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शनिवार, 5 जून 2021

हल बक्खर और बैल

महंगी होती कार गई , रहा फ्यूल का खेल
खेतो से विलुप्त हुये , हल बक्खर और बैल

मिलता नही शुध्द दही, नकली मिलते बीज
सस्ती सबकी जान रही, महँगी होती चीज

उनके अपने शौक रहे ,उनका था व्यापार 
महामारी से टूट गया , कितना कारोबार

भूखे नंगे भावविहीन , देखे कुछ इन्सान
बीमारी ने छीन लिये ,जितने थे अरमान

अब तो सबकी पीर हरो, हे!मेरे भगवान
महामारी अब छीन रही , रिश्तों में थी जान

शुक्रवार, 4 जून 2021

गाँवो का क्या हाल?

नयनो से न अश्क बहे ,कैसा है ये दौर
किससे अपना दर्द कहे , चले गये सब छोड़

सीधी सच्ची प्रीत गई , गांवों क्या का हाल
चौराहों पर भीड़ रही ,सूनी है चौपाल

भीतर से क्यो टूट रहा , भीतर है भगवान
खुद ही से तू हार रहा, खुद को कर बलवान

टूटते जुड़ते स्वप्न रहे, उजड़ गये है वंश
महामारी ने रूप धरा , कोरोना का दंश 

भीतर से कमजोर रहा, बाहर से है जोश
जो भीतर से शुध्द रहा , बिल्कुल है निर्दोष

गुरुवार, 3 जून 2021

सज्जित है षड्यंत्र

व्यवहारिक कठिनाइया , हल दोहो के पास 
इनसे समझो जान लो ,भावी कल इतिहास

उनका अपना तंत्र रहा, उनका मारक मंत्र
स्तम्भित पुरुषार्थ रहा, सज्जित है षड्यंत्र

दिन गुजरे और रात गई, बीतता कल इतिहास
कठपुतली की खेल हुई , जीवन की हर श्वास

हृदय अब विदीर्ण हुआ , रहे फेंफड़े हाँफ
बीमारी का पार नही , कोरोना का ग्राफ

शुक्रवार, 14 मई 2021

फिर हो आखातीज

अक्षत धन आरोग्य रहे , प्राणों से भरपूर
नैसर्गिक अनुराग रहे , रोगों से हो दूर

उत्सव सारे छूट गये, टूट गये सब प्रण
लोगो मे सामर्थ्य नही , कोरोना का व्रण

गौरैया भी लुप्त हुई, भटकी दर दर गाय
पंथ हुये है वृक्ष विहीन , प्राण कहा से पाय

कितने ही प्रतिरूप रहे, कोरोना विकराल
प्यारी सी हरियाली को , क्यो न रहा सम्हाल

अक्षय धन आरोग्य रहे, फिर हो आखातीज
प्राणों का आव्हान करे, उम्मीदों के बीज

खोई खोई रही जिंदगी , पाया नही पराग 
भँवरे गुंजन कहा करे,  न उपवन है बाग

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

करो सत्य का शोध

प्रतिपल वो उन्मुक्त रहा, इक सेवक हनुमान
सेवा का है मर्म यही , चाहा न प्रतिदान

सौ योजन वो लाँघ गया, राम नाम का बोध
मारुति हनुमान कहे , करो सत्य का शोध

घर के आँगन बेल रहे पीपल का हो पेड़
बूढा बरगद साथ रहे , रहे खेत पर मेढ़

जहां नही अभिमान रहा, वहां रहे हनुमान
धन सत्ता का दर्प हरे, मेरे यह भगवान

कोरोना है मार रहा , कर दो प्रखर प्रहार 
दो सबको आरोग्य प्रभो, जग के तारण हार

करुणा में है ईश रहा, सेवा में जगदीश
सेवा से क्यो भाग रहा, सेवक है दस दिश



मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

सृष्टि का उदभव

भक्ति का अर्जन करो , शक्ति का संचय
माँ दुर्गा जब साथ रहे, साधक हो निर्भय

सत के पथ पे राम रहे , सत के संग हनुमान
सच को तू न साध सका, सत का व्रत वरदान

गिनते गिनते दिन गये, उड़ी नींद और चैन
माँ होती है पार्वती, माँ होती दिन रैन

वैज्ञानिक सम्वत रहा,आध्यात्मिक अनुभव
चैत्रमास की प्रतिप्रदा, सृष्टि का उदभव

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

दिखती दूर तक रेत

जीता मरता रोज यहां, जीवन उसका ताप
मजदूरों की पीड़ा को , नाप सके तो नाप

उनकी अपनी थी शंकाये, उनके अपने डर
तू अपने हर सपने को , निर्भयता से भर

दिखती दूर तक मरुधरा, दिखती दूर तक रेत
गिरकर उठता रोज यहाँ, टपका जिसका स्वेद

जितने भी थे लौट गये , अपने अपने घर 
सूरज उगता अस्त रहा ,उसका तेज प्रखर


सोमवार, 29 मार्च 2021

रंगविहीन हो देह

होली हर दिन साथ रहे ,साथ रहे हर रंग
धुलेंडी चहु और रहे, प्रतिपल हो हुडदंग

जीवन उसका सुखी रहे,जिसके मन आल्हाद
होलिका के साथ जले, चिन्ता और अवसाद

जो भीतर से भींग गया,मिला उसे है स्नेह
मन के जितने रंग रहे, रंग विहीन हो देह

वे तो मुम्बई चले गये ,चले गये रंगून
रंगों से बाज़ार सजा, पूज रहे अवगुण

होलिका की और खड़ा कैसा जन सैलाब
आत्मीयता का बोध नही केवल धन का लाभ

शनिवार, 27 मार्च 2021

लिपटत तन पर धूल

जब मस्तक पर मला यहां लाल लाल गुलाल
भीतर भीतर लाल हुआ ,बाहर से खुशहाल

होले होले प्यार बढ़ा,चढता रहा बुखार
मन से सारा मैल हरे, होली का त्यौहार

डिम डिम करती चली यहां, यारो की है गैर
ढोलक से है ताल मिली, ठुमक रहे है पैर

महुआ ताड़ी भांग धरे ,कितने है मशगूल
होली में न रंग बचा, लिपटत तन पर धूल

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

जगे भाग्य की रेख

नित अभिनव की प्यास रहे, नूतन नित उल्लास
नवीन वर्ष में सोच नई हो , हो मन मे विश्वास

जग में होते पंथ कई, ईश्वर फिर भी एक
नये वर्ष में नई उमंगे, जगे भाग्य की रेख

जब तक न संतोष रहा, जीवन होता शाप
नवीन वर्ष में हटे अंधेरा , कट जायेगे पाप

मन्दिर बजते शंख रहे, घंटी सजते थाल
होता सच्चा कोष वहाँ , जो मन से खुशहाल

चित में तो सन्यास नही , चिन्तन में न राम
फिर भी भगवा वेश धरा, इच्छा रही तमाम




शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

रोता एक किसान

घायल दोनों पैर हुये, घायल होते भाव
फसलों को वो सींच रहा, सर्दी में एक गांव

बारिश में है भींग रहा, थक के चकनाचूर
किस्मत उनको ले गई, सुख से कितना दूर

पलको में न नीर रहा , ऐसा भी एक मर्द
हल्का होता भार नही , कर्जा है सिरदर्द

चलते उनके पैर रहे,फिर भी नही थकान
आँखों मे भी नींद नही, रोता एक किसान

आई याद मां की