रविवार, 1 अप्रैल 2018

दादी और नानी ने जोड़ी पाई पाई है

हिमालय की बुलंदी है आसमान की ऊंचाई है

साहस और सामर्थ्य की गहराई तूने पाई है

 

यथार्थ का सामना है महकी हुई कामना है

नारी ही प्रसूता है ममतामयी दाई है

 

चेहरा एक प्यारा है बहती हुई धारा है

पत्नी बन नारी ने दुनिया सजाई है 

 

आँखों का सपना है संचित ही रखना है

बाबुल के आगन में बिटिया नई आई है

 

भ्राता का बल है करुणा निश्छल है

प्यारी सी बहना का छोटा एक भाई है 

 

छाया है माया है अपनापन पाया है

भावो में वत्सलता उसकी कमाई है 

 

दोस्ती है वादा है प्रियतम में राधा है

मीरा की भक्ति भी कितनी सुखदायी है

 

किरणों का ओज है बेटी नहीं बोझ है

आशाए संजोई है अभिलाषाएं पाई है

 

प्राची की अरुणा है समग्रता संपूर्णा है

दादी और नानी ने जोड़ी पाई पाई है

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...