सोमवार, 8 मई 2023

रच रही नव व्याकरण


चाँद  तारे  से  गगन  है 
   दीपिका  से  है किरण 
 दीपिका जब न जली तो
चंद्र  करता तम हरण 

जब  अंधेरा  हो  रहा  हो  
जगत  सारा  सो रहा  हो  
चांदनी  चन्दा  से  मिलकर
  रच  रही  नव व्याकरण 

चंद्रमा  घटता  है  बढ़ता 
फिर  भी  न होता  क्षरण 
बिखरती  चौसठ कलाये  
सौंदर्य पथ  का  है वरण 

 
दीप  कोई  जल  रहा  हो 
तिमिर  पल पल  गल रहा  हो 
रोशनी  के  गीत  गा  के 
कर्म   पाता  है  शरण 

( चैत्र  माह  की  तीज  पर  उदित  चंद्रमा  के  लिये  गये  चित्र  पर  रचित  रचना)


शुक्रवार, 10 मार्च 2023

आये थे मेहमान

दिन  में  ऐसी  नींद  लगी, आये  थे  मेहमान 
जितने भी  थे  ले  उड़े  , लाखों  का  समान 

करवट  लेकर  नहीं  उठा, हुआ  भले  ही  शोर 
चूल्हा  बेलन  चुरा  गये, ले  गये  आटा  चोर

घर  के  आंगन बिछी  मिली, रस्सी  की  एक  खांट
 अम्मा  जी  तो  चली  गई , बाबू जी  के ठाट

बरसों  से जो उठा  रहा,  निकम्म्मो का  बोझ
जिनका कुछ सम्मान नहीं , करते  है वो मौज 


बुधवार, 8 मार्च 2023

जिये मरे जनहित

जिसको  हरदम  याद  किया  
है  दिल  के  जो  पास 
जीवन  कोई  खेल  नहीं
 प्रीति  का  अहसास

मेहंदी  रचती  हाथ  रही
 कितना  गहरा  रंग 
होली  खेले  रंग  नये
 होली  में  हुडदंग 

जीवन  के हैं  रंग  कई 
रंग  बिरंगे  बोल 
तू  इक  ऐसा  रंग  लगा
जो  अनुपम  अनमोल 

कितने  सारे  रंग  रहे
कितने  सारे  रूप 
रंगों  से  तु प्रीत  लगा
 बैठा  है  क्यों? चुप 

हृदय  किनारे  प्रीत  रहे
हृदय  बीच  नवनीत 
होली  मन का  मेल  हरे
जिये  मरे  जनहित 

सच को  कोई  आँच  नहीं 
जीवन मे  आल्हाद
होलिका  की  देह  जली 
नहीं  जला प्रहलाद 

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

गीता

गीता  एक  ग्रंथ  नहीं
एक  विचार  है  
गीता  विचार  ही  नहीं 
 जीवन दर्शन  है 
गीता  कृष्ण का अर्जुन को  दिया  
अलौकिक  ज्ञान  है 
अलौकिकता से ही व्यक्ति   की  
वास्तविक  पहचान  है   
गीता  भक्ति  की  गंगा  है 
 ईश्वरीय शरणागति  है
 बढ़  जाता है  अहंकार  तो 
 मारी  ज़ाती  मति है 
गीता संसार  को  कर्म की महत्ता  बताती  है 
कर्म  पथ  पर  ही  चलकर 
व्यक्ति  की  अस्मिता  खुद  को  पाती  है 
गीता  को  पढ़ो  समझो  जानो  कुछ  करो 
सदा  रहो  चैतन्य  सक्रिय 
 भीतर मे बसी जड़ता  को  हरो  
 जीवन  जहा  जहा  भी 
 किंकर्तव्यविमूढ़ता  नजर आती  है 
 वहाँ मन  हुआ  अर्जुन  तो 
गीता  बनी  श्री कृष्ण सी  सारथी  है 
गीता  पुस्तकीय  ज्ञान  नहीं  
आध्यात्मिक  अनुभव  हैं 
प्रेरक  शक्ति  के  द्वारा  ही  
व्यक्तित्व  निर्माण  सम्भव  है 
गीता  धर्मों  से  परे  ईश्वरीय मार्ग  है 
अवसाद ग्रस्त  मन  की  चिकित्सा
 जीवन  के  प्रति  अनुराग  है
गीता  के मर्म  को
  जिसने  जितना  गहराई  से  पाया  है 
समझा  है  स्वयं  को 
नित  नवीन  उत्थान  कर 
सफ़लता  का  ध्वज  लहराया  है 

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

कितने जग में दीप जले

मानव जल  थल  बाँध  रहा
कुदरत  का  है  चोर
मानव दस्यु  दैत्य  रहा 
मानव  आदम  खोर 

कुदरत  थर  थर कांप  रही 
शापित  है  हर  जीव 
हम  खुद  ही  अब  खोद  रहे 
सृजन  की  हर  नींव 

कितना  सारा खून  बहा 
मानव  तेरे  हाथ 
जीव  हिंसा  और  युध्द  हुए 
रुकते  न अपराध 

भीतर  हिंसा  कौंध  रही 
यह  हिंसक  है  दौर 
अपने  मन  के  दर्पण  पर 
करना  होगा   गौर 

कितने  जग  में  दीप  जले 
क्या  निकला  है  अर्थ 
खग दल  मरते  तेज  ध्वनि 
होता  प्रदूषण  व्यर्थ 

तुम  ऐसा  एक  पुण्य  करो 
हो  सबका  कल्याण 
हर  मन आशा  दीप जले 
हो  कुछ  नव  निर्माण 

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

घर का आँगन लीप

पौरुष से पुरुषार्थ हुआ
पौरुष है पतवार 
जिनके भीतर  ओज  रहा 
वे  तट के  उस  पार 

सच्चाई  की  कोख  पली 
भीतर  की  मुस्कान 
अंतर्मन  में  दीप जला
कर  उजियारा  दान 

अंधियारे  की  रात  नहीं 
झिलमिल  है  आकाश 
तू  कर्मों  से  प्रीत  दिखा  
होगा  दिव्य  प्रकाश 

अन्तर  से  चित्कार  उठी 
मिला  सृजन  नवनीत 
गीतों  की  झनकार रही 
हर पल छलकी प्रीत 

जीवन  मे  धन  धान्य  रहे 
जले  स्वास्थ्य  के  दीप
दीपो से  य़ह  पर्व सजे 
घर  आँगन  को  लीप 

बाहर  कितना  शोर  रहा 
भीतर  रहा  तिमिर 
तू  इक  ऐसा  दीप जला 
तम को  जो  दे  चीर 


मिलेगी उसकी टोह

रुप  तो  है  पर  गुण  नहीं, गुण के बिन न ज्ञान 
रूप को देखे  ब्याह  करे, वह गुणहीन इन्सान 

चंदा  जैसा  रूप  दिखा, दिखा नहीं चरित्र 
 सीधा  सच्चा मूर्ख नहीं  होता  अच्छा  मित्र 

 जो जितना ही प्रिय  रहा, उससे उतना  मोह 
रब से सच्ची  प्रीत  लगा, मिलेगी उसकी टोह 

जीवन  मे  आरोग्य  नहीं,  लगे  रोग  पर  रोग 
धन  माया न  साथ  रही, तन  मन  करो निरोग 

रच रही नव व्याकरण

चाँद  तारे  से  गगन  है     दीपिका  से  है किरण   दीपिका जब न जली तो चंद्र  करता तम हरण  जब  अंधेरा  हो  रहा  हो   जगत  सारा  सो रहा  हो   च...