कड़े सुरक्षा के घेरो में
रहे निरंतर जो पहरो में
छुपी हुई है निष्ठुरता तो,
कुर्सी के कुत्सित चेहरो में
जटिल प्रक्रियाओ में घिरकर
मिटी योजनाओ कि स्याही
संवेदना का स्वांग रच रही
शोषणकारी नौकरशाही
कैद हो गई है जनता की
किस्मत अब तो उन्ही करो में
धसे हुए है प्रगति पहिये
बिकी हुई सम्पूर्ण व्यवस्था
थकी हुई बेहाल जिंदगी
ढूंढ रही खुशहाल अवस्था
समाधान के सूत्र खोजती
बीत गई आयु शहरो में
यश वैभव की ऊँची मीनारे
कलमकार को ललचाये
चाटुकारिता के हाथो में
राज्य नियंत्रण रह जाए
सिमट गए सुख के उजियारे
उनके ही आँगन कमरो में