बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है
कही आग दरिया कही कुछ नमी है
 कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता 
पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है


पानी

पागल और प्रेमी है घायल है पानी 
हुआ दिल जला तो बादल है पानी
नदी बन चला तो ताजा है पानी
बना जब समन्दर तो खारा है पानी

आंखों के अन्दर है भावों का पानी
मिले नहीं मिलता अभावों का पानी
कही एक बूंद भी मिलती नहीं है
मरुथल में मिलता है मुश्किल से पानी

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

और व्यास देखो


दिखे नव उजाले
सहारे दिखे है 
बवंडर के अन्दर
कोलाहल दिखे है
है अक्षर से शब्दों 
 हुआ एक सफर है
दिखे दुख पराए 
कुछ हमारे लिखे है

पंछी और ख़गदल का 
उल्लास देखो 
चातक की तृप्ति 
 लगी प्यास देखो
हम कुदरत के भीतर
 रहे ही नहीं है 
इस धरती की परिधि 
और व्यास देखो

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

समन्दर वृहद है



खुली आंख से तू
सपने को बुन ले
सफल जिंदगी की 
कोई राह चुन ले
बस किस्मत के दम पर 
रहे मत भरोसे 
बहा श्रम सीकर तू
शिखर को ही चूम ले

रहा गम जीवन में 
हुई आंख नम है 
गैरो का ज्यादा 
मेरा दर्द कम है 
है खुद  का रखोगे 
जीवन सीधा सादा
पूरा होगा सपना 
बढ़ेंगे कदम है

है मिल गई जिसको 
जीवन की राह 
चाहे मिले सुख है 
न ग़म की परवाह 
रहे चाहे पथ पर 
कंकड़ और पत्थर
बिछे हुए कांटे 
न निकली है आह 

ग़मो का अंधेरा 
अंधेरे की हद है 
अंधेरों के आगे 
जीवन में सुखद है
जिसे मिले पथ पर 
पीड़ा और आंसू 
बहा सपनों का दरिया 
समन्दर वृहद है

पड़ी है दरारें



रही न मोहब्बत
  बनी है मीनारें 
खींची हुई लंबी
 ऊंची सी दीवारें
रिश्तों में ऐसा 
लगा हुआ पैसा
पैसों बिन यहां 
पड़ी हुई दरारें 



रविवार, 9 फ़रवरी 2025

योद्धा से दिखो


भरम जिंदगी में है जिसने है पाले 
लगे उसकी किस्मत पर बड़े बड़े ताले
कठिन वह पलो को अब कैसे सम्हाले
 मिले नहीं घर है , मिले न निवाले

पर्वत से विपदाए सहना है सीखो 
जड़ों से जुड़ो और जुड़ना है सीखो
 कितने हो दुर्दिन सूरज से उगो तुम
तमस से लड़ो तुम ,योद्धा से दिखो


रहे जिंदगी है  घनी छांव जैसी
सकून से भरी हो माहौल देशी 
  खबर हो खुशी की  सच्चे हो बच्चे 
नहीं करते हो उसकी ऐसी की तैसी

जीवन है नदी का


जीवन है नदी का 
बहना है आया
किनारों से उसने
साथ लम्बा निभाया
गति में रही वह
तो बोली है कल छल
गहरी हुई वह
तो उथला जल पाया

समंदर से जीवन 
जीना है सीखो
लहरों के संग संग 
रहना है सीखो 
कठिन कुछ पल
ज्वार भाटे के जैसे 
उन्हीं मुश्किलों में 
तुम इतिहास लिखो

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है