शनिवार, 3 दिसंबर 2022

गीता

गीता  एक  ग्रंथ  नहीं
एक  विचार  है  
गीता  विचार  ही  नहीं 
 जीवन दर्शन  है 
गीता  कृष्ण का अर्जुन को  दिया  
अलौकिक  ज्ञान  है 
अलौकिकता से ही व्यक्ति   की  
वास्तविक  पहचान  है   
गीता  भक्ति  की  गंगा  है 
 ईश्वरीय शरणागति  है
 बढ़  जाता है  अहंकार  तो 
 मारी  ज़ाती  मति है 
गीता संसार  को  कर्म की महत्ता  बताती  है 
कर्म  पथ  पर  ही  चलकर 
व्यक्ति  की  अस्मिता  खुद  को  पाती  है 
गीता  को  पढ़ो  समझो  जानो  कुछ  करो 
सदा  रहो  चैतन्य  सक्रिय 
 भीतर मे बसी जड़ता  को  हरो  
 जीवन  जहा  जहा  भी 
 किंकर्तव्यविमूढ़ता  नजर आती  है 
 वहाँ मन  हुआ  अर्जुन  तो 
गीता  बनी  श्री कृष्ण सी  सारथी  है 
गीता  पुस्तकीय  ज्ञान  नहीं  
आध्यात्मिक  अनुभव  हैं 
प्रेरक  शक्ति  के  द्वारा  ही  
व्यक्तित्व  निर्माण  सम्भव  है 
गीता  धर्मों  से  परे  ईश्वरीय मार्ग  है 
अवसाद ग्रस्त  मन  की  चिकित्सा
 जीवन  के  प्रति  अनुराग  है
गीता  के मर्म  को
  जिसने  जितना  गहराई  से  पाया  है 
समझा  है  स्वयं  को 
नित  नवीन  उत्थान  कर 
सफ़लता  का  ध्वज  लहराया  है 

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

कितने जग में दीप जले

मानव जल  थल  बाँध  रहा
कुदरत  का  है  चोर
मानव दस्यु  दैत्य  रहा 
मानव  आदम  खोर 

कुदरत  थर  थर कांप  रही 
शापित  है  हर  जीव 
हम  खुद  ही  अब  खोद  रहे 
सृजन  की  हर  नींव 

कितना  सारा खून  बहा 
मानव  तेरे  हाथ 
जीव  हिंसा  और  युध्द  हुए 
रुकते  न अपराध 

भीतर  हिंसा  कौंध  रही 
यह  हिंसक  है  दौर 
अपने  मन  के  दर्पण  पर 
करना  होगा   गौर 

कितने  जग  में  दीप  जले 
क्या  निकला  है  अर्थ 
खग दल  मरते  तेज  ध्वनि 
होता  प्रदूषण  व्यर्थ 

तुम  ऐसा  एक  पुण्य  करो 
हो  सबका  कल्याण 
हर  मन आशा  दीप जले 
हो  कुछ  नव  निर्माण 

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

घर का आँगन लीप

पौरुष से पुरुषार्थ हुआ
पौरुष है पतवार 
जिनके भीतर  ओज  रहा 
वे  तट के  उस  पार 

सच्चाई  की  कोख  पली 
भीतर  की  मुस्कान 
अंतर्मन  में  दीप जला
कर  उजियारा  दान 

अंधियारे  की  रात  नहीं 
झिलमिल  है  आकाश 
तू  कर्मों  से  प्रीत  दिखा  
होगा  दिव्य  प्रकाश 

अन्तर  से  चित्कार  उठी 
मिला  सृजन  नवनीत 
गीतों  की  झनकार रही 
हर पल छलकी प्रीत 

जीवन  मे  धन  धान्य  रहे 
जले  स्वास्थ्य  के  दीप
दीपो से  य़ह  पर्व सजे 
घर  आँगन  को  लीप 

बाहर  कितना  शोर  रहा 
भीतर  रहा  तिमिर 
तू  इक  ऐसा  दीप जला 
तम को  जो  दे  चीर 


मिलेगी उसकी टोह

रुप  तो  है  पर  गुण  नहीं, गुण के बिन न ज्ञान 
रूप को देखे  ब्याह  करे, वह गुणहीन इन्सान 

चंदा  जैसा  रूप  दिखा, दिखा नहीं चरित्र 
 सीधा  सच्चा मूर्ख नहीं  होता  अच्छा  मित्र 

 जो जितना ही प्रिय  रहा, उससे उतना  मोह 
रब से सच्ची  प्रीत  लगा, मिलेगी उसकी टोह 

जीवन  मे  आरोग्य  नहीं,  लगे  रोग  पर  रोग 
धन  माया न  साथ  रही, तन  मन  करो निरोग 

बुधवार, 31 अगस्त 2022

खींची नई लकीर

गणपत  है  विराज  रहे  , साध  रहे  सब  काज 
पग  प्रतिपल  गतिमान  रहे ,पद  कीर्ति  सर  ताज 
पर्वत तो  कैलाश  रहा, गण  के  पति  गणेश 
जीवन  में  शुभ  कृत्य  करे,  सुमति दे  महेश 
मतिमंदो  साथ  नहीं, जीवन  के  आयाम 
गणपति का है राज जहा ,हुए सभी शुभ  काम 
मित भाषी  को  राज मिला,  मुँहफट रहा  फकीर 
जो  अपनी नई राह  चला ,  खिंची नई  लकीर 

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

स्वर्ण से अब तक खरे है

पेड़ से पत्ते झरे है

फूल से रस्ते भरे है


सरसराती झाड़ियां है

आ रही कुछ गाड़ियां है

तोड़ते ख़ामोशियों को

झुण्ड में झुरमुट खड़े है


अंतहीन यहा दूरीया है

सैकड़ों मजबूरियां है

पीठ पर्वत है टिकाये

गगन तक गिरीवर चढ़े है


कोई सरगम गा रहा हैं

एक फरिश्ता आ रहा है

ख्वाहिशों के काफिले है

ख्वाब न अब तक मरे है


भेद वो मन का न खोले

मन ही मन सबको वो तोले

वे हिमालय के हैं योगी

स्वर्ण से अब तक खरे है

रविवार, 24 जुलाई 2022

पेड़ पर और कौन ठहरा

पेड़  पर रहते  है पंछी 
पेड़  पर और  कौन  ठहरा  

चाहे  जैसा  घर  बना  लो 
पेड़ पर  कुटिया  बना  लो  
खिलखिलाये  जिंदगी  भी 
य़ह  धरातल  हो  हरा 

पेड़  की  हम  गोद  खेले 
पेड़  से  सब  कुछ  संजो  ले 
पेड़  की  छाया  में  निंदिया 
लथ पथ  पसीने  से  भरा 

पत्तियाँ  भी  सरसराती 
चिड़िया  रानी  बुदबुदाती 
पेड़  की  भाषायें  बोले 
प्रेम की  हो  य़ह  धरा

शनिवार, 15 जनवरी 2022

कोई चीन चीज

चीनी से हम छले गये ,घटना है प्राचीन
ची ची करके चले गए, नेता जी फिर चीन
सीमा पर है देश लड़ा ,किच किच होती रोज
हम करते व्यापार रहे, पलती उनकी फौज
 अब तक तो प्रहार हुआ,होती है हद पार
कोरोना भी मुफ्त मिला,चीनी  कारोबार
सीमाये तो फैल रही , फैला है विष बीज 
गुणवत्ता से युक्त नही  कोई चीनी चीज

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज