरद हस्त ,इस दास के ही माथ हो
चलता रहे  नित कर्म पथ पर ,नैराश्य नही वास हो 




विवाद विषाद मे भी ,न मन मेरा उदास हो
अग्यान का दूर हो अंधेरा  ग्यान का पकाश हो

न्याय का पथ हो पशस्त ,हो जाये दुर्भाग्य अस्त
आत्मा का उजला दर्पण ,रिश्तो मे मिठास हो

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

स्नेह

अब छुपी सच्चाईयो ,कौन जाने
प्यार कि गहराईयो ,कौन माने
हर तरफ मक्कारिया ,फैली हुई हो
निष्कपट स्नेह को ,मिलते है ताने

वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
रिश्तो की हकीकत होती ही कुछ ऐसी
मिलने के पल अाते है ,पर मिल नही पााते है

रविवार, 4 सितंबर 2011

भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

रही सही जनता कि ,टूट गयी आस
राजनैतिक सामाजिक,मूळयो का हास

संसद के भीतर अब ,छिड गयी जंग
लोहिया के चेलो ने ,बदले है रंग
लोकनायक जे-पी का ,उडता उपहास

गांधी के सपनो का ,कहा गया देश
विदेशी चिंतन है ,खादी का वेश
भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास

महंगाई आई है तो ,रूठ गये प्राण
छिन गयी रोटी है,निर्धनता निष्प्राण
अन्ना जी करते है ,अनशन उपवास

फैली है चहु और बंद और हडताल
शनैः शनैः चलती है जाँच और पडताल
भृष्टो का बंगलो मे होता है वास

दीन हीन को मिलते न ,मौलिक अधिकार
गठबंधन से चलती ,केन्द्रीय सरकार
कालेधन कि होती ,व्यवस्था दास





मंडप




हरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
तटो पर ठिठुरते टर्राते है मेंढक !! ध्रुव पद!!

सर्दीले दिन होते ,सर्दीली राते
शीतल पवन करती शर्मीली बाते
हिमगिरि से आते  हिमगिरि से आते 
खुश्बू भरे पल तो हिमगिरि से आते 
लगती है ठंडक चिपकती है ठंडक
घरो से निकलते ही लगती है ठंडक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
अंधेरो को चीरती हुई आती  बयारे
शीतल निर्मल जल तो फसले सॅवारे
बिछाये है मौसम ने कोहरे के मोहरे
हुई यादो सी धुंधली ठिठुरती दोपहरे
सभी हुए बन्धक सभी हुए बन्धक
विस्मित है प्रबन्धक,सभी हुए बन्धक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
हरी होती जाती है गेहू की बाली
सॅवरती है सजती है मिटटी की थाली
मौसम के य़ौवन ,ने फसले सम्हाली
लोगो के चेहरो पर दिखती दिवाली
धरा से गगन तक चतुर्दिक क्षितिज तक
तने हुये मंडप ,तने हुये मंडप, तने हुये मंडप!!!!
..................ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक




स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...