बुधवार, 6 जुलाई 2016

बह चली हर धार है

कह रही कुछ पंक्तिया है 
होते अंकित भाव है 
बीज होते अंकुरित है
 और मिलती छाँव है
महकती हर क्यारिया है 
फल रही हर नस्ल है 
बादलों में जल भरण है
 मार्ग के भटकाव है

बारिशो में बूँद छम छम
 तृप्त धरती नेह है 
लौट आई आज चिड़िया 
घोसले में गेह है 
बह चली चंचल नदिया
 बह चली हर धार है 
हो गया पुलकित यौवन 
और दमकी देह है

रच रही नव व्याकरण

चाँद  तारे  से  गगन  है     दीपिका  से  है किरण   दीपिका जब न जली तो चंद्र  करता तम हरण  जब  अंधेरा  हो  रहा  हो   जगत  सारा  सो रहा  हो   च...