रविवार, 1 सितंबर 2019

सुख सागर का छोर

गण राज्यो से देश बना , गणपति है भगवान  
हर कण में यहां देव रहे ,दिव्य साधना ध्यान



गुणों से ही पूज्य रहे, अवगुण से अपमान 
  गुणित होता चला गया ,गणपति का वरदान

गण नायक ने चित्त हरा , हारा है अभिमान  
जीवन का सौंदर्य रही, इक निश्छल मुस्कान

नायक से नेतृत्व रहा ,गायन  से गुणगान  
मिट्टी के गणराज कहे ,मिट्टी का इंसान
बाधाओ का जोर नही, बढ़े पराक्रम ओर  
साधक को मिल जाएगा ,सुख सागर का  छोर

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

भक्ति से उध्दार

जीवन नही कर्म बिना, कर्म शून्यता मौत
त्रिशक्ति जब साथ रहे ,जलती जीवन ज्योत

खुद से भीतर बात करो ,आत्मिक हो संवाद
जप तप से मिट जायेगे ,कैसे भी अवसाद

क्रिया शीलता सदा रही ,जीवन का आधार
शक्ति भक्ति से मिले, चेतन  का संचार

मिली चेतना जीव हिला ,चला गया उस छोर
चंचल नदिया और झरनों में ,शक्ति का है जोर

भीतर जलती ज्योत रही  ऊर्जा सूर्य समान
भक्ति से तो भाग्य जगे , भक्ति भाव प्रधान

गुड़ी पड़वा से शुरू हुआ ,माता का उत्सव
माता दुर्गा नाच रही ,नाच रहे भैरव

शनिवार, 9 मार्च 2019

यहाँ जाग रहा है अणु अणु

यह कंकड़ पत्थर है शंकर 
  हर कण में रहते है विष्णु
  है संतुलन उनके भीतर
  कृष्णा की प्रियतम है वेणु 

  यह प्रीत रीत ही ऐसी है
  भावो से भगवन आये है
  मीरा की भक्ति प्रीत रही  
राधा ने  सचमुच पाये है
  भक्ति की जलती ज्योत रही  
यहाँ जाग रहा है अणु अणु

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

खुशियो की शहनाईयां

गहरी गहरी खाईया 
 झीलों की गहराइयां 
  नभ से निकली उतर रही
  कैसी है परछाईया

सुंदरता आनंद
  उड़ती हुई पतंग 
  सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही  उमंग  
बच्चो  की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां

कब तक होगी भ्रान्ति  
जीवन हो संक्रांति  
मिल मिल कर के बिछुड़ रही  
जीवन से सुख शांति
  अपनापन था गुजर गया 
  न होगी भरपाईया

कहा गए वो छंद 
जीवन का  मकरन्द 
महकी महकी गंध 
सुरभित से सम्बन्ध 
थर थर काया काँप रही 
खोई कही रजाईयां

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

हो नवीन वर्ष पर सोच नई

जीवन के अनुभव अनुपम हो चरणों की रज में चंदन हो
हो नवीन वर्ष भी प्रीत भरा प्यारा सा तुमको वंदन हो
 अविचलित हो मन  भाव भरे प्रतिपग पथ पर हो फूल धरे
रूप हर्षित हो और आकर्षण जीवन खुशिया का नंदन हो 

नित नित लगते हो नव मैले जीवन के नभ पर खग खेले
सिंचित होती हो पौध नई कुदरत से मस्ती हम ले ले
हो नवीन वर्ष पर सोच नई अनुभूति पीड़ा गई गई
तृप्ति भी हर मन को छू ले जो गमगीन थे पल वे भूले

मूक रही वेदना कुछ बोले शोषित भी अपना मुख खोले
जीवन मे हो कुछ आकर्षण शब्दो को हरदम हम तोले
रहती मन में करुणा समता हो नवल वर्ष में पावनता
नित मानवता के हम सींचे बीज अंकुरित हो फुले फले


आँगन का दीपक

जहा दिव्य हैं ज्ञान  नहीं  रहा  वहा  अभिमान  दीपक गुणगान  करो  करो  दिव्यता  पान  उजियारे  का  दान  करो  दीपक  बन  अभियान  दीपो ...