सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

सखिया करती हास ठिठौली

जिव्हा  खोली कविता बोली 
कानो  में मिश्री  है घोली
जीवन का सूनापन हरती 
भाव  भरी शब्दो की  टोली

प्यार  भरी  भाषाए बोले
जो भी मन में सब कुछ खोले
लगता है इसमें अपनापन 
तट पनघट मुखरित यह हो ले
मादकता छाई है इसमें  
दिवानो कि यह हमजोली

कविता से प्यारा से बंधन 
करुणा से पाया है क्रंदन
वंदन चन्दन नंदन है वन 
सुरभित होता जाता जीवन
हाथो मेहंदी आँगन रोली 
सखिया करती हास ठिठौली 

काव्य सुधा अब क्यों न बरसे 
भाव धरातल नेह को तरसे 
 प्रीत गीत का पीकर प्याला
झुम झुम कर ये मन हरषे
 प्रिय तम मेरी कितनी भोली

 आँख मिचौली करे बड़ बोली

होते भगवान

जीवन में  खुश  रहना  रखना  मुस्कान  सच मुच  में  कर्मों  से  होतीं की  पहचान  हृदय में रख लेना   करुणा  और  पीर  करुणा  में  मानवता होते  भग...