शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे  
बगिया  आँगन  नीड़ 
जब पूरब  से  भोर  हुई 
चिडियों  की  है  भीड़ 

सुन्दरतम है  सुबह  रही 
महकी  महकी  शाम 
सुबह  के  उजियारे  को  
चिड़िया  करे  सलाम 


जब भी  दूर  तक  बात  गई 
हो  गई  पूरी  रात 
घटनाओं का  दौर  चला 
हो  गये  दो  दो  हाथ 

जीवन मे  हर  बार  मिले 
जितने  भी  थे मोड़ 
अब  रिश्तों  की  खैर नहीं 
स्वारथ  की  घुड़दौड़ 

जीवन होता  एक  नदी 
नदी किनारे  गांव 
पगडण्डियाँ  छूट  रही  
कहा गई  है  छांव 


जल धारा में  फंस गई नैया
मझधार के  बीच 
जितने भी थे तट पे मिल गये 
जग के  सारे  नीच 



शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

सब कुछ है उपलब्ध

नीति से  है  न्याय  रहा  
प्रीति  से  सामर्थ्य 
हम सबके  जो  पूज्य  रहे 
उन  सबको  दे  अर्घ्य 

प्रीति  की  कोई  उम्र  नहीं  
प्रीति  की  न  थाह 
प्रीति  की  रीति  से  रहता 
जीवन मे  उत्साह

नियति से  है  भाग्य रहा 
पौरूष से  प्रारब्ध 
जीवन मे  सत्कर्म  करो  
सब  कुछ है  उपलब्ध 


निद्रा  में  जो  शुन्य  रहा 
उस  पर  तू  कर  शोध 
हर  कण मे  वहीं तत्व  रहा 
आत्मा का  हैं  बोध 


गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

माता का वह लाल

खुद ही  से  जो पूछ  रहा 
खुद से  करे  सवाल 
भीतर से  वह  सौम्य  रहे 
माता का  वह  लाल 

जिसको सुख  की  चाह नहीं 
उसको  क्य़ा  दुःख  देत
दुःख  के  रस्ते यही मिले 
क्या मिट्टी  क्या  रेत 

अंतर्मन  को  सींच  रहा 
साधक धर कर  ध्यान 
रस  पीकर  के  तृप्त  हुआ 
आत्मा  हुई  महान 

प्राणों  का  है  बीज़  रहा 
आत्मा  सूक्ष्म  शरीर 
निज को जो पहचान सका 
वो होता है सुधीर 
माँ  काली  रानी  ताल रीवा 


बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

माँ सज्जन का धीर



भक्ति माँ  की सौम्य रही 
माँ  सज्जन  का  धीर
वृत्त  से  शक्ति नहीं  मिली 
मर  मर  गया  शरीर 
 

जो  सच्चा  और  नेक  रहा 
अच्छा  एक  इन्सान 
माँ  का  मन्दिर वहीं रहा 
वहीं  रहे  भगवान

जितना  मैला चित्त  हुआ  
भटका उतना  ध्यान 
खुद मे  से  तू  दोष  भगा 
माता  का  आह्वान 




मां


माता  मन  का  भाव  पढ़ें 
माँ मन  की  है  प्रीत 
नित  ही  नव  निर्माण  करे
सोचे सबका  हित 

माता के  बिन नहीं मिले 
शिक्षा और  संस्कार 
बिन  माता  के  देह  नहीं 
निर्जीव  यह  संसार 


माँ आँगन और द्वार रही 
माता  छत दीवार 
छत की स्नेहिल  छांव रही 
सुरक्षित  परिवार 

माँ ज्ञाता  और  ज्ञान  रही 
शिल्पी  का  कौशल्य
सच्चे बन  सत्कर्मों  करो 
देगी  वह  वात्सल्य 

माता केवल  देह  नहीं 
अनुभूति है  बोध 
अनुभूतियां  शुध्द  करे 
हटते  सब  अवरोध 

जीवन उसका  सुखी  रहा 
जिसके  मन  संतोष 
 माँ सबको हैं देख रही 
देखे गुण और दोष

माता सुख  की  छांव  रही 
माँ  दुख  में  है   धीर 
सुख  की  छाया  बनी  रहे 
दुख  में  न  हो  पीर 

सबमें  मम का भाव रहा 
मम मे  रहता  मोह 
जीवन है  कठिनाई  भरा 
आरोह अवरोह 

सुख में  घर और  द्वार रहे 
दुख के नहीं  पहाड 
निर्भीक  होकर  कर्म  करो 
सिंह  सी  भरो दहाड़ 

 

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

निकम्मे की धूम रही

कोई  भी  उपचार  नहीं  
न  कोई  है  तथ्य 
इस  युग  मे हैं पस्त  हुए 
अहिंसा  और  सत्य 

नियति  से  अब
  कौन लड़े 
लिखे  लेख  को
  कौन  मिटाय
धीरे  धीरे  बीत  रहे 
जीवन  के  अध्याय 


दूजे  की  हर  बात  रखी 
अपना सब कुछ  खोय
अपना  ही  एक  दोष  रहा  
दूजा  न  लगे कोय 

जिसके उर व्यापार रहा 
रहा नही  हैं  स्नेह 
हर पल  में  हैं  स्वार्थ  वहा 
मृत रिश्तों  की  देह 

पैसे की  ही  भूख  रही 
पैसे की  है  प्यास 
जाने का अफ़सोस नहीं 
कुछ पाने की आस 

कर्मों का ही बोझ  रहा 
कितना  उन्हें  उठाए 
निकम्मे की  धूम  रही 
सब  है  उसे  बचाए 





शनिवार, 7 सितंबर 2024

निर्मल मन मे ईष्ट


तू  अपने  ही  दोष  मिटा 
सबका  करो  सुधार 
गुणी  हृदय  है  बहुत  बड़ा 
गुणता  रही  उदार 

 गुणीजन  के  ही  साथ  रहो 
  बन  जाओ  गुणवान 
गुण  मिलना है  बहुत  कठिन 
अवगुण  है  आसान 


गुण  के  हाथों  जीत  रही  
गुण  की  रही  है  प्रीत 
निश्चल निर्मल  भाव  जगा 
सबका  होगा  हित 

निश्चल  मन  विश्वास  रहा 
निर्मल  मन  मे  ईष्ट 
सबके जो  संताप  हरे 
होता  अति  विशिष्ट 





स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे   बगिया  आँगन  नीड़  जब पूरब  से  भोर  हुई  चिडियों  की  है  भीड़  सुन्दरतम है  सुबह  रही  महकी  महकी  शाम  सुबह  के  ...