Srijan
रविवार, 29 दिसंबर 2024
कुल्हड़ की चाय
कुल्हड़ की
वह चाय नहीं है
मैथी का न साग
चूल्हे में
वह आग नहीं
कंडे की न राख
माटी की सुगन्ध
है बिछड़ी
कहा गई वह
प्यारी खिचड़ी
जितने भी थे
रिश्ते बिखरे
लगे स्वार्थ के दाग
मुख्य हुए अपवाद
परिभाषाएं गौण हुई
मुख्य हुए अपवाद
जीवन में अब रहा नहीं है
जिव्हा का वह स्वाद
किंतु यंतु हुए प्रभावी
जंतु का उन्माद
ऐसे बिगड़े चाल चलन है
पल पल रहे विवाद
जीवन में अब कौन कहेगा
कर
लो तुम संवाद
कही पे खोया अपनापन है
नहीं मिली कही दाद
आंख भिगोई ममता रोई
समझे न जज्बात
बेटी तो अच्छी है निकली
बेटे दे आघात
रविवार, 22 दिसंबर 2024
गहरी होती प्यास
गहराई में मौन बसा,गहरा मन विश्वास
गहराई में उतर गया गहरी लेकर प्यास
शब्दों से क्यों बोल रहा , तू कर्मों से बोल
जिसके जीवन ध्येय रहा ,उसका पल अनमोल
अंधे के दिन रात नहीं, मूक क्या करता बात
आलस जिसमें व्याप्त रहा वह तो है बिन हाथ
दीपक दीप्ति देत रहा, देता दिल को आस
जबअंधियारी रात हुई , तब दीपक हैं पास
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024
तू कल को है सीच
जब ज्योति से ज्योत जली
जगता है विश्वास
जीवन में कोई सोच नहीं
वह करता उपहास
होता है जो मूढ़ मति
जाने क्या कर्तव्य
जिसका होता ध्येय नहीं
उसका न गंतव्य
गुजरा पल तो बीत गया
तू कल को है सीच
इस पल में जब ज्योत जली
रोशन है हर चीज
गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024
आँगन का दीपक
जहा दिव्य हैं ज्ञान नहीं
रहा वहा अभिमान
दीपक गुणगान करो
करो दिव्यता पान
उजियारे का दान करो
दीपक बन अभियान
दीपो से हैं दिव्य घड़ी
रहे दिव्य मुस्कान
उजियारे से सींच रहा
इस जग को सूरज
अँधियारे को दूर करे
आँगन का दीपक
दीपक से हैं सीख मिली
मिला है अद्भुत ज्ञान
अंधियारे में जले चलो
भूलो मत अपमान
दीपक तम को दीप्त करे
उजियारे का बोल
दीपक का कोई मोल नहीं
वह तो है अनमोल
दीपक हर पल ढूँढ़ रहा
अच्छा घर परिवार
उजियारे की प्यास रही
दीपो का त्यौहार
जीवन का तम दूर करे
दीपक दे वरदान
बाधाएँ हर और हटे
धवल नवल हो ज्ञान
सोमवार, 28 अक्टूबर 2024
जीवित जो आदर्श रखे
सम्वेदना का भाव भरा
खरा रहा इन्सान
जीवित जो आदर्श रखे
पूरे हो अरमान
जो पीकर मदमस्त हुआ
हुआ व्यर्थ बदनाम
बाधाएँ हर और खड़ी
जीवन मे अपमान
टपका जिसका स्वेद नहीं
उसका न संसार
जीवन हैं कोई रेत नहीं
जीवन का कुछ सार
समझा उसने मर्म
फलते-फूलते यहां रहे
काले कारोबार
सब रिश्तो भूल गये
केवल है व्यापार
घूमते फिरते जहा चले
लगा नहीं कही मन
बिगड़े उनको बोल रहे
कलुषित है चिन्तन
उनको कितनी बार मिला
स्वागत और सत्कार
न कोई है आज यहां
जो लेता पुचकार
निष्ठा को तो चोट मिली
आस्था को वनवास
भावों को जो व्यक्त करे
उसका हो उपहास
जिसके हाथो कर्म रहा
उसका है आधार
दूजे का न दोष दिखा
सपने कर साकार
जो करता हैं कर्म यहां
समझा उसने मर्म
कर्मठता उद्योग वहा
कर्मठता हैं धर्म
बेटा सा संगीत
जीवन मे जब हार मिली
कही मिली है जीत
कोने मे कहीं मौन सज़ा
कहीं बजा संगीत
मधु के भीतर स्नेह बसा है
मधुमय हैं मनमीत
सच्चा प्यारा राज दुलारा
बेटा सा संगीत
रविवार, 27 अक्टूबर 2024
सन्नाटों की जीत
सुख सपनों को लील गये
लोलुपता और स्वार्थ
अब रिश्तों में रहा नहीं
जीवन का भावार्थ
हर रास्ते पर झूठ खडे
सब दरवाजे बन्द
होठों से हैं फूट पड़े
बोलो की दुर्गन्ध
किस्मत में है मिले नहीं
खुशियो के कहीं गीत
बिखरा बिखरा मौन रहा
सन्नाटों की जीत
संवादों के पुल ढहे
काली काली रात
उजियाले भी दूर रहे
छले गये ज़ज्बात
पथ पर कांटे मिले जहा
वहीं मिले है फूल
अनुभव मन की याद रही
जीवन का स्कूल
शनिवार, 26 अक्टूबर 2024
वहीं रहा गुमराह
होठों पर मुस्कान रखो
मन मे शुध्द विचार
मिट जायेगे दोष सभी
मिटेगा व्याभिचार
जीवन का वरदान मिला
कर इसका सम्मान
श्रम के पथ से पायेगा
मंजिल और अरमान
श्रम से सब भ्रम दूर रहे
श्रम से मिले शिखर
जीवन मे सब साध्य रहे
श्रम से जाये निखर
जीवन कोई उद्देश्य नहीं
बस खुद की परवाह
राहों में है भटक रहा
वहीं रहा गुमराह
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024
नव जीवन है प्राण
अब रिश्तों में जान नहीं
रहा नहीं है स्नेह
सम्वेदना से शून्य हुए
गहरे है संदेह
जीवन से अब चला गया
कुदरत से अनुराग
संबंधो की शाख कटी
लगी हुई है आग
सपनों में आनंद रहा
सपनों में अरमान
जीवन मे अब शेष बची
झूठी केवल शान
उनका अपना शौक रहा
उनके रहे सवाल
चुभती सी ही बात कही
खीच गई है खाल
हृदय में कुछ और रहा
बाहर से कुछ और
चेहरों पर मुस्कान रहे
भीतर से घनघोर
तू अपनी एक ऐब बता
कर ख़ुद का निर्माण
खुद ही से परिवेश रहा
नव जीवन है प्राण
जग में अपना कोई नहीं
सब है रिश्तेदार
जो भी अपना कहने लगे
हिस्से के हक़दार
शनिवार, 12 अक्टूबर 2024
स्वारथ की घुड़दौड़
चू -चु करके चहक रहे
बगिया आँगन नीड़
जब पूरब से भोर हुई
चिडियों की है भीड़
सुन्दरतम है सुबह रही
महकी महकी शाम
सुबह के उजियारे को
चिड़िया करे सलाम
जब भी दूर तक बात गई
हो गई पूरी रात
घटनाओं का दौर चला
हो गये दो दो हाथ
जीवन मे हर बार मिले
जितने भी थे मोड़
अब रिश्तों की खैर नहीं
स्वारथ की घुड़दौड़
जीवन होता एक नदी
नदी किनारे गांव
पगडण्डियाँ छूट रही
कहा गई है छांव
मझधार में
फंस गई नैया
तूफानों के बीच
तट पर सारे मिल
गये
जितने भी थे नीच
शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024
सब कुछ है उपलब्ध
नीति से है न्याय रहा
प्रीति से सामर्थ्य
हम सबके जो पूज्य रहे
उन सबको दे अर्घ्य
प्रीति की कोई उम्र नहीं
प्रीति की न थाह
प्रीति की रीति से रहता
जीवन मे उत्साह
नियति से है भाग्य रहा
पौरूष से प्रारब्ध
जीवन मे सत्कर्म करो
सब कुछ है उपलब्ध
निद्रा में जो शुन्य रहा
उस पर तू कर शोध
हर कण मे वहीं तत्व रहा
आत्मा का हैं बोध
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024
माता का वह लाल
खुद ही से जो पूछ रहा
खुद से करे सवाल
भीतर से वह सौम्य रहे
माता का वह लाल
जिसको सुख की चाह नहीं
उसको क्य़ा दुःख देत
दुःख के रस्ते यही मिले
क्या मिट्टी क्या रेत
अंतर्मन को सींच रहा
साधक धर कर ध्यान
रस पीकर के तृप्त हुआ
आत्मा हुई महान
प्राणों का है बीज़ रहा
आत्मा सूक्ष्म शरीर
निज को जो पहचान सका
वो होता है सुधीर
माँ काली रानी ताल रीवा
बुधवार, 9 अक्टूबर 2024
माँ सज्जन का धीर
भक्ति माँ की सौम्य रही
माँ सज्जन का धीर
वृत्त से शक्ति नहीं मिली
मर मर गया शरीर
जो सच्चा और नेक रहा
अच्छा एक इन्सान
माँ का मन्दिर वहीं रहा
वहीं रहे भगवान
जितना मैला चित्त हुआ
भटका उतना ध्यान
खुद मे से तू दोष भगा
माता का आह्वान
मां
माता मन का भाव पढ़ें
माँ मन की है प्रीत
नित ही नव निर्माण करे
सोचे सबका हित
माता के बिन नहीं मिले
शिक्षा और संस्कार
बिन माता के देह नहीं
निर्जीव यह संसार
माँ आँगन और द्वार रही
माता छत दीवार
छत की स्नेहिल छांव रही
सुरक्षित परिवार
माँ ज्ञाता और ज्ञान रही
शिल्पी का कौशल्य
सच्चे बन सत्कर्मों करो
देगी वह वात्सल्य
माता केवल देह नहीं
अनुभूति है बोध
अनुभूतियां शुध्द करे
हटते सब अवरोध
जीवन उसका सुखी रहा
जिसके मन संतोष
माँ सबको हैं देख रही
देखे गुण और दोष
माता सुख की छांव रही
माँ दुख में है धीर
सुख की छाया बनी रहे
दुख में न हो पीर
सबमें मम का भाव रहा
मम मे रहता मोह
जीवन है कठिनाई भरा
आरोह अवरोह
सुख में घर और द्वार रहे
दुख के नहीं पहाड
निर्भीक होकर कर्म करो
सिंह सी भरो दहाड़
बुधवार, 2 अक्टूबर 2024
निकम्मे की धूम रही
कोई भी उपचार नहीं
न कोई है तथ्य
इस युग मे हैं पस्त हुए
अहिंसा और सत्य
नियति से अब
कौन लड़े
लिखे लेख को
कौन मिटाय
धीरे धीरे बीत रहे
जीवन के अध्याय
दूजे की हर बात रखी
अपना सब कुछ खोय
अपना ही एक दोष रहा
दूजा न लगे कोय
जिसके उर व्यापार रहा
रहा नही हैं स्नेह
हर पल में हैं स्वार्थ वहा
मृत रिश्तों की देह
पैसे की ही भूख रही
पैसे की है प्यास
जाने का अफ़सोस नहीं
कुछ पाने की आस
कर्मों का ही बोझ रहा
कितना उन्हें उठाए
निकम्मे की धूम रही
सब है उसे बचाए
शनिवार, 7 सितंबर 2024
निर्मल मन मे ईष्ट
तू अपने ही दोष मिटा
सबका करो सुधार
गुणी हृदय है बहुत बड़ा
गुणता रही उदार
गुणीजन के ही साथ रहो
बन जाओ गुणवान
गुण मिलना है बहुत कठिन
अवगुण है आसान
गुण के हाथों जीत रही
गुण की रही है प्रीत
निश्चल निर्मल भाव जगा
सबका होगा हित
निश्चल मन विश्वास रहा
निर्मल मन मे ईष्ट
सबके जो संताप हरे
होता अति विशिष्ट
सोमवार, 29 जनवरी 2024
न बिकती हर चीज
लज्जा का आभूषण
करुणा के बीज
कौशल्या सी नारी
तिथियों मे तीज
ह्रदय मे वत्सलता
गुणीयों का रत्न
नियति भी लिखती है
न बिकती हर चीज
वनवासी साँसों मे
दिखते है पर्वत तो दिखती है खाई
पथ होते पथरीले होती कठिनाई
वनवासी साँसों मे रहते रघुराई
भरत मन हो तो लक्ष्मण सा भाई
चिडियो की बोली भी गाती है नाम
कंकड़ और पत्थर मे रहते है राम
पत्थर जो होता है निष्ठुर निश्प्राण
शिल्पी ने रच डाले उसमे भी श्याम
सीता जी तप होती
जीवन की पाती मे
पाती मे राम
कबीरा भी यह बोले
शुभ कर ले काम
तुलसी चौपाई
जो कुछ न कह पाई
कहता है वह जीवन
जीवित आख्यान
लक्षमण की उर्मिला
उर की है पीर
सीता जी तप होती
टिकता है धीर
खोता है जब संयम
मन का कोई तीर
खींची है तब रेखा
दिखता कोई वीर
रविवार, 28 जनवरी 2024
मन की हो अयोध्या
नदिया सा मीठा जल
महकी हुई शाम
खगदल से गुंजीत हो
कण कण मे राम
पल पल मे खुशियों हो
हर दम मुस्कान
मन की हो अयोध्या
जीवन निष्काम
चन्दन सा चिंतन हो
सुन्दर हर काम
कुंदन सा जीवन हो
जीवित हो धाम
तन मन हो हर्षाया
ऐसा निर्माण
मन मे ही मंदिर हो
मंदिर मे राम
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
नक्शा एक दिखा है
सखिया करती हास ठिठौली
जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
जीवित जो आदर्श रखे
सम्वेदना का भाव भरा खरा रहा इन्सान जीवित जो आदर्श रखे पूरे हो अरमान जो पीकर मदमस्त हुआ हुआ व्यर्थ बदनाम बाधाएँ हर और खड़ी...
होते भगवान
जीवन में खुश रहना रखना मुस्कान सच मुच में कर्मों से होतीं की पहचान हृदय में रख लेना करुणा और पीर करुणा में मानवता होते भग...