अंधियारा है काँप रहा
काँप रही है भोर
नवीन वर्ष के हाथ रही
भावी कल की डोर
सपने हो आकार लिए
अर्जुन या एकलव्य
उजियारा चहु और रहे
सबके सपने भव्य
अन्तर में है आग लगी
बाहर भी है शोर
तृप्ति का है मार्ग सही
तृष्णा का न जोर
उनका अपना जोर रहा
उनकी अपनी चाल
जैसी जिसकी नियत है
उसका वैसा हाल
आनंदित आकाश हुआ
आंनदित उपवन
आनंदित हो बात करो
हो मौलिक दर्शन
जीवन है श्मशान नही
पावन है स्थान
अपनो को तू गले लगा
क्यो करता प्रस्थान