आंसुओ से भरी रह गयी गगरी
सूनी ही रही प्यार की नगरी
धीरज भी इम्तिहान देते देते टूट गया
संघर्षो का प्रियतम
ओ पुरुषार्थी यौवन
तू कहा पर खो गया
जीवन का रस लुट गया
मन की भाषा जाने कौन
संवेदनाये बहरी
प्रीत गीत हो गए मौन
चोटे भी खायी गहरी
भावो की गहराईया
प्यार की परछाईया
दर्द की रुबाईया
भूल गया रे भूल गया
याद थी जो भूल गया
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
दे न सके संदेश सही
व्यतीत अतीत के इतिहासों का,
किंचित भी आभास नहीं
भावी कल के विश्वासों का ,
कुछ भी तो आधार नहीं
देख पाए न नियति न्याय,
खड़े यहा हम तो निरुपाय
उलझी सी मंजिल लगाती है,
पर गति को विराम नहीं
बढे कदम तो कुछ भी पाए ,
पड़े रहे रहे तो शून्य मही
आदर्शो की लिए विरासत ,
पर वैसा आचार नहीं
कथित भद्रजन पीकर हाला,
फेर रहे मूल्यों की माला
नित्य नवीन अभिनय दिखला कर ,
दे न सके सन्देश सही
किंचित भी आभास नहीं
भावी कल के विश्वासों का ,
कुछ भी तो आधार नहीं
देख पाए न नियति न्याय,
खड़े यहा हम तो निरुपाय
उलझी सी मंजिल लगाती है,
पर गति को विराम नहीं
बढे कदम तो कुछ भी पाए ,
पड़े रहे रहे तो शून्य मही
आदर्शो की लिए विरासत ,
पर वैसा आचार नहीं
कथित भद्रजन पीकर हाला,
फेर रहे मूल्यों की माला
नित्य नवीन अभिनय दिखला कर ,
दे न सके सन्देश सही
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
सृजन
जो सृजन यहाँ सतत चलता
वह सहज उन्मुक्त बनता
सततता कैसे बनाए
वक्त ने यहाँ जुल्म ढाए
जलधारा की प्रबलता में
भंवर गहराते ही जाए
यथार्थिक भंवरो की सघनता
उन्मुक्त भावो को दबाये
बुधवार, 2 फ़रवरी 2011
kismat ab to unhi karo me
कड़े सुरक्षा के घेरो में रहे निरंतर जो पहरों में
छुपी हुई है निष्ठुरता तो कुर्सी के कुत्सित चेहरों में
जटिल प्रक्रियाओं में घिर कर मिटी योजनाओं की स्याही
संवेदना का का स्वांग रच रही शोषणकारी नौकर शाही
कैद हो गई है जनता की किस्मत अब तो उन्ही करो में !!1!!
धसे हुए है प्रगति पहिये बिकी हुई सम्पूर्ण व्यवस्था
थकी हुयी बेहाल जिंदगी ढूंढ रही खुशहाल अवस्था
समाधान के सूत्र खोजती बीत गई आयु शहरों में !!2!!
यश वैभव की ऊँची मीनारे कलमकारों को ललचाये
चाटुकारिता के हाथो में राज्य नियंत्रण रह जाए
सिमट गए सुख के उजियारे चमचो के आँगन कमरों में !!3!!
छुपी हुई है निष्ठुरता तो कुर्सी के कुत्सित चेहरों में
जटिल प्रक्रियाओं में घिर कर मिटी योजनाओं की स्याही
संवेदना का का स्वांग रच रही शोषणकारी नौकर शाही
कैद हो गई है जनता की किस्मत अब तो उन्ही करो में !!1!!
धसे हुए है प्रगति पहिये बिकी हुई सम्पूर्ण व्यवस्था
थकी हुयी बेहाल जिंदगी ढूंढ रही खुशहाल अवस्था
समाधान के सूत्र खोजती बीत गई आयु शहरों में !!2!!
यश वैभव की ऊँची मीनारे कलमकारों को ललचाये
चाटुकारिता के हाथो में राज्य नियंत्रण रह जाए
सिमट गए सुख के उजियारे चमचो के आँगन कमरों में !!3!!
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