पुण्य
सलिला रेवा माता ,तेरे
सदगुण मानव गाता जप
तप तेरे तट पर होते ,जप
तप से है मन हरषाता मात
नर्मदे चपल तरंगे ,दर्शन
पाकर हो गये चंगे हर
हर गंगे हर हर गंगे ,शिव
की संगे शिव की अंगे लहराकर
इतराता आता कल -कल
छल-छल
बहता जाता तव
कीर्ति ही गाती बाणी ,तू
उर्जा है तू महारानी, मै
बालक तू मात भवानी तेरे तट
बसते मुनि ध्यानी जीवन
मे जब तम गहराता तेरे तट पर मै
आ जाता तट
पनघट है तेरे गहरे ,सागर
तट पर तू जा ठहरे विजय
पताका तेरी फहरे गिरती
उठती पावन लहरे तृप्त
धरा को कर हरियाता तेरा जल
तृष्णा हर पाता
कन्या
कोई अभिशाप नहीं ,कन्या
है वरदान कन्या
से धन धान्य मिले ,कर
कन्या गुण-गान
कन्या
से ही काव्य सजा ,सजा
सुखी संसार कन्या
से ही धन्य हुआ ,धवल
हुआ घर-द्वार
कन्या
ने ही प्यार दिया ,दी
पायल झंकार कन्या
से मुग्ध हुआ ,कलाकार
फ़नकार कन्या
भ्रूण चीत्कार रहा ,मत
ले उसके प्राण कन्या
पुत्री रत्न बने ,करे
नवीन निर्माण काव्य
रचा तो शब्द बचा ,बचा
स्वपन संसार कन्या
ने ही विश्व रचा ,दो
कन्या को प्यार